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गुजरात में मिला 4 करोड़ वर्ष पुराना सांप का जीवाश्म, सनातन धर्म के ‘वासुकि’ से है नाता

वैज्ञानिकों के अनुसार भारत से ही विदेशों में गए थे विशालकाय सर्प

by WEB DESK
Apr 21, 2024, 10:30 am IST
in गुजरात
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आपने वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, और कालिया नाग की कथा या कहानी तो सुनी ही होगी? इन सभी का वर्णन सनातन के कई धर्म ग्रंथों मिलता है। वासुकि को तो भगवान शिव अपने गले में विराजमान रखते है। वासुकि ने ही समुद्रमंथन के समय पर्वत को बांधने के लिए रस्सी का काम किया था। वे भगवान विष्णु के परम भक्त शेषनाग के बड़े भाई हैं, शेषनाग जो भगवान विष्णु को शैय्या के रूप में आराम देते हैं। ये सभी नाग अपने विशाल आकारों की वजह से भी जाने जाते हैं। अब गुजरात के कच्छ में पनान्ध्रो गाँव की भूरे कोयले के खादानों से इसके जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। खुदाई के दौरान वैज्ञानिकों को मिले जीवाश्म इस तरह के विशालकाय जीवों के अस्तित्व की पुष्टि करता है।

वैज्ञानिकों को जो जीवाश्म प्राप्त हुआ है उसकी लंबाई 11-15 मीटर है तथा इसकी गोलाई 17 इंच है। इस वजह से ये अब तक का सबसे बड़ा साँप है। ये 28 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान पर पनपता था। वैज्ञानिकों ने इसे ‘वासुकि इंडिकस’ नाम दिया गया है।

IIT रुड़की के वैज्ञानिकों की खोज से न सिर्फ प्राणियों के इवोल्यूशन का पता चला है बल्कि प्राचीन सरीसृपों से भारत के ताल्लुक का भी पता चलता है। ‘वासुकि’ साँपों का जन्म मूल रूप से भारत में हुआ और यूरेशिया के माध्यम से ये उत्तरी अफ्रीका तक पहुँचे। इन्हें गोंडवाना साँपों की श्रेणी में डाला गया है।

ये शोध-पत्र ‘Nature’ मैगजीन में भी प्रकाशित हुआ है।

IIT Roorkee's Prof. Sunil Bajpai & Debajit Datta discovered Vasuki Indicus, a 47-million-year-old snake species in Kutch, Gujarat. Estimated at 11-15 meters, this extinct snake sheds light on India's prehistoric biodiversity. Published in Scientific Reports. #SnakeDiscovery pic.twitter.com/ruLsfgPQCc

— IIT Roorkee (@iitroorkee) April 18, 2024

IIT रुड़की के ‘डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंसेंज’ के अध्यक्ष सुनील वाजपेयी ने बताया कि “इन साँपों की लंबाई 36 फ़ीट से लेकर 49.22 फ़ीट होती थी। जो कोलंबिया के टाइटेनोबोआ से भी बड़ा है, यह डायनासोर के काल में पाया जाता था और जिसे अब तक का सबसे बड़ा साँप माना गया है”।

उन्होंने बताया ‘वासुकि इंडिकस’ धीरे-धीरे चलता था और घात लगा कर अपने शिकार पर हमला करता था और इसकी चाल-ढाल बिलकुल एनाकोंडा की तरह रहती थी। ये लगभग 12,000 वर्ष पहले विलुप्त हुआ था। ये कछुए, व्हेल और मगरमच्छ की प्राचीन प्रजातियों को खाता रहा होगा”।

बता दें की वैज्ञानिकों ने 27 ऐसे अस्थिखंड प्राप्त किए हैं, जो पूरी तरह सुरक्षित हैं। ये जीवाश्म 2005 में ही मिले थे लेकिन अन्य प्रोजेक्ट्स की प्राथमिकता के कारण इस पर गहन अध्ययन नहीं हुआ था। पहले सबको लगा था कि ये मगरमच्छ का है, लेकिन दोबारा अध्ययन होने के बाद ये इतिहास में दर्ज हो गया। अब ये खोज हमें आदिनूतन युग यानी 5.60 से 3.39 करोड़ वर्ष पूर्व तक लेकर जाती है।

हालाँकि, अब तक साँप का सिर नहीं मिला है। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है कि ये अपने सिर को किसी ऊँचे स्थान पर टिकाने के बाद अपने बाकी के शरीर को चारों ओर लपेट लेता रहा होगा। इसे ‘मैडसोइड’ सर्प-प्रजाति के अंतर्गत डाला गया है। इसकी रीढ़ की हड्डी का सबसे बड़ा हिस्सा 4 इंच का होता था। ये ज़हरीला नहीं होता था।

उल्लेखनीय है की इसी तरह राजस्थान के जैसलमेर में शाकाहारी डायनासोर की खोज हुई थी। जो 16.70 करोड़ वर्ष पहले अस्तित्व में था।

Topics: snake fossilगुजरात समाचारgujarat news4 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्मकच्छ का पनान्ध्रो गाँवभूरे कोयले की खादानसांप का जीवाश्म4 crore years old fossilPanandhro village of Kutchbrown coal mine
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