पूरा जीवन देश और हिंदू समाज की सेवा में बिताने वाले मोरोपंत पिंगले का नाम अयोध्या आंदोलन के प्रमुख रणनीतिकारों में आता है। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक थे।
1981 में मीनाक्षीपुरम में सैकड़ों हिंदुओं के मतांतरण के बाद उन्होंने पूरे देश में संस्कृति रक्षा अभियान छेड़ा। 1983 में विश्व हिंदू परिषद की देखरेख में उन्होंने ‘एकात्मता यात्रा’ शुरू की। 1985 में मोरोपंत पिंगले श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े। इसके बाद वह आंदोलन के प्रमुख रणनीतिकार बन गए।
पिंगले जी श्रीराम शिलापूजन, शिलान्यास, रामज्योति जैसी गतिविधियों के मार्गदर्शक थे। उन्होंने राम शिलापूजन से आंदोलन को देशभर में फैलाया। मोरोपंत पिंगले ने मंदिर बनाने के लिए पूरे देश के गांवों में तीन लाख ईंटों का पूजन कराया। इसके बाद उन ईंटों को नगर, तहसील और जिला केंद्रों के जरिये अयोध्या लाया गया।
शिलापूजन के कारण अयोध्या आंदोलन से लगभग छह करोड़ लोगों की भावनाएं जुड़ीं। इन कारणों से मोरोपंत पिंगले को ‘हिन्दू जागरण के सेनापति’ के रूप में जाना जाता था। उनका निधन वर्ष 2003 में हुआ। इतिहासविद् मोरोपंत जी ने सरस्वती नदी पर अनुसंधान का अभियान शुरू किया। पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों की टोली के साथ हरियाणा में सरस्वती नदी के उद्गम स्थल से लेकर राजस्थान, बहावलपुर और गुजरात के कच्छ की खाड़ी तक की शोधपरक यात्रा की।
इससे सिद्ध हुआ कि सारस्वत सभ्यता की आधार सरस्वती नदी कोई मिथकीय नदी नहीं, वास्तविकता है। बाद में प्राकृतिक कारणों से यह विलुप्त हो गई। शोध में सरस्वती सभ्यता के अवशेष भी मिले।
टिप्पणियाँ