उत्तराखंड ब्यूरो / देहरादून । उत्तराखंड में मत प्रतिशत गिरने की वजह बहुत सी सामने आ रही है। हालांकि निर्वाचन आयोग ने इस बार मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया लेकिन इसके बावजूद वोटिंग प्रतिशत पिछली बार की तुलना में भी गिर गया।
कांग्रेस समर्थक वोटर्स में दिखी निराशा
राजनीतिक समीक्षकों ने इस बारे में मंथन किया है। सबसे बड़ा कारण विपक्षी दल कांग्रेस, समर्थक कार्यकर्ताओं के रूप में सामने आया है। जानकारी के मुताबिक कांग्रेस कार्यकर्ता हताश निराश थे उन्होंने पहले ही अपने हथियार डाल दिए थे कि इस बार कांग्रेस के न तो प्रत्याशियों में दम दिखाई दिया और न ही उनके हाई कमान ने चुनाव को गंभीरता से लिया। जिस तरह से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने चुनाव से पूर्व, पार्टी को छोड़ना शुरू किया था उससे पार्टी की हालत और भी कमजोर हो गई। यही वजह थी कि कांग्रेस समर्थक वोटर हताश निराश में वोट डालने नही निकले। यहां तक की उनके बूथ पर पोलिंग एजेंट तक नहीं थे। बूथ पर कार्यकर्ता तब टिकता है जब उसके खाने पीने बैठने की उचित व्यवस्था हो जोकि नही के बराबर थी।
मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में नही दिखा उत्साह
कांग्रेस के वोट बैंक माने जाते मुस्लिम बाहुल्य इलाके में भी भी यही निराशा रही कि कांग्रेस में दम नहीं है, मुस्लिम बीजेपी को वो वोट देना नही चाहते। राजनीतिक समीक्षकों को ये उम्मीद थी कि जुम्मे की नमाज के बाद मुस्लिम वोटर वोट डालने के लिए निकलेंगे लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं, मुस्लिम क्षेत्रों के पोलिंग बूथ जो कि आम तौर पर लंबी कतारों के लिए जाने जाते थे वहां इस बार दोपहर बाद सन्नाटा पसरा रहा। यहां होने वाली पोलिंग आम तौर पर मत प्रतिशत को बढ़ाती रही है। लेकिन इस बार शायद ही किसी बूथ पर साठ फीसदी मतदान हुआ हो।
राजनीतिक जानकर ये मानते आए है कि परिवर्तन की अवस्था में पोलिंग ज्यादा होती है। इसलिए रिपीट होने की दशा में पोलिंग कम होती है। यानि बीजेपी या मोदी सत्ता में वापसी कर रहे है इस लिए भी पोलिंग कम हुई और बीजेपी का कैडर वोट पड़ गया।
हर चुनाव के बहाने
कुछ लोग कहते है कि चार दिन के वीकेंड को वजह से अभिजात्य वर्ग के कुछ वोटर बाहर निकल गए, लेकिन ये विषय हर चुनाव में होता है ये वर्ग पहले भी बाहर निकल जाता था इस बार भी छुट्टी पर निकल गया तो कोई नई बात नही हुई । मतदान के दिन विवाह समारोह बहुत थे इसलिए लोग बाहर निकल गए। निजी नौकरी पेशे में लगे युवा वर्ग में वोट के प्रति कोई रुचि नहीं रहती। इसी तरह गर्मी थी, प्रचार फीका रहा ऐसा अब हर बार हो रहा है। इसमें भी कोई नई बात नही रही।
अति प्रचार
एक समीक्षक ने ये जरूर कहा कि आएगा तो मोदी ही, मोदी अति प्रचार, भी मत प्रतिशत गिरने की एक वजह है। बीजेपी ने ज्यादा प्रचार कर दिया इसके विपरीत कांग्रेस और अन्य दलों ने प्रचार बहुत ही कम किया, इससे वोटर्स में एक बात गहरा गई कि कांग्रेस सत्ता में नही लौट पाएगी।
बूथ प्रबंधन में खामी
ऐसा भी बताया गया कि बीजेपी हो या कांग्रेस जिन पार्षदों ने दोबारा चुनाव नही लड़ना उन्होंने काम नही किया। उल्लेखनीय है कि स्थानीय निकाय का कार्यकाल लोकसभा चुनाव से पहले ही समाप्त हो गया था, बीजेपी के पन्ना प्रमुख सोशल मीडिया में ज्यादा दिखे, फील्ड पर कम दिखाई दिए, ऐसा बीजेपी के चुनाव प्रबंधन में भी खामी बताई गई।
ये भी जानकारी में आया कि निर्वाचन आयोग ने पोलिंग पर्ची को घर घर खुद ही पहुंचा दिया, जबकि पूर्व में बीजेपी ,कांग्रेस या अन्य दलों के बूथ एजेंट ये काम करते थे जिससे उनका वोटर के साथ आत्मीय भावनात्मक संबंध भी बनते थे।
सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों में भी नही दिखा उत्साह
एक बेहद रोचक जानकारी ये भी सामने आई है कि तमाम कोशिशों के बावजूद, सरकार से मोटा वेतन लेने वाले सरकारी कर्मचारी वर्ग ने भी मतदान करने में रुचि नहीं दिखाई, यदि सरकार के कर्मचारियों, निगम कर्मियों के हाथ पर ध्यान दे तो उनकी उंगली पर वोट स्याही का निशान नहीं मिलेगा। ऐसा क्यों हुआ ? क्या सरकार के प्रति नौकरशाही में नाराजगी थी या मतदान के प्रति उदासीनता?
बरहाल मत प्रतिशत गिरने से राजनीतिक समीक्षक और राजनीतिक दलों के नेता इस और जरूर माथा पची करने में लगे है आखिर क्या क्या कारण रहे कि मतदान कम हुआ और इसका चुनाव परिणामों में क्या असर पड़ेगा।
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