केरल से हैरान करने वाला मामला प्रकाश में आया है, जहां ऐसा प्रतीत होता है कि वामपंथी सरकार में हत्या, बलात्कार के आरोपियों का पुलिस की कस्टडी से फरार होना आम बात हो गई है। केरल जेल विभाग की एक चौकाने वाली रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाए 67 कैदी पुलिस की गिरफ्त से फरार हो गए, जिनका कहीं अता-पता नहीं चल रहा है।
केरल कौमुदी के मुताबिक, कैदियों के फरार होने का ये आंकड़ा 1990 से 2022 तक का है। इन सभी मामलों का खुलासा तब हुआ जब पिछले दिनों कोझिकोड में एक युवती की हत्या और आरोपी के एक अन्य रेप के मामले में दोषी होने का पता चला।
तीन साल में 42 फरार
पता चला है कि केवल बीते 3 वर्षों में ही रिमांड के दौरान 42 आरोपी पुलिस को चकमा देकर फरार हो गए। इसमें से 17 आरोपियों का पुलिस अब तक पता नहीं लगा पाई है। फरार हुए ये आरोपी हत्या, रेप, डकैती और महिलाओं के खिलाफ अपराधों में संलिप्त पाए गए थे। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये रिमांड आरोपी कोर्ट और अस्पताल आने-जाने के दौरान पुलिसकर्मियों को धोखा देकर फरार हो जाते हैं।
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खास बात ये है कि 1990 से अब तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पुलिस की गिरफ्त से फरार होने वाले पहले आरोपी को छिपे हुए 34 साल बीत गए हैं, लेकिन पुलिस उसे ढूंढ नहीं पाई है या पिर ढूंढने की कोशिश ही नहीं की। इसकी पहचान दोषी रमन उर्फ सुब्रमण्यम नेट्टुकलथेरी ओपन जेल से पैरोल पर गया था। उसके खिलाफ मामला पोलाची पुलिस ने दर्ज किया था। वह 4 अगस्त 1990 को पैरोल पर जेल से बाहर गया था और उसे 6 सितंबर को जेल में वापस आना था, लेकिन वो लौटा ही नहीं।
इसी तरह से फरार होने वाला आखिरी कैदी अनिल कुमार नाम का व्यक्ति था, जो कि हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाया हुआ था। अंतकन्नन के नाम से कुख्यात अनिल कुमार 29 अगस्त 2022 को पैरोल पर बाहर गया और फिर दोबारा नहीं लौटा।
किन्हें मिलती है पैरोल
गौरतलब है कि एक कैदी को आपातकालीन और साधारण अवकाश के तौर पर पैरोल दिया जाता है। ये पैरोल 2 वर्ष की सजा पूरी कर चुके कैदी को ही दिया जाता है। एक कैदी को केवल 60 दिन की पैरोल दी जा सकती है, जबकि एक बार में 15 या 30 दिन से अधिक की पैरोल नहीं दी जा सकती। साल में दो से चार बार इसकी इजाजत दी जा सकती है। हालांकि, आम नेता सत्येंद्र जैन 7 माह तक जेल से बाहर रहे।
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