‘…तो दर्द पर नमक छिड़कना जारी है और इस बार नमक और किसी ने नहीं, बल्कि नमक छिडका है रविश कुमार ने, जिनकी सुबह और शाम में कथित न्याय की मांग होती है।’ नई दिल्ली में चले पुस्तक मेले में एक दिन अचानक से ही ऐसा विमर्श और ऐसा विषय उभर कर आता है, जो दरअसल कई दिनों से एक बहुत बड़ा वर्ग झेल रहा है और कथित लिबरल वर्ग उसे नकारने के लिए तैयार है। यह विषय है ‘लव जिहाद’।
यह ऐसा मामला है, जिसे नकारने के लिए कम्युनिस्ट सहिष्णुता की हर सीमा पार कर जाते हैं और वह सीमा होती है पीड़ितों की पीड़ा। वह पीड़ा उन्हें दिखाई नहीं देती है फिर चाहे वह बंगाल में टीएमसी के हाथों बलात्कार की पीड़ा झेल रही महिलाएं हों या फिर एक सुनियोजित तरीके से धर्म परिवर्तन के जाल में फंसाई गयी लड़कियां हों। हाल ही में एक पुस्तक का विमोचन किया गया गया, जिसमें लव जिहाद को नकारने का असफल प्रयास किया गया था। इस कथित पुस्तक के बहाने से कथित लिबरल वर्ग को हिन्दुओं के प्रति घृणा निकालने का भी एक माध्यम मिल गया, इसलिए इस पुस्तक को और भी प्रमोट किया जा रहा है।
16 फरवरी 2024 को रवीश कुमार ने एक ट्वीट किया जिसमें लिखा था, “कल पुस्तक मेला में हॉल नंबर-5, Aleph प्रकाशन के स्टॉल पर इस किताब के तीनों लेखक मौजूद रहेंगे। समय चार बजे का है। मेले में लेखकों से मिलने का अलग ही मज़ा होता है। सभी के साथ हमें भी काम करने का मौक़ा मिला है। लंबा जीवन साथ गुजरा है। मुझे यह किताब मुझे मिल गई है। अब पढ़ने की तैयारी है। Aleph प्रकाशन की यह किताब आपको एमेज़ान पर मिल जाएगी। ख़रीदना न भूलें।”
इस ट्वीट पर राष्ट्रीय शूटर एवं लव जिहाद की पीड़िता तारा शाहदेव ने उन्हें धिक्कारते हुए एक्स पर पोस्ट लिखती हैं, “रकीबुल जैसे जिहादी जिसने मुझे धर्म परिवर्तन ‘लव जिहाद’ के लिए जो शारीरिक और मानसिक प्रताणनाएं दी, मैं उस समय समझ नहीं पाई थी की वो हैवानियत करने की हिम्मत उसमे कहां से आई, लेकिन आज समझ आया की वो हिम्मत उन जैसे लोगों को आप जैसे लोग ही देते हो।”
रकीबुल जैसे जिहादी जिसने मुझे धर्म परिवर्तन #लवजिहाद के लिए जो शारीरिक और मानसिक प्रतरणाए दी , मैं उस समय समझ नही पाई थी की वो हवानियत करने की हिम्मत उसमे कहां से आई ,लेकिन आज समझ आया की वो हिम्मत उन जैसे लोगो को आप जैसे लोग ही देते हो।@SreenivasanJain@ravishndtv@AskAnshul https://t.co/fwxBZ7QrA4
— Tara Shahdeo (@ShahdeoTara) February 17, 2024
यह बहुत ही पीड़ादायक है कि जिस षड्यंत्र के चलते न जाने कितनी लड़कियों की जान जा रही है और उन्हें न जाने कितनी अकथनीय यातनाओं का सामना करना पड़ रहा है, कितनी महीन तहों के भीतर उन्हें भ्रमित करके एक ऐसे जाल में फंसाया जा रहा है, जो उनकी धार्मिक पहचान को समाप्त कर रहा है, उसे किताब लिखकर झूठ साबित किया जा रहा है और इसके साथ ही तारा शाहदेव, केरल की श्रुति जैसी लड़कियों असंख्य लड़कियों की पीड़ाओं को नकारा जा रहा है। यह नकारे जाने की पीड़ा बहुत भयावह है।
यह इसलिए और भी भयावह है क्योंकि ऐसी एक भी लड़की का मतांतरण दरअसल पूरी की पूरी संस्कृति का मतांतरण होता है। यह इसलिए भी भयावह है क्योंकि इससे बची हुई लड़कियां एक टूटे हुए अस्तित्व एवं विखंडित पहचान के साथ जीती रहती हैं। यह इसलिए भी और भयावह है क्योंकि यदि इसे नकारा जाता है तो आने वाली पीढ़ी की लड़कियां यह सोच और समझ ही नहीं पाती हैं कि उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान दरअसल उनके लिए कितनी आवश्यक है।
श्रद्धा वल्कर जब आफताब के साथ लिव इन में रहने के लिए गयी थी, तो उसे नहीं पता चला होगा कि उसे बदले में मौत ही नहीं बल्कि टुकड़े-टुकड़े मौत मिलेगी। हालांकि, इसे ‘लव जिहाद’ में गिना जाना चाहिए या नहीं इस पर चर्चा हो सकती है, क्योंकि श्रद्धा वॉकर को आफ़ताब की मजहबी पहचान के विषय में सब कुछ पता था, मगर उसे शायद यह नहीं पता होगा कि वह जिस आफताब के साथ जा रही है, वह भी उसी जन्नती ख्यालों का है, जिसके अनुसार श्रद्धा के खून के बाद उसे जन्नत में हूरें मिलेंगी।
मेरठ में एक माँ और बेटी की हत्या का मामला अभी तक लोगों की स्मृति में होगा, जिसमें नाम बदलकर शमशाद ने पहले तो प्रिया को अपने प्रेम जाल में फंसाया था। बाद में जब उसे लगा कि अब उसका भांडा फूट गया है, तो उसने न केवल प्रिया को बल्कि, उसकी बेटी को भी मार डाला था। प्रिया का अपने पति से तलाक हो गया था और प्रिया अपनी सहेली के साथ ब्यूटीपार्लर चलाती थी। वर्ष 2020 की इस घटना ने लोगों को दहलाकर रख दिया था, क्योंकि इसमें माँ और बेटी की हत्या के बाद दोनों के शवों को उसी फ़्लैट में दफना दिया था और प्रिया की सहेली के कारण ही इस हत्याकांड का खुलासा हो सका था। मगर प्रिया और उसकी बेटी की हत्या हो या फिर श्रद्धा वाल्कर की हत्या या फिर तारा शाहदेव का मामला, जिसमें उन्हें रकीबुल ने असहनीय यातनाएं दी थीं, हालांकि उनका भाग्य अच्छा था कि उनका जीवन बच गया था और वह उस पीड़ा को उदाहरण के रूप में दिखाने के लिए जीवित बचीं।
दूसरी तरफ मोदी और मोदी के बहाने हिन्दुओं के अस्तित्व से घृणा करने वाले रवीश जैसे लोग हैं, जिन्हें तारा शाहदेव जैसी महिलाओं की पीड़ा से कोई लेना देना नहीं है और प्रिया के हत्यारे शमशाद को, तारा शाहदेव के दोषी रकीबुल को और न ही उन तमाम लड़कियों की पीड़ा से, जो लगातार पहचान के प्रति षड्यंत्र का शिकार हो रही हैं। वर्ष 2022 में बरेली से दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट थी जिसमें केवल छ महीनों के आंकड़ों के माध्यम से यह बताया गया था कि केवल छह माह में ही 46 हिन्दू किशोरियों को लव जिहाद के जाल में फंसाया गया था और बाल कल्याण समिति के सामने जब इनका बयान दर्ज कराया गया तो अधिकांश लड़कियों का कहना था कि उन्हें धोखे में रखा गया और फिर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया गया।
मगर दुर्भाग्य से रवीश जैसों को हिन्दुओं से घृणा के चलते लड़कियों की इस पीड़ा से कोई लेना देना नहीं है और वह कातिलों और लड़कियों पर अत्याचार करने वालों के साथ खड़े हैं, जैसा तारा शाहदेव की पोस्ट से पता चलता ही है।
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