अयोध्या में भगवान राम अपने मंदिर में आज पहुंच गए हैं। अयोध्या में राम मंदिर के लिए संघर्ष कर रहे राम भक्तों का 500 वर्षों का इतंजार खत्म हो गया है। भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं, हमारे पूर्वजों ने मंदिरों को ध्वस्त होते देखा था और हम भव्य मंदिरों को फिर से बनते होते देख रहे हैं। ये सिर्फ राम लला की प्राण प्रतिष्ठा ही नहीं, बल्कि भारत की चेतना की प्राण प्रतिष्ठा है।
भाजपा नेता ने कहा कि अयोध्या का जो मन्दिर है उसका अपना एक इतिहास है। उस मंदिर ने आतंक को देखा है, अत्याचार को देखा है, और आज अपने पूर्ण वैभव के साथ पूर्ण प्रतिष्ठित हो रहा है। 22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में उसी महत्व का दिन माना जाएगा, जैसा कि 15 अगस्त को माना जाता है। जहां, एक ओर 15 अगस्त 1947 को हम राजनीतिक स्वतंत्रता के दिन के रूप में देख सकते हैं, जिसमें विदेशियों के हाथ से सत्ता गई और भारत वासियों के हाथ में सत्ता आई। उसके प्रतीक के तौर पर स्वाधीनता दिवस हम 15 अगस्त को मनाते हैं।
उसी प्रकार सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं वैचारिक स्वतंत्रता का दिन 22 जनवरी इतिहास में देखा जाएगा। एक तरफ आतंक था, अत्याचार था, और दूसरी तरफ जब भूमि को वापस लिया गया तो किसी भी प्रकार के आतंक और अत्याचार का सहारा नहीं लिया गया, ना ही किसी प्रकार से बदले के भावना का प्रयोग किया गया, बल्कि देश के बहुसंख्यक समाज ने लोकतंत्र की शक्ति, जनादेश कीशक्ति एवं कानूनी तथा वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए अपने अधिकार और अपनी भूमि को वापस लिया।
विश्व के इतिहास में यह एक अनुपम उदाहरण है और दुनिया के विभिन्न देशों, राष्ट्रों, प्राचीन सभ्यताओं के लिए या एक सीखने योग्य अनुभव बनेगा कि कैसे एक देश का बहुसंख्यक समाज अपने साथ हुए आतंक, अत्याचार और बलात परिवर्तन के खिलाफ भी जब लड़ता है तो कानूनी और संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करता है और संविधान के रास्ते अपनी भूमि और अधिकार को वापस लेने का कार्य करता है। इस प्रकार 22 जनवरी 2024 केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक सीखने योग्य अनुभव है और यही कारण है कि पूरा विश्व आज अयोध्या की ओर देख रहा है। यदि हम मंदिर के निर्माण एवं स्वरुप की बात करें तो यह मंदिर पूरे विश्व में नए भारत के एक प्रतीक के तौर पर देखा जाएगा।
राम मंदिर का अपना एक इतिहास है , अपनी एक भव्यता है, वह भव्य है, विराट है और इसीके साथ वह एक मजबूत आधारशिला पर टिका हुआ है, उसकी एक सांस्कृतिक पहचान और इतिहास भी है, बार-बार तोड़े जाने और मिटाए जाने के बावजूद बार-बार बनने और पूर्ण वैभव के साथ पूरे विश्व के सामने आने का इतिहास है। यही तो भारत है और यही नया भारत है, जो बार-बार अत्याचार का सामना करने के बाद भी उसी वैभव के साथ खड़ा हो रहा है। यह विशाल है, भव्य है, मजबूत है, सांस्कृतिक केंद्र है, ऐतिहासिक है और साथ ही ऐतिहासिक होने के साथ नवीन भी है।
यह बिलकुल न्यू इंडिया का सटीक प्रतीक है। राम मंदिर को एक राजनीतिक घटनाक्रम मानना या समझना एक बड़ी भूल होगी और यदि आज का राजनीतिक विपक्ष इसे केवल राजनीतिक समीकरण वोट बैंक, जीत-हार, तुष्टिकरण या चुनावी हार-जीत के चश्मे से देखेगा तो इतिहास में इसको एक हिमालयन ब्लंडर के रूप में देखा जाएगा। श्री राम मंदिर की घटना कोई राजनीतिक घटना है ही नहीं, यह भारत की, सनातन की, संस्कृति की एकरूपता का एक पड़ाव है।
राम मंदिर का चुनाव से कोई लेना देना नहीं
इसका पांच साल में आने वाले चुनाव, चुनावों में होने वाली हारजीत से कोई लेना-देना ही नहीं है। यही कारण है कि इसे राजनीतिक चश्मे से देखने वाले लोग लगातार सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से हाशिए पर जाते जा रहे हैं। राम मंदिर का पुनर्निर्माण एक जागते हुए भारत की कहानी का नया अध्याय हैऔर इसका स्वागत सभी को करना चाहिए, जो भी अपने आप को भारतवासी कहतेहैं और यही कारण है कि हम देख रहे हैं कि जाति,धर्म एवं राष्ट्रीयता से परे लोग उत्सव मना रहें हैं। प्राण प्रतिष्ठा की जो पूरी प्रक्रिया है उसमें बहुत बड़ी छाप भारत के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व की है। प्रधानमंत्री मोदी जी की देश और धर्म को लेकर जो विचार हैं, जो शैली है, वह प्राणप्रतिष्ठा की पूरी प्रक्रिया में दिखाई दे रही है।
प्रधानमंत्री मोदी की दूरदृष्टि, उनकी राष्ट्रीय समझ की गहरी छाप को देश देख रहा है। राम मंदिर समावेशी है और इसमें पूरे भारत की भागीदारी भी देखी जा रही है और यही मोदी जी की कार्यशैली की पहचान है। अयोध्या का उत्सव केवल अयोध्या में ही नहीं, बल्कि भारत के घर-घर में और भारत के जन-जन में मनाया जाए, इसे सुनिश्चित किया जा रहा है। कई लोगों को लगता था कि जब श्री राम मंदिर का निर्माण होगा, खास तौर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद तो कई लोगों के दिल में था कि श्री राम मंदिर के निर्माण के समय कोई कट्टर माहौल बनेगा, कोई उन्मादी माहौल बनेगा, किसी वर्ग विशेष को निशाना बनाने की कोशिश की जाएगी। परन्तु प्रधानमंत्री जी की शैली का यह सुफल परिणाम है कि सभी वर्गों को शामिल करके ही प्राणप्रतिष्ठा की गई।
धर्म स्थलों की सफाई का जो सन्देश उन्होंने दिया, स्पष्ट तौर पर उन्होंने किसी खास धर्म के स्थलों की बात नहीं की। एक तरह से स्वच्छता की जो मूल सोच थी प्रधानमंत्री जी की, उसी को श्रीराम मंदिर के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया। लाल कृष्ण आडवाणी जी जब यह लेख लिखते हैं कि यह भाग्य ने स्वयं चुना है कि किसके हाथों प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी, नियति और भाग्य ने मोदी जी को इस कार्य के लिए चुना है तो उसमें आडवाणी जी के शब्दों में पूरे भारत की भावना व्यक्त होती हैं। श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा किसी जनांदोलन का अंत नहीं, बल्कि एक प्रकार से प्रारम्भ है। ये प्रारंभ है राम मंदिर से राम राज्य की ओर जाने का।
राम राज्य के जिस स्वरुप को भारतीय जनता पार्टी और सामान्य नागरिक ने समझा है, उसके मूल में यही है कि समाज के आख़िरी नागरिक तक सरकार उपलब्ध हो। समाज के आख़िरी नागरिक तक संसाधन उपलब्ध हों, और जब राष्ट्र का विकास हो तो उसमें हर नागरिक का विकास हो, खास तौर पर वह वर्ग जो बदलते भारत से पीछे छूट गए थे, जो पिछड़े रह गए थे, जो जातियां पीछे छूट गयी थीं, जो अनछुए रह गए थे, उन सबको जोड़कर, फिर चाहे उसमें महिला हों, गरीब हों, किसान हों, युवा हों, पिछड़ी जातियां हों, जन जातियां हों, उन सबको साथ में लेकर आगे बढ़ने का प्रयास और हर लक्ष्य में उनको शामिल किया जाना, यही रामराज्य की भावना है और श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा इसी दिशा में देश को आगे ले जाने की प्रक्रिया का प्रारम्भ होगी।
भारत की राजनीतिक स्वाधीनता के बाद जब सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया जा रहा था, तब यह स्वाभाविक समझ थी कि अयोध्या, मथुरा और काशी में भी मंदिरों का पुनर्निर्माण किया जाएगा। लेकिन, उस समय कई षड्यंत्रों, साजिशों के चलते श्री राम मंदिर निर्माण को रोका गया। इसे रोकने के लिए कैसे कैसे कुचक्र रचे गए, कैसे-कैसे नैरेटिव रचे गए कि इस देश में एक वर्ग ऐसा भी खड़ा किया गया, जिसे बताया जा रहा था कि मंदिर बनाया ही क्यों जाए, मंदिर की जगह कॉलेज या अस्पताल बनाया जाए, और यहाँ तक कि कुछ लोगों ने तो मंदिर के स्थान पर शौचालय भी बनाने के लिए आन्दोलन आरम्भ कर दिए थे।
एक तरफ झूठा इतिहास पढ़ाने की कोशिश की गयी और भारत के मार्क्सवादी इतिहासकारों ने ये तक बताने की कोशिश की कि बाबर ने कभी मंदिर तोड़े ही नहीं और दूसरी तरफ जब वैज्ञानिक तरीक़ों से इतिहास का सच सामने आने लगा कि मंदिर वास्तव में तोड़े गए थे तो यह पढ़ाया जाने लगा कि आखिर मंदिर की जरूरत क्या है, मंदिर से से रोटी कैसे मिलेगी , मंदिर से इलाज कैसे होगा, मंदिर से शौचालय कैसे उपलब्ध होंगे और मंदिर से शिक्षा कैसे उपलब्ध होगी? लेकिन काशी में जब बाबा विश्वनाथ का भव्य मंदिर बनाया गया तो उसके उदाहरण ने यह साबित कर दिया कि मंदिर बनाना रोजगार का साधन बनता है , मंदिर बनाना अच्छी अर्थव्यवस्था , शिक्षा, स्वास्थ्य संस्थान बनाने का साधन भी बनता है और मंदिर अपने आप में एक आर्थिक धुरी हैं।
काशी विश्वनाथ कोरिडोर बनने के बाद से वहाँ अब पर्यटकों की संख्या 69 लाख से बढ़कर 13 करोड़ हो चुकी है , इसके कारण हुआ आर्थिक परिवर्तन सहज ही समझा जा सकता है। काशी का, केदारनाथ का और ऐसे अन्य धार्मिक स्थलों का सफल उदाहरण जो कि आज आर्थिक केंद्रों में भी बदल रहे हैं। आज अयोध्या में केवल मंदिर ही नहीं बन रहा है, बल्कि वहां 1650 करोड़ का नया एयरपोर्ट भी बन रहा है। 28000 करोड़ रुपये की 252 सरकारी परियोजनाओं पर काम चल रहा है और लगभग 85000 करोड़ का प्राइवेट इन्वेस्टमेंट सुनिश्चित हो चुका है , 2300 करोड़ रुपये का नया रेलवे स्टेशन और कई नये एक्सप्रेसवे और हाईवे निर्माणाधीन हैं।
यह दिखाई देने लग गया है कि जब आप अपनी सांस्कृतिक चेतना, अपनी मूल आध्यात्मिक पहचान के लिए काम करते हैं तो आपके लिए तमाम आर्थिक विकास के मार्ग भी खुलते हैं। सरकार उर शासन की नीयत स्पष्ट होनी चाहिए। आज काशी केवल अध्यात्म ही नहीं बल्कि टूरिज्म का भी केंद्र है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले वर्ष गोवा से भी अधिक लोग काशी में गए और रोज जा रहे हैं और अयोध्या के मंदिर में विषय में तो यह माना जा रहा है कि तिरुपति मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से लगभग आठ से दस गुना ज़्यादा श्रद्धालु प्रतिदिन अयोध्या में रामलला के दर्शन करने आएँगे। जब मंदिर बनेगा और श्रद्धालु आएँगे तो मंदिर के आसपास की अर्थव्यवस्था अपने आप ही विकसित होती चली जाएगी। इसी को ध्यान में रखते हुए बड़े कॉरिडोर, हाईवेज़, एक्सप्रेस वेज़, एयरपोर्ट का निर्माण भी सरकार के द्वारा किया जा रहा है। तो मंदिर को लेकर गढ़ा गया झूठा इतिहास और मंदिर न बने इसे लेकर रचे जा रहे तर्कहीन नैरेटिव को समाज ने स्वयं ही एक्सपोज़ कर दिया है और आज इसीलिए सभी समाज और सभी वर्ग मंदिर निर्माण को लेकर उत्साह के माहौल में है।
लोगों को खासतौर पर युवाओं को सत्य दिखने लगा है और यही कारण है कि हमें काशी में, केदारनाथ में, मथुरा में, आज केवल बुजुर्ग नहीं बल्कि युवा भी दिख रहे हैं, जो धर्म को समझ रहे हैं और इतिहास को समझकर झूठे नैरेटिव को भी टक्कर दे रहे हैं और बदलते हुए भारत की स्वाभिमानी झलक हर तरफ़ दिखने लगी है। अयोध्या में श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा माननीय प्रधानमंत्री जी के हाथों से होगी, यह भी अद्भुत संयोग है क्योंकि मोदी जी जब रथयात्रा का अंग थे, जब देश काबहुसंख्यक हिस्सा राम मंदिर निर्माण के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा तो था, परंतु सीधे तौर पर शामिल नहीं था।
तब उस जन जागरण यात्रा को प्लान करने वाले, उसका संचालन करने वाले, जो व्यक्ति थे या फिर जब देश के कोने-कोने से अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए शिलाएं एकत्र की जा रही थीं तो घर-घर से शिलाएँ एकत्र करने का कार्य करने वाले जो व्यक्ति थे, उन्हीं के हाथों, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के हाथों आज प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, यह भी अपने आप में एक अद्भुत संयोग है।
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