पाकिस्तान का आका कहा जाने वाला चीन भारत के पड़ोस में अपना असर बढ़ाता जा रहा है। वहां अकूत पैसा देकर न सिर्फ उसने वहां की सब योजनाओं को अपने हाथ में ले लिया है, बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी उसकी मर्जी को सबसे पहले रखा जाने लगा है। यही वजह है कि ग्वादर में अपना शिकंजा और कसने की चीन ने नई चाल चली है और वह पूरे ग्वादर की बाड़बंदी करने पर तुला है। लेकिन ड्रैगन की इस हरकत से स्थानीय बलूचों में आक्रोश है।
पता चला है कि अपनी सीपीईसी परियोजना के तहत चीन ग्वादर बंदरगाह को पूरी तरह अपने शिकंजे में कसने की योजना बना चुका है। इसी योजना के अंतर्गत चीन पूरे ग्वादर के चारों तरफ बाड़ लगा रहा हैं। यही बाड़ अब बलूचिस्तान के लोगों में गुस्से की नई वजह बनी है। वहां के मानवाधिकारी एक्टीविस्ट इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं और शंकाएं जता रहे हैं। उनका कहना है कि कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन अब बलूचों को अपनी जकड़ में लेना चाहता है लेकिन बलूच अपने हक के लिए लड़ते रहेंगे।
चीन की इस हरकत पर पाकिस्तान की सरकार का क्या कहना है? बलूचों का कहना है कि सरकार तो ग्वादर बंदरगाह पर कब्जा करने की अपने आका की इस साजिश को जनता से छुपाने में जुटी है। ग्वादर बंदरगाह की सुरक्षा के नाम पर पूरे शहर को चारों तरफ से बाड़ में घेरना चीन की गलत मंशा ही उजागर करता है। चीन का यह कहना बेतुका है कि वह बाड़ इसलिए लगा रहा है जिससे आतंकवादी हमलों से बचा जा सके।
बलूचिस्तान के नेता, समाजकर्मी और स्थानीय लोग, कोई चीन के इस तर्क को मानने को तैयार नहीं हैं। वहां के मानवाधिकारी संगठन आम जनता के साथ बाड़ लगाने की चीन की योजना का विरोध करने के लिए कमर कस चुके हैं। इस बाबत जाने—माने बलूच कार्यकर्ता डॉ. महरंग बलूच ने सोशल मीडिया पर इस विषय पर जागरूकता लाने की कोशिश की है और ऐसे ‘सुरक्षा प्रयासों’ पर सवाल उठाए हैं।
बलूच मानते हैं कि कम्युनिस्ट चीन पाकिस्तान की सरकार में बैठे नेताओं को अपने झांसे में लेकर उनसे मनमानी करवाकर, पूरे ग्वादर पर अपना शिकंजा मजबूत करने की इच्छा रखता है। डॉ. बलूच कहते हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि चीन हर हाल में ग्वादर पर अपना काबू चाहता है। देश के नेता पहले ही चीन के पैसे से चकाचौंध हैं।’
अपनी पोस्ट में डॉ. बलूच लिखते हैं, ‘कोई अपने पैसे पर बन रही परियोजना की हिफाजत के नाम पर एक लाख से अधिक अवाम को पिंजरे में कैसे कैद कर सकता है, इससे कोई सुरक्षा नहीं होगी। लोगों का अपमान करना, उनके आने—जाने पर रोक लगाना, सुरक्षा की आड़ में खुले समंदर में मछली पकड़ने के उनके हक को छीनना और रास्ते में जह जगह लोगों से उनके आने—जाने के बारे में तहकीकात करना, ये कोई सुरक्षा के लिए है, नहीं यह तो लोगों को अपमानित करना है।’
बलूच मानते हैं कि कम्युनिस्ट चीन पाकिस्तान की सरकार में बैठे नेताओं को अपने झांसे में लेकर उनसे मनमानी करवाकर, पूरे ग्वादर पर अपना शिकंजा मजबूत करने की इच्छा रखता है। डॉ. बलूच कहते हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि चीन हर हाल में ग्वादर पर अपना काबू चाहता है। देश के नेता पहले ही चीन के पैसे से चकाचौंध हैं।’
इसमें संदेह नहीं है कि चीन बलूचों की आवाज को अनसुना करके ग्वादर को लेकर इस्लामाबाद पर अपना रौब चलाता है। बलूचिस्तान में जो विधानसभा है वह सिर्फ एक एजेंट है इस्लामाबाद और रावलपिंडी की इसलिए स्थानीय लोगों के दुख—दर्द से उसे कोई खास सरोकार कभी नहीं रहा है।
कुल मिलाकर ग्वादर इस बात पर उबल रहा है। स्थानीय नेता और जनता इस बाड़बंदी को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। वे किसी पिंजरे में कैद होकर नहीं रहना चाहते। अब समय बताएगा कि पाकिस्तान के हुक्मरान अपनी अवाम की तकलीफों पर गौर करेंगे या चीनी सिक्कों की खनक सुनकर अपना मुंह सिले रखेंगे!
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