श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
भावार्थ
श्रीगुरुजी के चरण कमलों की रज से अपने मनरूपी दर्पण को साफ करके मैं श्रीरघुनाथजी के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फलों को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) देने वाला है।
(श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास जी)
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