डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि भारत समाज आधारित राष्ट्र है। हमारे राष्ट्र की संकल्पना का आधार आध्यात्मिक है। कोरोना जैसी महामारी के समय समाज द्वारा संक्रमण का खतरा होने के बावजूद एक-दूसरे का सहयोग करना, इसका ताजा उदाहरण है।
गत फरवरी तक ‘जयपुर साहित्य महोत्सव’ आयोजित हुआ। इसमें देश-विदेश के लेखकों, विचारकों, समाजसेवियों और अन्य लोगों ने अपने विचार रखे। महोत्सव में 2 फरवरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक ‘वी एंड द वर्ल्ड अराउंड’ पर चर्चा हुई।
इस अवसर पर डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि भारत समाज आधारित राष्ट्र है। हमारे राष्ट्र की संकल्पना का आधार आध्यात्मिक है। कोरोना जैसी महामारी के समय समाज द्वारा संक्रमण का खतरा होने के बावजूद एक-दूसरे का सहयोग करना, इसका ताजा उदाहरण है।
उन्होंने रवींद्रनाथ ठाकुर के स्वदेशी समाज का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे यहां परंपरागत रूप से न्याय व्यवस्था, विदेश, सुरक्षा जैसे विभाग राजा के पास होते थे। जबकि चिकित्सा, शिक्षा, वाणिज्य, व्यापार, उद्योग, मंदिर, मेला, संगीत, नाटक, कला आदि समाज की व्यवस्था थी। इसके लिए धन राजकोष से नहीं, बल्कि समाज देता था।
उन्होंने कहा कि इंडिया शब्द अंग्रेजों ने भारत आने के बाद दिया था, जबकि भारत प्राचीन काल से है। भारत कहने से प्राचीनता का बोध होता है। भारत को भारत कहना अधिक उचित है। उन्होंने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् का विचार भारत का है।
हमारे यहां से भी लोग दुनिया में व्यापार करने गए लेकिन उन्होंने वहां के लोगों को अरब और यूरोप की तरह कन्वर्ट नहीं किया। हिंदू शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि लोकमान्य तिलक के हिंदू शब्द के अर्थ को सावरकर ने अधिक विस्तृत व्याख्या दी।
सावरकर की हिंदू संकल्पना को श्रीगुरुजी ने युगानुकूल परिभाषित करते हुए कहा था कि जिनके समान पूर्वज हों, एक संस्कृति एवं भारत को माता मानते हों, वे सभी हिंदू हैं।
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