कॉर्बेट सिटी राम नगर। देवभूमि उत्तराखंड के रामनगर फॉरेस्ट डिवीजन में पवलगढ कंजर्वेशन का नाम बदलकर सीतावनी कंजर्वेशन फॉरेस्ट किया जाएगा। कुमाऊं के इतिहास की किताबों और स्कंद पुराण में सीतावनी का इतिहास मिलता है और यह स्थान महर्षि वाल्मीकि, माता सीता और लव-कुश से जुड़ा हुआ बताया गया है। यहां स्थापित मंदिर आश्रम की देखरेख पुरातत्व विभाग करता है और यहां आने-जाने की अनुमति वन विभाग देता है।
टोंगिया गांव के बच्चों ने किया अनुरोध
22 जनवरी को श्रीराम मंदिर में रामलला विराजमान होंगे। इस दिन सीएम धामी इस वन क्षेत्र को सीतावनी कंजर्वेशन घोषित कर सकते हैं। जानकारी के मुताबिक इस संबंध में उन्होंने वन विभाग को नोटिफिकेशन जारी करने के लिए निर्देशित कर दिया है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हल्द्वानी आए थे तब टोंगिया गांव के बच्चे उनसे मिले थे और उन्होंने अपने पत्र सौंपे थे, जिसमें उन्होंने पवलगढ़ आरक्षित जंगल का नाम सीतावनी किए जाने का अनुरोध किया गया था। सीएम धामी ने इन बच्चों की भावनाओ की मंच से प्रशंसा करते हुए कहा था कि प्रभु श्री राम के सभी कार्य ऐसे ही हमारी सरकार पूरे करेगी। धामी ने इस वन क्षेत्र को श्री राम तीर्थ सेक्टर के रूप में प्रचारित और संरक्षित किए जाने के लिए भी दिशा-निर्देश दिए हैं।
पौराणिक मान्यताएं
मान्यता है कि गुरु विश्वामित्र के कहने पर एक बार श्री राम, लक्ष्मण व माता सीता यहां आए थे। वन की सुंदरता देख माता सीता ने प्रभु श्री राम से कहा कि बैशाख के महीने में हमे यहाँ रहना चाहिए और कौशिकी में स्नान करना चाहिए। वह बैशाख में यहीं रहे और यहां पानी के दो झरने निकल आए। दूसरी मान्यता है कि यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। वनवास के दौरान सीता जी यहीं रहीं और यहीं लव-कुश का जन्म हुआ।
स्कंद पुराण में भी जिक्र
स्कंद पुराण में कौशिकी नदी जो आज कोसी नदी है के बाईं ओर शिवगिरि पर्वत है। जिसे सिद्ध आत्माओं और गन्धर्वों का विचरण स्थल कहा गया है। रामायण, स्कंद पुराण और महाभारत में भी सीतावनी का उल्लेख मिलता है। यहां के महंत शिवगिरि की मानें तो मंदिर में जल की तीन धाराएं हैं। यह जल गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गुनगुना रहता है।
लोग सीतावनी क्षेत्र में बाघ और अन्य वन्यजीव देखने जाते हैं और मंदिर के दर्शन भी करते हैं । यह धार्मिक महत्व के साथ ही पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है। हर साल हजारों पर्यटक इस क्षेत्र में आने लगे हैं। इससे वन विभाग को राजस्व भी प्राप्त होने लगा है।
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