अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन में बलिदान देने वाले रामकुमार और शरद कोठारी की बहन पूर्णिमा कोठारी ने पाञ्चजन्य के ‘बात भारत की कॉन्फ्लुएंस’ में बड़े भावुक शब्दों में अपने दोनों भाइयों का पुण्य स्मरण किया
मुझे याद है, जब मेरे दोनों भाई, रामकुमार और शरद कोठारी ने बलिदान दिया था तब माता-पिताजी को बहुत दुख तो हुआ, परंतु उन्हें यह गर्व भी हुआ था कि दोनों राम के काम आए। मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने बाबरी ढांचे के गिरने से लेकर श्रीराम का भव्य मंदिर बनने तक का समय देखा है। सौभाग्य से 22 जनवरी को अपनी आंखों से प्राण प्रतिष्ठा होते देखूंगी।
मेरे दोनों भाई एक संकल्प के साथ अयोध्या गए थे। उन्होंने शिला पूजन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। फिर आगे उन्होंने संगठन को कहा कि हम दोनों भाई कारसेवा के लिए अयोध्या जाएंगे। इस तरह हमारे घर के राम-लखन एक ही वाहिनी में गए। घर से जाते समय दोनों ने पिताजी से कहा कि कार्य पूरा होते ही हम वापस आ जाएंगे, आते ही बहन की शादी के सभी कार्य संभाल लेंगे। पिताजी भी उनकी काबिलियत पर संदेह नहीं किया करते थे, अत: उन्होंने जाने की अनुमति दे दी।
पिताजी ने पहले अपने दोनों पुत्रों से कहा था कि, हम तो मारवाड़ी व्यवसायी हैं, क्या हम धन देकर अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर सकते? यह सुनकर दोनों भाइयों ने एक स्वर में कहा कि, हम मारवाड़ियों की यह बहुत गलत बात है कि हम केवल धन देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। अरे, जरूरत पड़े तो हमें आगे बढ़कर समाज के लिए बलिदान भी देना चाहिए। इस तरह की भावना को देखते हुए पिताजी ने दोनों को अयोध्या जाने की अनुमति दे दी।
हमारे रिवाज के अनुसार माता जी ने उनका मंगल तिलक कर विजयी होने का आशीर्वाद देकर रवाना किया। छोटा भाई शरद बहुत चंचल था इसलिए पिताजी ने राम को उसका ध्यान रखने को कहा। दूसरे यह कि चाहे कुछ भी हो, रोज अपनी कुशलक्षेम लिखकर एक पोस्टकार्ड जरूर भेजना। इसके लिए भाई ने हामी भरी। उनके जाने के बाद लगभग 5 चिट्ठियां भी प्राप्त हुईं। चिट्ठियों में वे यात्रा का संक्षिप्त विवरण लिखा करते थे।
मामाजी को देखते ही मेरी मां ने पूछा, क्या बात है, मुझे सच बताओ? उन्होंने कहा कि खबर आई है कि अयोध्या में गोलियां चली हैं और कुछ बच्चे घायल हुए हैं। मां तो इतना सुनते ही बेहोश हो गयीं। सारी रात बेचैनी का माहौल रहा। मां ने फिर पूछा कि क्या हुआ? किसी को कुछ हुआ क्या? तब पिताजी ने बताया, राम और शरद दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं। राम और शरद राम के काम आ गए!
जब परिवार को उनके बलिदान की खबर मिली तो उसे सहन करने में बहुत मुश्किल हुई थी। मां बीमार रहती थीं जिसके कारण परिवार को चिंता हुई। 2 तारीख को दिन में हुई भाइयों की मृत्यु की सूचना हमें रात 8 बजे मिली। दो लोग घर पर आये, मां ने घबरा कर उनसे पूछा कि क्या बात है? उन्होंने टालने की कोशिश की, कहा कि यहां से गुजर रहे थे, तो यूं ही मिलने चले आये। वे थोड़ी देर बैठे पर शायद उन्हें यह खबर मां को देने की हिम्मत नहीं हुई। उसके बाद दोनों वहां से निकल गये। थोड़ी देर में पिताजी घर आये।
पिताजी को देखते ही मां बोलीं कि आज आपका चेहरा उतरा हुआ क्यों लग रहा है? पिताजी को सारी घटना पता चल चुकी थी। पिताजी भी मां को यह बात बताना नहीं चाह रहे थे इसलिए बोले कि थकान की वजह से तुम्हें ऐसा लग रहा होगा। फिर मां भी चुप हो गयीं। हमने पिताजी को जबरदस्ती खाना खिलाया। वे अपने आपको संयमित करके बैठ गये। देर रात उन्हें लगा भी कि यदि अचानक से किसी को इस अनहोनी के बारे में बताएंगे तो कहीं कुछ और अनिष्ट न हो जाए। लेकिन फिर घर पर बहुत लोग आने लगे। तब मां को समझ आ गया कि कोई बड़ी बात है जो मुझसे छिपायी जा रही है।
मामाजी को देखते ही मेरी मां ने पूछा, क्या बात है, मुझे सच बताओ? उन्होंने कहा कि खबर आई है कि अयोध्या में गोलियां चली हैं और कुछ बच्चे घायल हुए हैं। मां तो इतना सुनते ही बेहोश हो गयीं। सारी रात बेचैनी का माहौल रहा। मां ने फिर पूछा कि क्या हुआ? किसी को कुछ हुआ क्या? तब पिताजी ने बताया, राम और शरद दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं। राम और शरद राम के काम आ गए!
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