प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17वीं लोकसभा के अंतिम सत्र में आत्मविश्वास के साथ कहा था, ‘अबकी बार 400 पार। अकेले भाजपा को 370 सीटें मिलेंगी और राजग गठबंधन चार सौ का आंकड़ा पार करेगा। ज्यादातर पर्यवेक्षकों और चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों की राय है कि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एकबार फिर से जीतकर आने वाली है। भारतीय राजनीति के गणित को समझना बहुत सरल नहीं है। फिर भी करन थापर और रामचंद्र गुहा जैसे अपेक्षाकृत भाजपा से दूरी रखने वाले टिप्पणीकारों को भी लगता है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार तीसरी बार बन सकती है।
कुछ पर्यवेक्षक इंडी गठबंधन की ओर देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि भाजपा जीत भी जाए, पर इंडी गठबंधन के कारण यह जीत उतनी बड़ी नहीं होगी, जैसा कि दावा किया जा रहा है। पर समय के साथ यह गठबंधन हवा होता जा रहा है। पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और जम्मू-कश्मीर में गठबंधन के सिपाही एक-दूसरे पर तलवारें चला रहे हैं। मोटी राय यह है कि भारतीय जनता पार्टी की विजय में उत्तर के राज्यों की भूमिका सबसे बड़ी होगी। इन 10 राज्यों और दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और चंडीगढ़ के केंद्र-शासित क्षेत्रों में कुल मिलाकर 245 लोकसभा सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इनमें से 163 सीटों पर सफलता मिली थी और 29 सीटों पर उसके सहयोगी दल जीतकर आए थे। उत्तर की इस सफलता के बाद गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं, जहां से पार्टी को बेहतर परिणाम मिलते हैं।
राजग और ‘इंडी’ की संरचना में फर्क है। राजग के केंद्र में भाजपा है। यहां शेष दलों की अहमियत अपेक्षाकृत कम है। ‘इंडी’ के केंद्र में कांग्रेस है, पर उसमें परिधि के दलों का हस्तक्षेप राजग के सहयोगी दलों की तुलना में ज्यादा है। जेडीयू और तृणमूल अब अलग हैं और केरल में वामपंथी अलग। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का और बिहार में राजद का दबाव कांग्रेस पर रहेगा। हालांकि कांग्रेस ने दोनों राज्यों में क्रमश: 17 और 9 सीटें हासिल कर ली हैं, पर उसकी ‘स्ट्राइक रेट’ चिंता का विषय है।
गणित और रसायन
‘इंडी’ गठबंधन ने उस गणित को गढ़ने का प्रयास किया है, जिसके सहारे भाजपा के प्रत्याशियों के सामने विरोधी दलों का एक ही प्रत्याशी खड़ा हो। पर अभी तक यह सब हुआ नहीं है। मोटे तौर पर यह ‘वन-टू-वन’ का गणित है। यानी भाजपा के प्रत्याशियों के सामने विपक्ष का एक प्रत्याशी। हालांकि ऐसा हुआ नहीं है, फिर भी कल्पना करें कि भाजपा को देशभर में 40 फीसदी तक वोट मिलें, तो क्या शेष 60 प्रतिशत वोट भाजपा-विरोधी होंगे?
2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन इसी गणित के आधार पर हुआ था, जो फेल हो गया। सपा-बसपा गठजोड़ के पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठजोड़ भी विफल रहा था। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा, रालोद, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), महान दल और जनवादी पार्टी (समाजवादी) का गठबंधन आंशिक रूप से सफल भी हुआ, पर वह गठजोड़ अब नहीं है। ऐसा कोई सीधा गणित नहीं है कि दलों की दोस्ती हुई, तो वोटरों की भी हो जाएगी।
सब पर भारी लाभार्थी
‘इंडी’ गठबंधन ने उत्तर भारत में ओबीसी और दक्षिण में क्षेत्रीय-स्वायत्तता को मुद्दा बनाने का निश्चय किया है। उनका मुख्य नारा है ‘मोदी हटाओ।’ उनकी बात पर मतदाता यकीन क्यों करें और इस गठबंधन के एक बने रहने की गारंटी क्या है? उधर बीजेपी की ‘लाभार्थी’ अपील काफी भारी है। राम-मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता, ट्रिपल तलाक और महिला आरक्षण जैसे मसलों के साथ गरीबों को मुफ्त अनाज, उज्ज्वला, जनधन, नल से जल वगैरह जनता को लुभाते हैं। पार्टी इनके साथ स्वच्छ भारत और वैश्विक स्तर पर भारत का कद बढ़ने से लेकर चंद्रयान और गगनयान के मुद्दों पर भी चुनाव लड़ रही है। डिजिटल अर्थव्यवस्था, वंदे भारत, बुलेट ट्रेन, राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत को दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प वोटर को लुभाएगा या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। अब एक नजर अलग-अलग राज्यों पर डालते हैं।
उत्तर प्रदेश
1977 में जनता पार्टी की जीत में और 2014 में भारतीय जनता पार्टी की विजय में सबसे बड़ी भूमिका उत्तर प्रदेश ने अदा की थी। यहां की 80 सीटों में से 2014 में भाजपा ने 71 सीटें जीती थीं और उसके सहयोगी अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थीं। 2019 में भाजपा की सीटों की संख्या 62 रह गई थी, दो सीटें उसके सहयोगी अपना दल (एस) ने जीतीं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि इस बार हम सभी 80 सीटों पर विजय प्राप्त करेंगे।
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा व राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन था, पर रालोद इस बार भाजपा के साथ है। बसपा इस चुनाव में अकेले उतर रही है। असदुद्दीन ओवेसी का एआईएमआईएम भी कुछ दूसरे क्षेत्रीय संगठनों के साथ गठबंधन करके मैदान में है। भाजपानीत राजग में राष्ट्रीय लोक दल, अनुप्रिया पटेल की अगुआई वाला अपना दल (सोनेलाल), ओम प्रकाश राजभर की अगुआई वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और संजय निषाद की पार्टी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) ऐसी पार्टियां हैं, जिनसे भाजपा का सामाजिक आधार व्यापक हो जाता है। उधर ‘इंडी’ ब्लॉक में सपा और कांग्रेस के अलावा केशव देव मौर्य का महान दल शामिल है। सपा ने यूपी में कांग्रेस को 17 सीटें दी हैं, बदले में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में खजुराहो की एक सीट सपा को दी है। उत्तराखंड की पांच सीटों पर समाजवादी पार्टी कांग्रेस को समर्थन दे रही है।
उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजनीति के दो प्रतीक हैं। भाजपा के राजनीतिक वर्चस्व का प्रतीक है वाराणसी, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं। वहीं कांग्रेस का अभेद्य किला रहा है रायबरेली। 2014 और 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस के इस किले को भाजपा भेद नहीं पाई थी। इस बार यह किला भी टूट सकता है। कांग्रेस ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमेठी और रायबरेली में अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। 2019 के चुनाव में रायबरेली से सोनिया गांधी जीती थीं, पर इस बार उन्होंने अपना हाथ खींच लिया और वे राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंची हैं। स्मृति ईरानी के हाथों राहुल गांधी की पराजय के बाद से अमेठी को लेकर भी कांग्रेस का अनिश्चय बना हुआ है। उन्होंने केरल के वायनाड से इस बार फिर नामांकन कर दिया है। पिछले चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी के मुकाबले सपा और बसपा दोनों ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे।
उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर भाजपा लगातार तीन या उससे ज्यादा बार चुनाव जीत चुकी है। इनमें लखनऊ शामिल है, जहां से पहले अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीतते रहे हैं और अब राजनाथ सिंह खड़े होते हैं। लखनऊ में 1991 के बाद से अब तक हुए आठ चुनावों में लगातार भाजपा जीती है। गौतम बुद्ध नगर और गाजियाबाद लोकसभा सीटें 2009 में नई बनी हैं। गाजियाबाद पहले हापुड़ सीट के नाम से जानी जाती थी। इस सीट पर 1991 के बाद से केवल 2004 में एक बार बीजेपी हारी है। गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट को पहले खुर्जा नाम से जाना जाता था। यहां 1998 से लगातार भाजपा जीत रही है। बरेली में 1989 से वह लगातार जीत दर्ज कर रही थी। 2009 में एक बार यह सीट कांग्रेस ने जीती। यहां 2014 से फिर भाजपा काबिज है। राज्य में 48 सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी लगातार दो बार चुनाव जीत चुकी है।
बिहार
उत्तर प्रदेश के बाद उत्तर भारत का दूसरा महत्वपूर्ण राज्य है बिहार, जहां लोकसभा की 40 सीटें हैं। दोनों राज्यों में जातीय और पांथिक-संरचनाएं काम करती हैं। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने अपना सामाजिक सूत्र ‘पीडीए’ (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) बनाया है तो बिहार में तेजस्वी यादव ने ‘बाप’ (बहुजन अगड़ा, आधी आबादी और पुअर)। पर मूलत: दोनों ही राज्यों का एक ही फॉर्मूला है एम-वाई यानी मुस्लिम और यादव। बिहार में राजद की नजर 13 ऐसे लोकसभा क्षेत्रों पर है जहां मुस्लिम आबादी 12 से 65 प्रतिशत तक है। इसके अलावा यादव बहुल क्षेत्रों पर भी पार्टी की नजर है।
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद यहां से ही महागठबंधन की परिकल्पना बाहर निकली थी, जो आज इंडी ब्लॉक के रूप में सामने है। इस गठबंधन के प्रेरक नीतीश कुमार के राजग में वापस आ जाने के बाद इंडी गठबंधन के तेवरों में कमी है। राजग ने रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को फिर से अपने साथ जोड़कर गठबंधन को मजबूत कर लिया है। 2019 के चुनाव में राजग ने 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी और इस बार उस सफलता को दोहराने का दावा किया जा रहा है। महागठबंधन के सीट बंटवारे में राजद ने अपने पास 26 सीटें रखी हैं, जिनमें से उसने तीन सीटें विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को दी हैं। 23 सीटों पर राजद खुद मैदान में है। शेष बची 14 सीटें महागठबंधन के अन्य सहयोगियों को दी गई हैं। कांग्रेस 9, सीपीआईएमएल 3, सीपीआईएम 1। सामाजिक समीकरणों की दृष्टि से देखें, तो राजद ने अपने पास जो सीटें रखी हैं, उनमें मुसलमान और यादव बहुल आबादी है। इनमें किशनगंज के अलावा कटिहार, अररिया, पूर्णिया, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, पश्चिमी चंपारण, सिवान, शिवहर, खगड़िया, सुपौल, भागलपुर, मधेपुरा, औरंगाबाद और गया शामिल हैं। किशनगंज क्षेत्र में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है, करीब 67 प्रतिशत, पर बंटवारे में यह सीट कांग्रेस को मिली है। राजग में भाजपा 17 सीटों पर, जेडीयू 16 सीटों, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी 5 सीटों पर, जीतन राम मांझी की ‘हम’ और उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोकमोर्चा एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
मध्य प्रदेश
उत्तर भारत का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण राज्य है मध्य प्रदेश, जहां लोकसभा की 29 सीटें हैं। यहां आमतौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले की परंपरा रही है। गठबंधन के तहत इस बार कांग्रेस ने खजुराहो सीट सपा को दी थी, लेकिन उसकी प्रत्याशी मीरा दीप नारायण यादव का नामांकन रद्द हो गया है। भाजपा सभी 29 सीटों पर और कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विदिशा से टिकट दिया है और कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को राजगढ़ से। गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव मैदान में हैं। इस सीट पर खासतौर से निगाहें रहेंगी, क्योंकि कांग्रेस पार्टी इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई मानकर चल रही है।
राजस्थान
राजस्थान में भी प्राय: सीधे मुकाबले होते हैं। इस राज्य में पिछले दस साल से कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने अपने गठबंधन सहयोगियों के लिए दो सीटें छोड़ी हैं। भाजपा ने सभी 25 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। बाड़मेर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा लगातार तीसरी बार चुनाव में पिछला प्रदर्शन दोहराना चाहती है, जबकि कांग्रेस कम से कम 2009 वाला प्रदर्शन दोहराना चाहेगी।
छत्तीसगढ़
विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर है। ढाई दशक पहले गठित इस राज्य के लोकसभा-चुनावों में आमतौर पर भाजपा का पलड़ा भारी रहता है। राज्य के गठन के बाद 2004 में हुए आम चुनाव से लेकर 2014 तीन चुनावों में राज्य की 11 में से 10 सीटों पर भाजपा जीती। 2019 में कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन सुधारा और दो सीटें जीत लीं। कुछ महीने पहले प्रदेश की सत्ता में भाजपा की वापसी हुई है। पार्टी का प्रयास है कि सभी 11 सीटें जीतकर इतिहास बनाया जाए। कांग्रेस ने राजनांदगांव से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। यहां उनका सीधा मुकाबला भाजपा प्रत्याशी संतोष पाण्डेय से है।
भाजपा ने ठाना, सर्वेक्षणों ने माना
हाल ही में विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा देश के अलग-अलग स्थानों पर किए गए विस्तृत सर्वेक्षण भाजपा और राजग के लिए भारी जनादेश की मुनादी कर रहे हैं। भले ही सर्वेक्षणों में सीटों के आंकड़ों में थोड़े-बहुत का अंतर हो, लेकिन सभी के अनुमान 335 से 398 के बीच ही हैं, जो भाजपा के ‘400 पार’के लक्ष्य के काफी निकट हैं।
टाइम्स नाऊ-नवभारत-ईजीटी द्वारा अप्रैल में जारी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को 384 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। इसमें भाजपा सिर्फ भाजपा को 328-359 सीटें मिलने की बात कही गई है। कांग्रेस को मात्र 27-47 सीटें, जबकि इंडी गठबंधन के 118 सीटों से ही संतोष करना पड़ेगा। सर्वेक्षण में 41 सीटों को अन्य दलों के खाते में दिखाया गया है।
इससे पहले टाइम्स नाउ-नवभारत-ईजीटी ने मार्च 2024 के सर्वेक्षण में दावा किया था कि राजग को 358-398 सीटें मिल सकती हैं। इसके अनुसार, इंडी गठबंधन को 110-130, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को 21-22, ओडिशा में बीजद को 10-11, जबकि अन्य को 10-15 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी। इसी ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद दिसंबर 2023 में जारी सर्वेक्षण में राजग को 323, इंडी गठबंधन को 163 और अन्य को 57 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। साथ ही कहा गया था कि राजग को 44 प्रतिशत, इंडी गठबंधन को 39 प्रतिशत और अन्य को 17 प्रतिशत वोट मिल सकता है।
इंडिया टीवी-सीएनएक्स द्वारा मार्च 2024 में जारी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में भी राजग को 400 से थोड़ी कम सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। इसमें कहा गया कि राजग को 378 सीटें मिल सकती हैं। अकेले भाजपा को 335 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं, कांग्रेस नीत इंडी गठबंधन महज 98 सीटों पर सिमट सकता है। इसमें तृणमूल कांग्रेस को शामिल नहीं किया गया है।
इंडिया टुडे-सी-वोटर ने भी एक सर्वेक्षण किया था, जिसे ‘मूड आफ द नेशन’ नाम दिया था। डेढ़ माह तक चल इस सर्वेक्षण में देशभर के डेढ़ लाख लोगों को शामिल किया गया था, जबकि 35,000 लोगों से सीधी बात की गई थी। फरवरी 2024 में जारी सर्वेक्षण के अनुसार, राजग को 335 सीटें, इंडी गठबंधन को 166 और अन्य को 42 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी। अकेले भाजपा को 304, कांग्रेस को 71 और अन्य को 168 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था।
झारखंड
छत्तीसगढ़ की तरह झारखंड भी भारतीय जनता पार्टी के लिए अपनी संख्या बढ़ाने का मौका लेकर आ रहा है। पार्टी का दावा है कि हम झारखंड की सभी 14 लोकसभा सीटें जीतेंगे। साल के अंत में राज्य विधानसभा के चुनाव भी हैं, इस लिहाज से लोकसभा चुनाव उसकी पृष्ठभूमि भी तैयार करेंगे। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भाजपा से सामने खड़े इंडी गठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर असहमतियां चल रही हैं। वामपंथी दलों ने चार सीटों से अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है।
पंजाब
पंजाब में गठबंधन राजनीति ध्वस्त है। ज्यादातर महत्वपूर्ण दल अलग होकर चुनाव में उतरे हैं। राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार है। वह ‘इंडी’ गठबंधन का हिस्सा है, लेकिन पंजाब में बात नहीं बनी। भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच भी गठबंधन नहीं हो पाया। कुछ चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण भाजपा को चार से छह सीटें दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की आपसी लड़ाई में भी सीटें बिखरेंगी। पंजाब की राजनीति तीन प्रमुख क्षेत्रों माझा, दोआबा और मालवा में बंटी है। माझा क्षेत्र, रावी और ब्यास नदियों के बीच में पड़ता है। दोआबा, ब्यास नदी से शुरू होकर सतलुज तक जाता है। सतलुज से परे का क्षेत्र मालवा कहलाता है। माझा क्षेत्र की तीन सीटों- गुरदासपुर, अमृतसर और खडूर साहिब में भाजपा की संभावनाएं बेहतर हैं। गुरदासपुर में इस बार सनी देओल के स्थान पर भाजपा ने दिनेश सिंह बब्बू को टिकट दिया है। अमृतसर में भी भाजपा की संभावनाएं हैं। दोआबा क्षेत्र की तीन सीटें हैं—जालंधर, होशियारपुर और आनंदपुर साहिब। होशियारपुर सीट भाजपा को मिल सकती है। मालवा की सात सीटें हैं लुधियाना, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, फिरोजपुर, बठिंडा, संगरूर और पटियाला। इस इलाके में आम आदमी पार्टी का प्रभाव है। कांग्रेस के रवनीत सिंह बिट्टू लुधियाना से दो बार सांसद रहे हैं। वे इस बार भाजपा में हैं।
हरियाणा
हाल में हुए एक सर्वे के अनुसार हरियाणा में भाजपा को एक बार फिर से भारी विजय मिलने की संभावना है। राज्य की 10 सीटों में से भाजपा 9 से 10 सीटें जीत सकती है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के इंडी गठबंधन को ज्यादा से ज्यादा एक सीट मिल सकती है। वहीं हाल ही में भाजपा से अलग हुई जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल का इन लोकसभा चुनाव में खाता भी खुलता नजर नहीं आ रहा है।
दिल्ली
कुछ रोचक मुकाबले राजधानी दिल्ली में होंगे, जहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो गया है। दिल्ली की सात सीटों में से चार पर ‘आआपा’ और तीन पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। भारतीय जनता पार्टी ने केवल एक को छोड़कर सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी बदल दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए ये चुनाव केवल लोकसभा की सात सीटों के लिहाज से ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि 2025 के विधानसभा चुनावों के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं। यदि 2025 में दिल्ली से ‘आआपा’ सरकार की विदाई हो सकी, तो अनेक समस्याओं का समाधान होगा। इस लिहाज से इसबार के परिणाम बेहद रोचक होंगे।
पर्वतीय राज्य
हालांकि पिछले साल हुए हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सफलता मिली, पर संगठनात्मक दृष्टि से पार्टी की हालत खराब है। अपनी संगठन क्षमता के आधार पर भाजपा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की नौ में से सभी को या ज्यादा से ज्यादा सीटों को जीत सकती है। इंडी-गठबंधन के नाम पर दोनों राज्यों में सिर्फ कांग्रेस है। उत्तराखंड के तराई में बहुजन समाज पार्टी का भी प्रभाव है, पर वह इस समय सबसे अलग है। इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। समाजवादी पार्टी ने उत्तराखंड में कांग्रेस को समर्थन करने का फैसला किया है, पर उसका असर ही कितना है?
जम्मू-कश्मीर
जिस तरह से बिहार ने विरोधी दलों को महागठबंधन की परिकल्पना दी, उसी तरह जम्मू-कश्मीर ने 2020 में ‘गुपकार गठबंधन’ का विचार दिया। अगस्त, 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद सारे विरोधी दल एक मंच पर आ गए हैं। पिछले साल ‘इंडिया गठबंधन’ की स्थापना के समय भी ऐसा ही लगा, जब पीपीपी की महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला एक मंच पर आ गए। पर अब जब चुनाव लड़ने का मौका आया है, यह गठबंधन बिखर गया है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब दो केंद्र शासित क्षेत्र हैं, पर लोकसभा की सीटों की संरचना में ज्यादा बदलाव नहीं है। पांच सीटें जम्मू-कश्मीर में और एक लद्दाख में है। राज्य की राजनीति में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के अलावा जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों का अच्छा खासा प्रभाव रहा है।
इस बार जम्मू कश्मीर की अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, डेमोक्रेटिक आजाद प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीएपी) के प्रमुख गुलाम नबी आजाद के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी। यहां से नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपना प्रत्याशी भी उतारा है। चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठजोड़ हो गया है। अनंतनाग, बारामूला और श्रीनगर की तीन सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे और ऊधमपुर, जम्मू और लद्दाख की सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे।
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