ज्ञानवापी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 350 वर्ष पहले मंदिर को तोड़कर गुंबद बनाया गया था। सातवीं सदी की मंदिर की दीवारें नागर शैली की हैं। यह शैली पल्लव काल में शुरू हुई थी और चोल काल में और विकसित हुई थी।
ज्ञानवापी मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट 25 जनवरी को सभी पक्षकारों को मिल गई। रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 350 वर्ष पहले मंदिर को तोड़कर गुंबद बनाया गया था। सातवीं सदी की मंदिर की दीवारें नागर शैली की हैं। यह शैली पल्लव काल में शुरू हुई थी और चोल काल में और विकसित हुई थी।
परिसर में कई स्थानों पर मंदिर के अवशेष मिले हैं। वहां दीवारों और खंभों पर देवनागरी और संस्कृत में लिखे श्लोक मिले हैं। परिसर में नागर शैली के ऐसे कई निशान मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि ये 1,000 वर्ष पुराने हैं। अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में एसआई ने कहा है, ‘‘यह कहा जा सकता है कि गुंबद निर्माण के पहले एक हिंदू मंदिर अस्तित्व में था।’’
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने बताया कि सर्वेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन किया जा रहा है। फिलहाल जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार एएसआई को पिछली दीवार पर ब्रह्म कमल, स्वस्तिक एवं मंदिर के अन्य प्रमाण मिले हैं। एएसआई की सर्वेक्षण रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि मंदिर को तोड़कर वहां पर गुंबद का निर्माण किया गया था।
मुगल आक्रांताओं ने भारत के अधिकांश मंदिरों को तोड़कर उसके ऊपर ‘मस्जिद’ बना दी थी। मुगल आक्रांताओं ने सनातन धर्म और हिंदू धर्मावलंबियों को नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया था। 24 जनवरी को सुनवाई के बाद वाराणसी जिला जज ए.के. विश्वेश ने सभी पक्षों को एएसआई की सर्वेक्षण रिपोर्ट उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने जिला जज के समक्ष मांग रखी कि सर्वेक्षण रिपोर्ट पक्षकारों तक ही रहे, इसे सार्वजनिक नहीं किया जाए।
मंदिर को 17वीं सदी में तोड़ा गया और बाद में उसके हिस्से को ‘मस्जिद’ में मिला दिया गया। मौजूदा ढांचे में खंभों और उस किए गए पलस्तर का भी अध्ययन किया गया है। कई खंभों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। इसके अतिरिक्त दो तहखानों में हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के भग्नावशेष मिले हैं।
इस मामले में अगली सुनवाई 6 फरवरी को होगी। 21 जुलाई, 2023 को जिला अदालत के आदेश के बाद एएसआई ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी का वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वहां पहले से मौजूद मंदिर की संरचना पर ‘मस्जिद’ का निर्माण किया गया था या नहीं।
एएसआई की 639 पृष्ठों की सर्वेक्षण रिपोर्ट में ज्ञानवापी परिसर के कोने-कोने का ब्योरा है। हिंदू और मुस्लिम पक्ष की ओर से नौ लोगों ने रिपोर्ट की प्रति के लिए आवेदन किया था। इनमें हिंदू पक्ष की पांच वादी महिलाएं, मुस्लिम पक्ष (प्रतिवादी) अंजुमन इंतेजामिया, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार और जिलाधिकारी शामिल थे। फिलहाल 5 लोगों को रिपोर्ट दी गई है, जिनमें हिंदू पक्ष की वादी राखी सिंह की ओर से अधिवक्ता अनुपम द्विवेदी, अन्य चार महिला वादियों की ओर से अधिवक्ता विष्णु जैन, मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता अखलाक अहमद के अलावा प्रशासन और शासन के लिए दो प्रतियां महेंद्र पांडेय (डीजीसी सिविल) को दी गई हैं।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में ‘मस्जिद’ की पश्चिमी दीवार को एक हिंदू मंदिर का हिस्सा बताया है। अंदर के खंभे भी मंदिर के ही खंभे थे, जिन पर बाद में पलस्तर आदि करके उसका स्वरूप बदल दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान संरचना के निर्माण से पहले यहां एक बड़ा हिंदू मंदिर था। इसके 32 प्रमाण मिले हैं।
मंदिर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था, जबकि उत्तर में एक छोटा कक्ष था। मंदिर को 17वीं सदी में तोड़ा गया और बाद में उसके हिस्से को ‘मस्जिद’ में मिला दिया गया। मौजूदा ढांचे में खंभों और उस किए गए पलस्तर का भी अध्ययन किया गया है। कई खंभों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। इसके अतिरिक्त दो तहखानों में हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के भग्नावशेष मिले हैं।
पत्थर पर फारसी में मंदिर तोड़ने के आदेश और तारीख भी मिली है। साथ ही, एक पत्थर मिला है, जिस पर ‘महामुक्ति मंडप’ लिखा हुआ है। इन प्रमाणों के आधार पर एएसआई अपनी रिपोर्ट में इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि ज्ञानवापी परिसर में मंदिर को तोड़कर गुंबद बनाया गया था। विष्णु शंकर जैन ने कहा कि अब अदालत से वजूखाने का सर्वेक्षण कराने की मांग की जाएगी।
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