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गोधरा कांड: इस्लामी आतंक का वो वीभत्स चेहरा, जब अयोध्या से लौटे 59 हिन्दुओं को जिंदा जला डाला

कट्टरपंथियों द्वारा जलाई गई साबरमती एक्सप्रेस की एस 6 बोगी में मरने वालों में 25 बच्चे और 25 महिलाएं भी थीं।

by Kuldeep Singh
Feb 27, 2024, 10:21 am IST
in गुजरात
साबरमती एक्सप्रेस में रामभक्तों के कोच संख्या एस 6 को कट्टरपंथी दंगाइयों ने  गोधरा रेलवे स्टेशन के पास आग के हवाले कर दिया था।

साबरमती एक्सप्रेस में रामभक्तों के कोच संख्या एस 6 को कट्टरपंथी दंगाइयों ने गोधरा रेलवे स्टेशन के पास आग के हवाले कर दिया था।

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27 फरवरी 2002 ये वो तारीख है जिस दिन गुजरात के गोधरा में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने साजिश के तहत अयोध्या से लौटे कारसेवकों को गोधरा ट्रेन में बंद करके जिंदा जला दिया था। यही वो घटना थी, जिसने गोधरा में हिंसा को जन्म दिया। गोधरा में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा नरसंहार के बाद भड़के दंगों ने 1000 जानें लीं। इनमें मरने वाले मुसलमान और हिन्दू दोनों थे।

इसके बाद कथित लिबरलों, वामपंथियों और कथित बुद्धिजीवियों का विलाप शुरू होता है। ये सभी मिलकर गुजरात के तब के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों और अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए साम्प्रदायिक दंगों को ‘नस्लीय संहार’, स्टेट टेररिज्म औऱ मुस्लिमों के खिलाफ सामूहिक हत्या बताते हुए दुष्प्रचार फैलाना शुरू कर दिया। जबकि, तत्कालीन राज्य सरकार ने इस दंगे को रोकने की कोशिशें की थी, अन्यथा इससे भी बड़ा हादसा होने का खतरा था।

इस मामले की जांच कर रही नानावटी आयोग की रिपोर्ट को बुधवार, 11 दिसंबर 2019 को गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने विधानसभा में पेश किया। ये रिपोर्ट पहले ही आ गई थी, लेकिन इसे पेश करने में पांच साल का वक्त लग गया था। हालांकि, नानावटी-मेहता आयोग ने तत्कालीन राज्य प्रशासन, मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों को प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से किसी भी मिलीभगत के आरोप से मुक्त कर दिया और बड़े पैमाने पर दंगों को आयोजित करने के किसी भी षडयन्त्र को भी नकार दिया। आयोग ने दंगों को किसी भी ‘पूर्व नियोजित षडयन्त्र’ या ‘सुनियोजित हिंसा’ का परिणाम कहने से मना कर दिया। 1,500 पन्नों और नौ खंडों वाली अपनी रिपोर्ट में आयोग ने स्पष्ट कहा ‘यह दिखाने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है कि इन आक्रमणों को राज्य के किसी मंत्री द्वारा प्रेरित, उत्तेजित या बढ़ावा दिया गया था।’

इसी के साथ ही वामपंथी बुद्धिजीवियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा गढ़े गए सभी झूठों का पर्दाफाश हो गया। नानावटी आयोग ने स्पष्ट कहा कि गोधरा कांड के बाद हुए सांप्रदायिक दंगे वास्तव में उन घटनाओं के बाद प्रतिक्रिया में हुए थे। रिपोर्ट में कहा गया, ‘गोधरा की घटना के कारण, हिन्दू समुदाय का बड़ा वर्ग अत्यंत क्रुद्ध हो गया था।’

इसे भी पढ़ें: गोधरा कांड: 27 फरवरी को रामभक्तों को साबरमती ट्रेन के कोच S 6 में जिंदा जला दिया गया था, प्रत्यक्षदर्शी से विशेष बातचीत

गुजरात सरकार ने भी जांच के लिए बनाया था आयोग

उल्लेखनीय है कि गोधरा कांड की जांच के लिए 2002 में गुजरात सरकार ने त्वरित एक्शन लेते हुए एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था, लेकिन बाद में इसका पुनर्गठन किया गया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जी टी नानावती को इसका अध्यक्ष और गुजरात उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के जी शाह को सदस्य बनाया गया। न्यायमूर्ति शाह की मृत्यु के बाद, न्यायमूर्ति अक्षय मेहता ने उनकी जगह ली।

कैसे जली गोधरा में ट्रेन

आज ही के दिन 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से एक कार्यक्रम में शामिल होकर हिन्दू तीर्थयात्री वापस लौट रहे थे। जब ट्रेन गोधरा स्टेशन पर पहुंची तो पहले से तय प्लान के तहत साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी को बंद कर दिया गया। इसके बाद कट्टरपंथियों ने 59 हिन्दुओं को जिंदा जला डाला। मरने वालों में 25 महिलाएं, 25 बच्चे और 9 पुरुष थे। 2011 में इस मामले की जांच कर रही फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ये माना था कि साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में लगी आग कोई दुर्घटना नहीं थी। कोर्ट ने इस बड़ी साजिश मानते हुए कहा कि रेलवे स्टेशन के बाहरी इलाके में पेट्रोल के स्टॉक के साथ साबरमती एक्सप्रेस को रोकने के कुछ ही मिनटों के भीतर बड़ी संख्या में स्थानीय मुस्लिम इकट्ठा हो गए।

अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले से सहमति व्यक्त की कि अपराधियों ने पिछली रात अमन गेस्ट हाउस में बैठक के बाद पेट्रोल के स्टॉक एकत्र किए थे। अदालत ने कहा कि अगर अमन गेस्ट हाउस के पास पिछली रात कारबॉय में पेट्रोल तैयार नहीं रखा गया होता तो कोच एस-6 के पास तुरंत यानी 5 से 10 मिनट के भीतर भारी मात्रा में पेट्रोल लेकर पहुंचना संभव नहीं होता। अदालत ने आगे कहा कि हमला एस-6 पर एक आकस्मिक हमला नहीं था, बल्कि विशेष रूप से अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों को टार्गेट किया गया था। कोर्ट के मुताबिक, ‘हमलावरों द्वारा मजहबी नारे लगाना और पास की मस्जिद से लाउडस्पीकर पर घोषणा करना भी स्पष्ट रूप से टार्गेटेड षड्यंत्र की तरफ इशारा करता है।

इस पर बचाव पक्ष के वकील ने कुतर्क दिया कि हमले पूर्व नियोजित नहीं थे, बल्कि गोधरा स्टेशन प्लेटफॉर्म पर कुछ मुसलमानों के साथ कारसेवकों द्वारा कथित “दुर्व्यवहार” की एक सहज प्रतिक्रिया थी। हालांकि, मुस्लिम पक्ष के वकील की दलीलों को कोर्ट ने नहीं माना। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि पहले ऐसी झड़पों के बाद इस तरह का नरसंहार कभी नहीं हुआ। कोर्ट ने मुस्लिमों द्वारा हिन्दू कारसेवकों पर मुस्लिम महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, मुस्लिम दुकानदारों के साथ विवाद के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि फरार आरोपी सलीम पानवाला और आरोपी महबूब अहमद उर्फ लतीको ने कारसेवकों द्वारा मुस्लिम लड़कियों के साथ कथित दुर्व्यवहार का बहाना लेकर मौके का फायदा उठाया। शोर मचाकर पास के पास के सिग्नल फलिया इलाके से मुस्लिम लोगों को बुलाया और उन्हें गुमराह किया कि कारसेवक ट्रेन के अंदर से मुस्लिम लड़की का अपहरण कर रहे थे। उसने ही ट्रेन की चेन खींचकर उसे रोकने के लिए कहा।

इसके बाद तुरंत 900 से अधिक मुस्लिम लोगों की भीड़ ने लाठी, लोहे के पाइप, लोहे की छड़, धारिया, गुप्तियों, एसिड बल्ब, जलते हुए मशाल से ट्रेन पर हमला किया और भीड़ को पास की अली मस्जिद से लाउडस्पीकरों पर घोषणाओं द्वारा उकसाया गया। कोर्ट के मुताबिक, इस तरह का माहौल बनाकर लोगों को ट्रेन से नीचे कूदने से रोका गया। मामले की सुनवाई के दौरान जज का कहना था कि गोधरा में हिन्दू-मुस्लिम दोनों की आबादी लगभग बराबर है। उन्होंने कहा, ‘गोधरा सांप्रदायिक दंगों के इतिहास के लिए जाना जाता है। गोधरा के लिए, हिन्दू समुदाय से संबंधित निर्दोष व्यक्तियों को जिंदा जलाने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इस दौरान कोर्ट ने 1965 से लेकर 1992 तक की 10 ऐसी घटनाओं का भी जिक्र किया, जिनमें इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हिन्दुओं को जला दिया था।

Topics: कैसे हुआ गोधरा कांडwho committed the Godhra massacreNanavati Commission report on Godhra massacrehow did the Godhra massacre happen?गुजरातGujaratGodhra Massacreगोधरा नरसंहारगोधरा कांड किसने कियागोधरा कांड पर नानावटी कमीशन की रिपोर्ट
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