शिया बहुल ईरान पर दो दिन पहले मिसाइलें दागने वाले कंगाल पाकिस्तान के तेवर नरम पड़ने ही थे। ईरान के बल के आगे कहीं न टिकने वाले आतंक को पोसने के लिए कुख्यात पाकिस्तान ने अब तेहरान से वापस बुलाया अपना दूत वापस भेजने की बात की है और ईरान से संबंध पटरी पर लाने की घोषणा की है।
गत दिनों ईरान ने मिसाइलें दागकर पाकिस्तान में पल रहे एक आतंकवादी संगठन का खात्मा किया था। इससे चिढ़कर तैश में आए पाकिस्तान ने भी ईरान पर न सिर्फ जवाबी मिसाइलें दागी थीं बल्कि अपने आतंकी आकाओं को खुश करने के लिए उस देश से सभी कूटनीतिक संबंध खत्म कर लेने की बात की थी। पाकिस्तान ने तेहरान से अपना राजदूत भी वापस बुला लिया था। लेकिन सिर्फ दो दिन के अंदर उसे अपनी हैसियत का एहसास हो गया।
संभवत: पाकिस्तान की नई घोषणा से दोनों देशों के बीच उपजा तनाव कम हो जाए। लेकिन पाकिस्तान ने ईरान की ताकत के सामने खुद को कहीं न टिकता दिखा दिया है। दोनों देशों के बीच एक खुले युद्ध की संभावना कम हो गई है और एक बार फिर से रिश्तों की बहाली के रास्ते खुलने के संकेत मिल रहे हैं।
इस संबंध में कहा यह गया है कि रिश्तों को पटरी पर लाने की सलाह पाकिस्तान की नेशनल डिफेंस कमटी ने दी है। कमेटी ने अपनी बैठक में ईरान के साथ फिर से पूर्ण कूटनीतिक संबंधों को बहाल करने का फैसला किया। कमेटी ने ही पाकिस्तान के राजदूत को तेहरान वापस लौटाने का निर्णय लिया। बताया गया है कि पाकिस्तान तथा ईरान आपस में सहमत हैं कि तनाव कम किया जाए। दोनों के बीच संबंध सामान्य करने की कवायद में कई देशों की भूमिका भी बताई जा रही है।
पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून की खबर है कि इस्लामाबाद तथा तेहरान, दोनों इस बात का समझते हैं कि तनाव कम करने की जरूरत है। कहा गया है कि इस तनाव को दूर करने में चीन, रूस तथा तुर्की ने अहम भूमिका निभाई है, कूटनीतिक चैनलों से दोनों में सुलह कराई गई है।
संबंध बहाली की वजह चाहे चीन, तुर्की और रूस की मध्यस्थता हो या पाकिस्तान और ईरान की तनाव न बढ़ने देने की मजबूरी, असल में इस्राएल—हमास युद्ध और रूस—यूक्रेन युद्ध के बीच ईरान पाकिस्तान जैसे उसकी नजर में मामूली देश से उलझना नहीं चाहता होगा। संभवत: इस्राएल को लेकर वह वैसे भी दुनिया के निशाने पर है और हिज्बुल्लाह का पैरोकार समझा जाता है। तो दूसरी तरफ इस्लामवादी पाकिस्तान के पास खाने के पैसे नहीं हैं, ऐसे में युद्ध की वह सोच तक नहीं सकता है।
इधर ईरान के विदेश मंत्रालय का एक बयान भी आया है कि वह चाहता है पड़ोसी पाकिस्तान के साथ संबंध मधुर बने रहें। बयान ने ‘बाहरी तत्वों के दोनों देशों के बीच संबंध बिगाड़ने की साजिश को कामयाब नहीं होने देने की कसमें खाने’ की बात की है।
इस बीच पाकिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने कल ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन से फोन पर वार्ता करके मामला सुलझाने की कोशिश की। दोनों नेताओं की यही इच्छा थी कि पाकिस्तान और ईरान के बीच संघर्ष बड़ा रूप न ले। टेलीफोन वार्ता में पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने ईरानी विदेश मंत्री को कहा कि पाकिस्तान ईरान के साथ कूटनीतिक संबंधों को पटरी पर लाना चाहता है। पाकिस्तान के विदेश विभाग ने इस संबंध जो बयान जारी किया है उसमें है कि जिलानी ने सुरक्षा की दृष्टि से आपस में विश्वास तथा सहयोग की जरूरत की बात की, प्रतिबद्धता जताई कि पाकिस्तान ईरान के साथ सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है।
उधर अब्दुल्लाहियन का कहना है कि ईरान की विदेश नीति तथा पड़ोसियों के प्रति नीति, दोनों में पाकिस्तान खास महत्व रखता है। दोनों देशों को सुरक्षा तथा सैन्य सहयोग के क्षेत्रों में आगे बढ़ना है।
संबंध बहाली की वजह चाहे चीन, तुर्किए और रूस की मध्यस्थता हो या पाकिस्तान और ईरान की तनाव न बढ़ने देने की मजबूरी, असल में इस्राएल—हमास युद्ध और रूस—यूक्रेन युद्ध के बीच ईरान पाकिस्तान जैसे उसकी नजर में मामूली देश से उलझना नहीं चाहता होगा। संभवत: इस्राएल को लेकर वह वैसे भी दुनिया के निशाने पर है और हिज्बुल्लाह का पैरोकार समझा जाता है। तो दूसरी तरफ इस्लामवादी पाकिस्तान के पास खाने के पैसे नहीं हैं, ऐसे में युद्ध की वह सोच तक नहीं सकता है।
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