ज्ञानवापी मामले में आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की रिपोर्ट आज सभी पक्षकारों को प्राप्त हो गई। रिपोर्ट में अभी तक जो विवरण प्राप्त हुए हैं। उसके अनुसार मंदिर को तोड़कर वहां पर गुम्बद बनाया गया था। मंदिर के ऊपर बनाया गया गुम्बद करीब 350 वर्ष पुराना है जबकि मंदिर की दीवार नागर शैली की हैं। नागर शैली सातवी शताब्दी की है। यह शैली पल्लव काल में शुरू हुई थी और चोल काल में और अधिक विकसित हुई थी। एएसआई ने कहा है कि ” यह कहा जा सकता है कि गुम्बद के निर्माण के पहले एक हिन्दू मंदिर अस्तित्व में था।” एएसआई अपने सर्वे में इस नतीजे पर पहुंची है कि वहां पर मंदिर को तोड़कर गुम्बद बनाया गया था। अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने बताया कि ” सर्वे रिपोर्ट का अभी अध्ययन किया जा रहा है। फिलहाल जानकारी के आधार पर पिछली दीवार पर ब्रह्म कमल, स्वास्तिक एवं मंदिर के अन्य प्रमाण एएसआई को मिले हैं।
सर्वे में यह स्पष्ट हो गया है कि मंदिर को तोड़ा गया था। एएसआई रिपोर्ट से साफ़ हो गया है कि मंदिर को तोड़कर वहां पर गुम्बद का निर्माण किया गया था। भारत में अधिकतर मंदिरों को तोड़कर मुग़ल आक्रान्ताओं ने उसके ऊपर ढांचा बना दिया था। उस समय मुग़ल आक्रान्ताओं ने सनातन धर्म पर प्रहार करने की नीयत से इस प्रकार का कार्य किया था। मुग़ल आक्रान्ताओं ने हिन्दू धर्मावलम्बियों को नीचा दिखाने के लिए मंदिरों को तोड़ा था। ”
गत बुधवार को वाराणसी जनपद न्यायालय के जिला जज ए. के. विश्वेश ने इस मामले की सुनवाई करने के बाद आदेश दिया था कि एएसआई की सर्वे रिपोर्ट की प्रति सभी पक्षों को उपलब्ध करा दी जाय ताकि जिसको भी एएसआई सर्वे की रिपोर्ट के सम्बन्ध में आपत्ति दाखिल करना हो।वह रिपोर्ट का अध्ययन करके आपत्ति दाखिल कर सके।इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 6 फरवरी की तारीख तय की गई है।उल्लेखनीय है कि नवंबर 1993 से श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा पर रोक लगाई गई थी। तब से लेकर वर्ष 2004 तक हिन्दू पक्ष ने इसके बारे में कोई आवाज नहीं उठाई। वर्ष 2004 में हिन्दू संगठनों के विरोध करने पर वर्ष में मात्र एक दिन नवरात्रि के चतुर्थी पर पूजा की अनुमति दी गई थी।
18 अगस्त 2021 को राखी सिंह समेत 5 महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन के न्यायालय में याचिका दाखिल की। याचिका में मांग की गई कि श्रृंगार गौरी की नियमित दर्शन पूजन की अनुमति दी जाय और परिसर में अन्य देवी देवताओं के विग्रहों को सुरक्षित किया जाय। ज्ञानवापी परिसर के रकबा नंबर-9130 के लिए 26 अप्रैल 2022 को वाराणसी जनपद न्यायालय के सिविल जज सीनियर डिवीजन ने अजय मिश्र को अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया। हिन्दू पक्ष के प्रार्थना पत्र पर न्यायालय ने कहा कि ज्ञानवापी परिसर के अंदर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करा करके रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाय।
6 मई 2022 को पहली बार अधिवक्ता आयुक्त के साथ वादी और प्रतिवादी पक्ष ने कुछ हिस्सों का दो घंटे तक सर्वे किया। 7 मई को टीम जब पहुंची तो मुस्लिम पक्ष ने विरोध शुरू कर दिया। मुस्लिम पक्ष ने न्यायालय से मांग की कि हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता अजय मिश्र को हटाया जाए मगर 12 मई को न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए अजय मिश्र को ही अधिवक्ता आयुक्त बनाये रखा। इसके साथ ही अधिवक्ता विशाल सिंह को विशेष अधिवक्ता आयुक्त और अजय प्रताप सिंह को सहायक अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया। 14 और 15 मई के सर्वे के बाद 16 मई 2022 को सुरक्षा व्यवस्था के साथ परिसर का सर्वे और वीडियोग्राफी शुरू हुई। सर्वे के बाद हिन्दू पक्ष ने दावा किया कि सर्वे के दौरान वजूखाने में शिवलिंग मिला। न्यायालय में रिपोर्ट दाखिल होने के पहले ही यह सचाई जगजाहिर हो गई कि ‘बाबा’ मिल गए हैं। हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता के प्रार्थना पत्र पर सिविल जज सीनियर डिवीजन के द्वारा वज़ूखाने को सील करने का आदेश दिया।
सर्वे की सूचना लीक होने के बाद अजय मिश्र को अधिवक्ता आयुक्त के दायित्व से न्यायालय ने हटा दिया। 18 मई 2022 को अजय मिश्र ने पूर्व अधिवक्ता आयुक्त के तौर पर अपनी दो दिन की सर्वे रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत कर परिसर के अंदर मिले साक्ष्यों के बारे में न्यायालय को जानकारी दी। सनातन धर्म से जुड़ी कई महत्वपूर्ण आकृतियां जिसमें ब्रह्मकमल, कमल, शेषनाग, स्वास्तिक, त्रिशूल तथा खंडित मूर्तियों का उल्लेख किया गया। 19 मई 2022 को विशेष अधिवक्ता आयुक्त विशाल सिंह ने 14 से 16 मई के सर्वे की रिपोर्ट को न्यायालय में दाखिल किया। बताया जाता है कि उन्होंने रिपोर्ट में गुम्बद के अंदर शिखर, दीवारों पर हाथी के सूंड़, घंटियों कथित मस्जिद के दीवारों पर संस्कृत के श्लोक का स्पष्ट उल्लेख किया। 16 मई को सर्वेक्षण के दौरान ज्ञानवापी परिसर में हिन्दू पक्ष ने “शिवलिंग” मिलने की बात कही थी।
24 मई 2022 को किरण सिंह द्वारा याचिका दाखिल की गई। इसमें उन्होंने ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने पर रोक लगाने की मांग की। 25 मई 2022 को जिला जज ए. के. विश्वेश की अदालत ने याचिका को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेज दिया। दोनों पक्षों ने न्यायालय में लिखित बहस दाखिल की। 17 नवंबर 2022 को फास्ट ट्रैक कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका लगा। किरण सिंह के पोषणीयता के वाद को न्यायालय ने सुनवाई के योग्य माना। उसके बाद मुस्लिम पक्ष ने 17 अप्रैल 2023 को नमाज को लेकर आ रही समस्या को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने वाराणसी के जिलाधिकारी को समस्या के समाधान का आदेश दिया। 19 अप्रैल 2023 को जिलाधिकारी की अगुवाई में समिति की बैठक में वजू की ज्ञानवापी परिसर से बाहर रजिया मस्जिद में व्यवस्था को लेकर सहमति बनी।
21 जुलाई 2023 को वाराणसी जनपद के जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने मां श्रृंगार गौरी मूल वाद में ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर बैरिकेडिंग वाले क्षेत्र का एएसआई से रडार तकनीक से सर्वे कराने का आदेश दे दिया । सर्वे में बिना क्षति पहुचाएं पत्थरों, देव विग्रहों, दीवारों सहित अन्य निर्माण की उम्र का पता लगाया गया। सर्वे पूरा होने के बाद दो सील बंद लिफाफा एएसआई द्वारा 18 दिसंबर 2023 को वाराणसी जनपद न्यायालय में दाखिल किया गया था। एएसआई ने ज्ञानवापी परिसर का फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी समेत अन्य कई वैज्ञानिक तकनीक से सर्वे किया। रिपोर्ट में परिसर, कलाकृतियों, मूर्तियों, दीवारों, स्थल के बनावट, तहखानों को लेकर एएसआई ने रिपोर्ट तैयार किया है। 250 से ज्यादा साक्ष्यों को इकट्ठा किया गया है जिसे जिलाधिकारी की निगरानी में लॉकर में रखा गया है।
हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता मदन मोहन कहते हैं कि “अवश्य ही ज्ञानवापी का मामला न्यायालय के अधीन है। परंतु वर्ष 1995 के इस्माइल फारूकी वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया के मुकदमे में मस्जिद, मजार और कब्रिस्तान को परिभाषित किया गया है। पंडित सोमनाथ व्यास जी तहखाने के नीचे नित्य पूजा करते थे और वर्ष 1983 के उत्तर प्रदेश शासन के काशी विश्वनाथ अधिनियम के अनुसार पंचकोश का सम्पूर्ण परिक्षेत्र आदि विश्वेश्वर-काशी विश्वनाथ में समाहित है। नवम्बर 1993 तक कथित मस्जिद के पार्श्व भाग में अवस्थित श्रृंगार गौरी की नित्य पूजा होती रही है। कथित मस्जिद के पार्श्व भाग की दीवारें नागर शैली के मंदिर की हैं। उसके वास्तुशिल्प में स्वास्तिक, ओम, कमल आदि की आकृति हैं। इस दृष्टि से भी देखें तो उसका भग्नावशेष पूरी तरह से मंदिर का है। किसी भी दृष्टि से ज्ञानवापी में मस्जिद नहीं है।”
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