अस्सी के दशक में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की कमान संभाली
चिन्मय मिशन के संस्थापक स्वामी चिन्मयानंद विश्व हिंदू परिषद के पहले अध्यक्ष थे। 29 अगस्त, 1964 को जन्माष्टमी के दिन मुंबई के सांदीपनि आश्रम में स्थापित विहिप ने अस्सी के दशक में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की कमान संभाली। एक साक्षात्कार में स्वामी चिन्मयानंद जी से प्रश्न किया गया- क्या अयोध्या में राम मंदिर बनना आवश्यक है?
इस पर स्वामी जी ने कहा, अगर आप मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हैं, तो यह मेरा अपमान है। उनसे एक और प्रश्न पूछा गया कि अयोध्या के मामले में तो बहुत रक्त बह चुका है, इस पर स्वामी जी ने कहा- ‘जब आपका जन्म हुआ, तब भी रक्त बहा था। राष्ट्र का निर्माण और उत्थान रक्त से ही होता है और रक्त में ही राष्ट्र नष्ट भी हो जाता है। अयोध्या पर भी रक्त बहेगा। इससे ही मंदिर का निर्माण होगा।’ वे चाहते थे कि अयोध्या मामले का हल न्यायालय से बाहर बातचीत से हो।
वे कहते थे कि सरकारों की तुष्टीकरण की नीति ने अयोध्या मामले को उलझा दिया अन्यथा इसका समाधान बहुत पहले हो सकता था। विहिप ने प्रथम धर्मसंसद में औपचारिक रूप से राम जन्मभूमि आंदोलन को अपनाने की घोषणा की। उस सम्मेलन का प्रस्ताविक भाषण स्वामीजी ने ही दिया था। ढांचा टूटने पर स्वामी जी ने कहा था कि उस जर्जर ढांचे को टूटना ही था।
वह ढांचा भारत के सर्वहितकारी समभाव समाज की राममय अवधारणा के विरुद्ध था। बाबर ने वहां मंदिर ही नहीं तोड़ा, ऐसा करके उसने इस समाज के आत्मसम्मान को भी तोड़ा था। इसलिए उस ढांचे के बिना गिरे और उसी स्थान पर राम मंदिर के निर्माण के बिना समाज के घाव पर मरहम नहीं लगाया जा सकता था।
टिप्पणियाँ