भोजशाला ही ‘सरस्वती मंदिर’ था। इस बात का दावा पूर्व पुरातत्वविद के के मुहम्मद ने किया है। उनका कहना है कि भोजशाला, जिसे मुस्लिम पक्ष ‘कमल मस्जिद’ असल में वो कोई मस्जिद नहीं, बल्कि सरस्वती मंदिर था। लेकिन बाद में इस्लामवादियों ने इस्लामी इबादतगाह में बदल दिया।
केके मुहम्मद का कहना है कि धार स्थित भोजशाला के बारे में ये ऐतिहासिक तथ्य है कि ये सरस्वती मंदिर ही था। बाद में इसे मस्जिद बनाया गया। केके मुहम्मद पूजा स्थल अधिनियम 1991 का हवाला देते कहते हैं कि इस कानून के तहत किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति आधार वर्ष 1947 निर्धारित है। उस वर्ष में अगर ये एक मंदिर था तो ये मंदिर ही रहेगा और अगर ये मस्जिद था तो ये मस्जिद ही रहेगा।
इसके साथ ही पूर्व पुरातत्वविद ने हिन्दुओं और मुसलमानों से कोर्ट के फैसलों का सम्मान करने की अपील की है। उल्लेखनीय है कि हिन्दू समुदाय लगातार ये दावा करता आ रहा है कि यहां पर कोई मस्जिद कभी थी ही नहीं, बल्कि ये मां सरस्वती का मंदिर था।
बाबरी ढांचे के नीचे की थी राम मंदिर की पुष्टि
गौरतलब है कि पद्म पुरस्कार से सम्मानित केके मुहम्मद वही पुरातत्व विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने अयोध्या में कथित बाबरी ढांचे के नीचे राम मंदिर के अवशेषों के होने का पता लगाया था। वह 1976-77 में प्रोफेसर बीबी लाल के नेतृत्व में खुदाई टीम का हिस्सा थे।
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हो रहा सर्वे
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के आदेश पर धार स्थित भोजशाला का एएसआई सर्वे किया जा रहा है। दो दिन का सर्वे हो चुका है। अब तक के सर्वे में जांच दल को कमल के निशान, मूर्ति के निशान आदि मिले हैं।
क्या कहता है इतिहास
भारतीय इतिहास में परमारवंशीय राजा भोजदेव (संक्षिप्त नाम राजा भोज) का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। राजा भोज का शासनकाल 1000 से 1055 ई. तक रहा। वे मालवा स्थित उज्जयिनी (अब उज्जैन) के महान राजा विक्रमादित्य की वंश परंपरा के 11वें राजा थे। राजा भोज के शासनकाल के पूर्व यहां की राजधानी उज्जयिनी हुआ करती थी, जिसे राजा भोज ने अपने शासन काल के दौरान धार में स्थानांतरित कर दिया था।
राजा भोज चूंकि कला एवं शिक्षा के रक्षक थे, इसलिए उन्होंने अपने शासनकाल में कई जगहों पर ‘भोजशालाओं’ की स्थापना की। उनमें धार स्थित भोजशाला विश्वविख्यात है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि भोजशाला दो शब्दों से मिलकर बना है- भोज एवं शाला। अर्थात् राजा भोज द्वारा स्थापित शाला। मगर यह केवल बच्चों की शाला नहीं थी, बल्कि एक असाधारण विश्वविद्यालय था, जहां अध्ययन के लिए देश-विदेश से भी छात्र आया करते थे।
ए.एस.आई. के भोपाल परिक्षेत्र के सर्वे के अनुसार इस समय भोजशाला में जो कथित मस्जिद है, उसमें सरस्वती मंदिर के प्रमाण मिलते हैं। ब्रिटिश लेखक कर्नल जॉन मैल्क्म अपनी किताब ‘हिस्ट्री आफ मालवा’ के पेज नंबर 27 पर लिखते हैं, ‘‘मुगलों का बार-बार आक्रमण परेशानियों की एक लंबी शृंखला के अलावा कुछ नहीं था। मुगलों द्वारा बार-बार जमीन हड़पने से इस प्रांत (मालवा) की सीमाएं बदलती रही हैं। हालांकि यह तथ्य भी एकदम स्पष्ट है कि भारत केवल आंशिक रूप से ही अधीन (परतंत्र) रहा है, क्योंकि हमें भारत के लगभग हर जिले या प्रांत में हिंदू राजा मिलते हैं, जिन्होंने आक्रामकों का हर प्रकार से भरपूर विरोध किया।’’ इसके अलावा विभिन्न ब्रिटिश विद्वानों ने अपने शोधों में इस जगह पर स्थित शिलालेखों पर संस्कृत और प्राकृत भाषा में वाग्देवी, व्याकरणिक नियम इत्यादि पर लिखित जानकारी होने का वर्णन किया है।
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