धार। नर्मदा साहित्य मंथन के तृतीय सोपान के दूसरे दिन का प्रारंभ हेरिटेज वॉक से हुआ। हेरिटेज वॉक का प्रारंभ भोजशाला से हुआ एवं समापन विजय मंदिर पर हुआ। हेरिटेज वॉक में विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर एवं सर्वोच्च न्यायालय के प्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय प्रमुख रूप से सम्मिलित हुए। इनके साथ भोजपर्व में शामिल हुए प्रतिभागियों ने विजय मंदिर के इतिहास को जाना एवं प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त की।
नर्मदा साहित्य मंथन के दूसरे दिन का प्रथम सत्र रामराज्य की अवधारणा एवं स्वरूप विषय पर केंद्रित रहा, जिसमें आलोक कुमार ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम का मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणाम है। इस वर्ष 22 जनवरी को दुनिया के 55 देशों के 5 लाख मंदिर में 9 करोड़ से अधिक लोगों ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मनाया और भारत के करोड़ों लोगों की श्रद्धा ने मूर्ति में प्राण स्थापित किया। उन्होंने कहा कि राम जी के राज्य में धर्म आधारित जीवन था। समाज के संबंधों का निर्धारण पुलिस और कानून नहीं कर सकता। आतंकवाद और सभ्य समाज एकसाथ नहीं रह सकते हैं। राम राज्य में महिला सम्मान के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा, सहभाग और सम्मान ये सभी राम राज्य में भी थे और वर्तमान में इसके बिना हम विश्वगुरु नहीं हो सकते। अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना आदिपर्व था, परंतु भविष्य में ऐसे अवसर आते रहेंगे। आने वाले समय में मथुरा, काशी और भोजशाला भी अपने मूल स्वरूप में स्थापित होंगी। इस चर्चा सत्र का संचालन सिद्धार्थ शंकर गौतम ने किया।
द्वितीय सत्र में पद्मश्री रमेश पतंगे ने संविधान से राम राज्य का मार्ग विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि संविधान केवल पुस्तक में पढ़ने से आगे बढ़ाकर दैनिक जीवन में जीना पड़ेगा। सामाजिक समरसता का उल्लेख संविधान में मिलता है। हमारे देश में न्याय व्यवस्था इतनी श्रेष्ठ थी इसका उदाहरण इसी बात से मिलता है कि पशु को न्याय देने के लिए अपने बच्चों को रथ के पहिये के नीचे कुचलने की सजा देने वाले न्यायप्रिय राजा भी इस देश में रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब तक समाज में सामाजिक समरसता का भाव नहीं होगा, समाज में राम राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। हमारे संविधान में भी सामाजिक समरसता को सर्वोपरि रखा गया है। संविधान में उल्लेखित अपने कर्तव्यों के पालन से राम राज्य की कल्पना को साकार किया जा सकता है। सत्र का संचालन श्री सुब्रतों गुहा जी ने किया।
तृतीय सत्र के मुख्य वक्ता सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय रहे उन्होंने भारतीय न्यायपालिका में स्व की अवधारणा विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने भारत की स्व आधारित न्याय व्यवस्था की स्थापना के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत में अभी ग़ुलामी की मानसिकता वाली शिक्षण व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था एवं कार्यपालिका चल रही है, इसे बदलने की आवश्यकता है। न्याय यदि समय पर नहीं मिलता तो वो न्याय किसी काम का नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत में जस्टिस विथिन ए ईयर अर्थात् एक साल में न्याय वाली व्यवस्था लागू होना चाहिए। उन्होंने कहा कि क़ानून कठोर होने से लोग अपराध नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से अब तक 1500 से अधिक अंग्रेजी के समय के अनुपयोगी क़ानूनों को ख़त्म किया गया है, जबकि 2014 से पहले स्वतंत्रता के समय तक केवल 50 अंग्रेजी कानून समाप्त हुए हैं। अभी भी कई ऐसे काले कानून हैं जिन्हें समाप्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय के लिए ज्यूडीशियल रिफार्म की आवश्यकता है। जज़ों की नियुक्ति के लिए भी राष्ट्रीय स्तर की एक परीक्षा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि न्याय करने वालों को विवादित जगहों पर जाकर अपने स्वाविवेक से देखकर निर्णय ले तो भोजशाला मंदिर जैसे मुक़दमों का निर्णय कुछ दिनों में ही संभव हो सकेगा। सत्र का संचालन विशाल सनोठिया ने किया।
चतुर्थ सत्र में विवेकानंद केंद्र की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद्मश्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े दीदी ने दैनिक जीवन में अध्यात्म विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत अध्यात्म का केंद्र रहा है। अध्यात्म के कारण ही भारत वैभव संपन्न राष्ट्र रहा है। धर्म ही राष्ट्र और समाज का आधार है, धर्म में हम सबके कर्तव्य निहित है। व्यक्तिवादी होने से सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा और परिवार का विघटन होता है। समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव ही राष्ट्र के पुनरुत्थान का माध्यम बनेगा। हम सबको ये विचार करना चाहिए कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है। व्यक्ति का विस्तारित रूप परिवार, परिवार का विस्तारित रूप समाज, समाज का विस्तारित रूप ही राष्ट्र है। इसलिए राष्ट्र प्रथम हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म संपूर्ण विश्व को अध्यात्म सिखाने वाला माध्यम हैं। हिंदुत्व का व्याप्त बहुत बड़ा हैं। सूचिता, करुणा, तप, और धर्म ही अध्यात्म का आधार हैं। हमें प्रामाणिक होने की आवश्यकता है। आध्यात्मिकता के कारण ही हमारे राष्ट्र ने अपना स्वत्व नहीं छोड़ा, आध्यात्मिकता अपने स्व की रक्षा करने का साहस देती है। सत्र संचालन डॉ माला सिंह ठाकुर ने किया।
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने पांचवें सत्र में मंदिरों से मज़बूत होता भारत का आर्थिक तंत्र विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि आपदा के समय मंदिर न सिर्फ संबल प्रदान करते हैं, बल्कि संसाधन भी प्रदान करते हैं। इसका उदाहरण कोविड में देखने को मिला। देशभर के हज़ारों मंदिरों ने करोड़ों लोगों को भोजन और आश्रय प्रदान किया। मंदिर आर्थिक तंत्र के साथ-साथ पर्यावरण को भी मज़बूत करते हैं। कार्बन क्रेडिट बढ़ाने के लिए मंदिर क्षेत्र के वन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मंदिर और समाज एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों एक दूसरे का संरक्षण करते हैं। मंदिर की प्रसाद परंपरा समाज के पोषण का एक माध्यम हैं।
मंदिरों को देखने की सामान्य दृष्टि बदलनी होगी। मंदिर शिल्प को सम्मान देने वाली संस्था हैं। यहाँ कला पुरस्कृत होती हैं, यहाँ कारीगरों के हाथ नहीं काटे जाते। हमारे मंदिर आर्थिक तंत्र को मजबूत करने का एक सशक्त माध्यम हैं। मंदिरों को देखने की सामान्य दृष्टि बदलनी होगी। मंदिर शिल्प को सम्मान देने वाली संस्था हैं। यहाँ कला पुरस्कृत होती हैं, यहाँ कारीगरों के हाथ नहीं जाते जाते। हमारे मंदिर आर्थिक तंत्र को मजबूत करने का एक सशक्त माध्यम हैं। सत्र संचालन अमन की व्यास ने किया। नर्मदा साहित्य मंथन के दूसरे दिन के अंतिम सत्र में श्रीमती कुमुद शर्मा जी ने साहित्य और शिक्षा में भारतीयता विषय पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा हमारे देश की प्रकृति , स्वभाव और वैशिष्ट्य ही भारतीयता हैं।विश्व में भारतीयता का स्वाभिमान बढ़ाने का काम मानवीयता करती हैं।“भारतीयता, मानवता की नाक का आभूषण हैं“।
भारत में शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं थी, बल्कि व्यक्ति को जीवन सिखाना था। गुरु अपने शिष्य की प्रतिभा को पहचानकर उसकी योग्यता के अनुसार कौशल निपुण बनाना था। अंग्रज़ों ने मैकॉले को भारतीय शिक्षण व्यवस्था को नष्ट करके ब्रिटिश शिक्षण व्यवस्था को स्थापित करने का काम सौपा, जिससे भारतीय आत्मनिर्भरता से दूर होते गये। उन्होंने कहा कि भारत की नई शिक्षा नीति पुनः भारत को स्वाभिमान, आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने का कार्य करेगी। अब विद्यार्थी भारतीय भाषाओं में अध्ययन करके श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त करेंगे। सत्र का संचालन डॉ शालिनी रतोरिया ने किया।
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