विश्व के सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया अर्थात भारतीय लोकसभा चुनाव 2024 ने पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है. दरअसल यह आम चुनाव भारत और भारतीयों के लिए एक आमूल परिवर्तनकारी प्रघटना अर्थात निर्णायक मोड़ तो है ही, जो देश को 2047 तक विकसित भारत बनाने की राह पर अग्रसर करने वाला होगा. दूसरी ओर यह वैश्विक मंच पर भारत की धाक स्थापित करने की संभावना भी लिए है. अकादमिक विमर्शों में चर्चा होती है कि पिछले दस साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज भारत पूरी तरह से वि-उपनिवेशीकरण अर्थात डीकॉलोनाइजेशन के चरम दौर में आ चुका है.
प्राचीन काल में सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत सैकड़ों सालों के उपनिवेशीकरण से उबर कर न केवल आर्थिक शक्ति के रूप में दुनिया में उभर रहा है बल्कि सामरिक और सांस्कृतिक ‘सॉफ्ट’ पावर के माध्यम से भी दुनिया में हमारी एक नई पहचान बनी है. स्वयं नरेंद्र मोदी की छवि पिछले कई साल से संसार के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में बनी हुई है जिन्होंने 2047 तक विकसित भारत बनाने का संकल्प लिया हुआ है. लेकिन यह बात भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय ताकतों को नहीं पच रही है. भारत के प्रति विभिन्न अंतरराष्ट्रीय ताकतों के इस नकारात्मक रुख का एक प्रामाणिक बैरोमीटर है अंतरराष्ट्रीय मीडिया. मोदी और लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अख़बारों में छपे समाचारों, रिपोर्टों, लेखों और संपादकीय आदि से इसको देखा जा सकता है.
सर्वविदित है कि भारत अतीत में सोने की चिड़िया कहलाता था. विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन की पुस्तक “द वर्ल्ड इकॉनमी: ए मिलेनियल पर्स्पेक्टिव “ के अनुसार भारत 16वीं-17वीं सदी तक विश्व का सबसे धनी देश और सबसे बड़ी अर्थव्यस्था था। भारत का जीडीपी संसार के अर्थव्यवस्था में एक तिहाई से ज्यादा हुआ करता था लेकिन बाहरी शक्तियों और अनुपयुक्त घरेलू नीतियों के कारण धीरे-धीरे यह जीडीपी 2014 में 2.6 % पर पहुँच गया. पर मोदी सरकार की सफल नीति-रीति से 2014 में दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से भारत छलांग लगाकर आज 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.
2027 तक हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाले है. दूसरी तरफ सामरिक और वैज्ञानिक रूप से भी भारत तेजी से अपनी धाक मनवा रहा है. चाँद पर चंद्रयान भेजना, रक्षा उपकरणों और अंतरिक्ष उद्योग का बड़ा निर्यातक बनकर उभरना, कोरोना काल में पूरे संसार को वैक्सीन उपलब्ध कराना, जी-20 की बैठक में लोहा मनवाना इत्यादि से आज भारत का सम्मान संसार में बढ़ा है. पर अनेक ताकतें भारत की प्रगति से खुश नहीं है.
इनमें पाकिस्तान, अरब से लेकर चीन के साथ-साथ पश्चिमी देशों के लोग शामिल हैं. ये नहीं चाहते कि भारत आर्थिक और अन्य पैमानों पर एक महाशक्ति के रूप में विकसित हो. ये ताकतें यह भी जानती हैं कि मोदी के नेतृत्व में भारत आज विकसित भारत @2047 के रथ पर तीव्र गति से अग्रसर है. इकोनॉमिक टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार तो भारत 2040 तक अमेरिका को पीछे छोड़कर दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है. भारत विरोधी ये ताकतें इसीलिए मोदी के रथ को रोकने के लिए लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं. ग्लोबल स्तर पर जैसे एक सुनियोजित अभियान चल रहा है, जिसमें भारतीय मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश है.
कॉर्पोरेट राजनीतिक-दार्शनिक और वर्तमान में कनाडाई थिंक टैंक एक्सपोथॉन वर्ल्डवाइड के अध्यक्ष नसीम जावेद की 2019 में एक पुस्तक आई- “अल्फा ड्रीमर्स: दी फाइव बिलियन कनेक्टेड अल्फा ड्रीमर्स हु विल चेंज दी वर्ल्ड”. इस पुस्तक में उन्होंने बताया कि आज दुनिया के लोग आपस में जुड़े हुए हैं. वैश्विक जनमत अब एक प्रामाणिक आवाज है और उनका बहुत अधिक प्रभाव है. यह ऐसी ताकतें हैं जो किसी भी देश को प्रभावित कर सकती हैं, अर्थात उस देश या दुनिया को एक दिशा देने और बदलने में सक्षम है. वर्तमान लोकसभा चुनाव के संदर्भ में विचार करें तो इस चुनाव को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के रुख को जानना इस देश की जनता के लिए बहुत ही जरुरी है.
कनाडाई विश्लेषक नसीम जावेद का यही कहना है कि वैश्विक जनमत के प्रभाव का इस्तेमाल करके विभिन्न ताकतें आज के ग्लोबल गाँव में किसी भी देश को प्रभावित कर सकती हैं. वर्तमान लोकसभा चुनाव के संदर्भ में इस अवधारणा को देखें तो चुनाव को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के रुख और मंतव्य को समझना इस देश की जनता के लिए बहुत ही जरुरी है. विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अख़बारों- यथा अमेरिका के ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’, इंग्लैंड के ‘द गार्डियन’, क़तर (अरब) की ‘अल ज़ज़ीरा’, पाकिस्तान के ‘द डॉन’ या चीन के ‘दी पीपुल्स डेली ऑनलाइन’ को देखें; सबमें एक चीज समान रूप से दिखेगी. इन सब में मोदी और भाजपा सरकार और आरएसएस को एक विलेन के रूप में चित्रित किया गया है . दूसरी ओर राहुल गाँधी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के बारे में कोई भी नकारात्मक टिप्पणी नहीं मिलेगी. एक अन्य दिलचस्प बात यह भी दिखेगी कि ये सभी यह भी मान रहे हैं कि “आएगा तो मोदी ही”! फिर भी जहाँ तक संभव हो वे नरेंद्र मोदी के विरोध और विपक्षी दलों के प्रति समर्थन में लिख रहे हैं.
उदाहरण के लिए ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (20 अप्रैल, 2024) विलाप करते हुए लिखता है “भारत के लिए राहुल गांधी के दृष्टिकोण का समय समाप्त हो रहा है. लेकिन इस साल के चुनावों में भारत के सबसे प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार का वंशज अभी भी मोदी को हटाने और देश की दिशा बदलने की कोशिश कर रहा है…..राहुल खुद को महात्मा गांधी के अनुरूप ढाल रहे हैं.” आगे, ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ (23 अप्रैल, 2024) महानायक मोदी को खलनायक जैसा चित्रित करते हुए लिखता है कि उन्होंने मुस्लिम-बहुल राज्य जम्मू-कश्मीर की अर्ध-स्वायत्तता को समाप्त कर दिया;
एक नागरिकता कानून बनाया जिसे मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित माना गया; या हिंदू देवता राम के लिए एक भव्य मंदिर के निर्माण में मदद की. जबकि देश-दुनिया जानती है कि ये सारी चीजें लम्बे समय से चल रही ऐतिहासिक गलती को ठीक करने की दिशा में उठाया गया कदम था. इसमें कुछ लोगों को छोडकर पूरा देश मोदी के साथ रहा. उधर ‘अल ज़ज़ीरा’ (12 अप्रैल, 2024) को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) द्वारा मोदी को भीष्म पितामह के रूप में दिखाने पर समस्या है. जबकि भीष्म पितामह की छवि सिंहासन से निर्लिप्त ऐसे निस्वार्थी महापुरुष की है जो राज्य को चहुँ ओर से सुरक्षित रखना चाहता है.
एक अन्य स्टोरी में ‘अल ज़ज़ीरा’ (19 अप्रैल, 2024) के मन में भाव है कि “कांग्रेस के लिए काम कर रहे चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू क्या मोदी को नीचे गिरा सकते हैं?” उसी तरह लंदन के ‘द गार्डियन’ (18 अप्रैल 2024) को कष्ट है कि मोदी ने जाति और वर्ग के बंधन से परे हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे के कारण भारत के 80% हिंदू बहुमत का समर्थन हासिल किया है, जिससे उन्हें गरीब, ग्रामीण और सबसे निचली जाति के साथ-साथ शहरी मतदाताओं और मध्यम वर्गों के वोट पाने में मदद मिलती है. उसे आगे इस चीज से भी परेशानी है कि “भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए मोदी को अपार प्रशंसा भी मिली है और उनके समर्थकों का कहना है कि मोदी ने उन्हें भारतीय होने पर गर्व महसूस कराया है”.
मोदी की इस लोकप्रियता के बावजूद भारत विरोधी ‘दी गार्डियन’ अपने संपादकीय (17 अप्रैल 2024) में लिखता है कि “भारतीय मतदाताओं को नरेंद्र मोदी को एक और जनादेश देने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए”. उधर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का आधिकारिक समाचार पत्र ‘दी पीपुल्स डेली ऑनलाइन’ (22 अप्रैल, 2024) नकली चिंता दिखाते हुए लिखता है, “पिछले दशक में मोदी के नेतृत्व में भारत की आर्थिक वृद्धि के बावजूद, मोदी की राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित मार्ग अस्थिर लगता है”.
तो पाकिस्तान के ‘द डॉन’ (29 अप्रैल, 2024) लिखता है कि “दलित मतदाताओं के बीच बीजेपी की लोकप्रियता काफी बढ़ी है”. उसे कष्ट है कि “ऊंची जाति के हिंदुओं के प्रभुत्व वाली पार्टी को निचली जाति के समूहों से वोट मिल रहे हैं”. इसके अनुसार “यह जाति-केंद्रित बयानबाजी के कारण हो रहा है”. वह इस बात की नितांत अनदेखी कर देता है कि मोदी सरकार ने आवास योजना, शौचालय योजना, उज्ज्वला योजना, हर घर जल से नल, आयुष्मान भारत जैसे दर्जनों योजनाओं से किस तरह इन निम्न जातियों का जीवन बदल दिया है.
स्पष्ट है भारत की प्रगति और बढ़ती शक्ति से नाखुश विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अख़बारों में मोदी सरकार के खिलाफ जैसे एक सुनियोजित तरीके से भारतीय जनमत को प्रभावित करने की कोशिश हो रही है जिसमें मोदी के विरुद्ध अनेक नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं. पर लोकतंत्र के ये तथाकथित हिमायती दूसरी तरफ विपक्षी दलों के भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण, परिवारवाद, जातिवाद और क्षेत्रवाद आदि पर आँखें मूंद लेते हैं. दिलचस्प बल्कि इसे चिंता की बात भी कह सकते हैं कि मोदी और लोकसभा चुनाव को लेकर इन अंतरराष्ट्रीय अख़बारों और भारतीय विपक्ष के स्वर और सुर में काफी समानता दिखाई पड़ती है. क्या यह महज एक संयोग है? लेकिन विकसित भारत @2047 के लिए संकल्पित भारतीय जनता अपना हित बखूबी समझती है और इस अंतरराष्ट्रीय साजिश का 4 जून को मुहंतोड़ जवाब देगी, यही सबका आकलन है.
(लेखक-दिल्ली विश्वविद्यालय में सीनियर प्रोफेसर हैं)
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