पाकिस्तान में पंजाब सूबे में एक बार फिर से अहमदिया समुदाय सुन्नी कट्टरपंथियों के निशाने पर है। वहां पुलिस की मिलीभगत से अहमदिया समुदाय की एक और मस्जिद पर कुठाराघात हुआ है। अहमदिया कब्रों को तो एक लंबे समय से तोड़ने का सिलसिला चलता आ ही रहा है।
प्राप्त समाचारों से पता चला है कि कल पंजाब सूबे में अहमदिया समुदाय की एक 70 साल पुरानी मस्जिद की मीनारों तथा गुंबद पर हथौड़े चलाए गए हैं। इस बात की पुष्टि करते हुए जमात-ए-अहमदिया के एक सदस्य ने बताया कि फैसलाबाद में पुलिस अफसरों ने ही मीनारों को तोड़ दिया है। इतना ही नहीं, वे तोड़फोड़ से निकला मलबा साथ ले गए। पूरी घटना का एक वीडियो भी सामने आया है।
बताया गया है कि 1956 में बनी फैसलाबाद की उस मस्जिद को पिछले साल से ही कट्टरपंथी सुन्नी निशाने पर लिए हुए थे और उसे तोड़ने की कई बार धमकियां दे चुके थे। अहमदिया नेता बताते हैं कि इसी साल अभी तक उनके समुदाय की लगभग 42 मस्जिदों को तोड़ा गया है। तोड़फोड़ की अधिकांश घटनाएं पंजाब सूबे में हुई हैं।
पाकिस्तान में बहुसंख्यक सुन्नी अहमदियाओं को मुस्लिम ही नहीं मानते। उनसे सुन्नियों को इस हद तक चिढ़ है कि पाकिस्तान की संसद ने 1974 में एक प्रस्ताव पारित करके अहमदियाओं को गैर-मुस्लिम ठहरा दिया था। करीब दस साल के अंदर अहमदियों पर रोक लगा दी गई कि वे अपने को मुस्लिम न कहें और मजहब से जुड़ा कोई काम न करें। उन पर रोक लगा दी गई कि वे मस्जिदों में न कुरान की आयतें लिखेंगे, न मस्जिद या गुंबद वाली मस्जिदें बनाएंगे।
हालांकि लाहौर उच्च न्यायालय का एक आदेश कहता है कि वहां 1984 से पहले की बनीं अहमदिया मस्जिदें वैध हैं अत: उन्हें न गिराया जाए। लेकिन कट्टरपंथी गुट तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान अहमदियाओं की मस्जिदों को तोड़ने में लगा है। उसका मानना है कि ये समुदाय मुस्लिम नहीं है इसलिए इसे न मस्जिद बनाने का हक है न इस्लामी तौर—तरीके अपनाने का।
हालांकि लाहौर उच्च न्यायालय का एक आदेश कहता है कि वहां 1984 से पहले की बनीं अहमदिया मस्जिदें वैध हैं अत: उन्हें न गिराया जाए। लेकिन कट्टरपंथी गुट तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान अहमदियाओं की मस्जिदों को तोड़ने में लगा है। उसका मानना है कि ये समुदाय मुस्लिम नहीं है इसलिए इसे न मस्जिद बनाने का हक है न इस्लामी तौर—तरीके अपनाने का। यह वही गुट है जिस पर 2021 में पाकिस्तान ने आतंक-रोधी कानून के अंतर्गत पाबंदी लगा दी थी।
1974 में पाकिस्तान में हुए दंगों के बाद, उस वक्त के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुस्लिमों को ‘गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक’ घोषित किया था। हालांकि तब भी अहमदिया समुदाय इसके विरोध में उतरा था। लेकिन बात बढ़ती गई और आगे पाकिस्तान ने अहमदियाओं का खुद को मुस्लिम कहना अपराध ठहरा दिया। इस अपराध के लिए तीन साल की सजा तय कर दी गई।
आज पाकिस्तान में ‘गैर मुस्लिम’ अहमदियाओं की मस्जिदें और कब्रिस्तान अलग हैं। अहमदिया या कादियानी रह—रहकर सुन्नियों की नफरत के शिकार होते रहे हैं। अहमदियाओं को लेकर सुन्नियों का आरोप है कि ‘वे मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते हैं’। और बात सिर्फ सुन्नियों की ही नहीं, मुसलमानों के तमाम फिरके अहमदिया मुस्लिम नहीं मानते।
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