स्वतंत्र और सवप्रभु द्विपीय देश ताइवान ने ताजा राष्ट्रपति चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार की राष्ट्रपति पर बैठने की घोषणा से वह चीन ओर चिढ़ गया है जो इस देश को ‘अपनी भूमि का हिस्सा’ मानता है। ताइवान में राष्ट्रपति के नाते चुने गए लाई चिंग-ते ने चुनावों के दौरान ही चीन समर्थक तत्वों को जता दिया था कि अलगाव की बात करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे। और उनके इस रुख के बाद, ताइवान की देशभक्त जनता ने उनको बहुमत सौंपा है। लेकिन दो दिन पहले जब उनके जीतने की खबर आई तबसे ही चीन का विदेश विभाग हरकत में आ गया है। इस संबंध में जारी उसका ताजा वक्तव्य ताइवान पर और सख्त होते उसके पैंतरों की कलई खोलता है।
चीन की विस्तारवादी कम्युनिस्ट सत्ता को लाई चिंग-ते का चुना जाना हजम नहीं हो रहा है। चीन की ताइवान को हड़पने की कोशिशों में अब उन्हें बड़ा रोड़ा मान रहा बीजिंग नए सिरे से आक्रामक होने के संकेत दे रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी कई मौकों पर ताइवान को ‘अपना एक प्रांत’ बता चुके हैं और कह चुके हैं कि जरूरत पड़ी तो सैन्य कार्रवाई करके उसे ‘मुख्य भूमि’ में मिलाएंगे।
चीन की इस संबंध में पश्चिमी देश को लेकर भी बयानबाजी बढ़ती देखी गई है। तानाशाह माने जाने वाले जिनपिंग उन नेताओं में गिने जाते हैं जो अपने तय फैसलों को पलटते नहीं हैं। ताइवान को लेकर चीन की युद्धक धमकियां भी लगातार जारी रही हैं। उसके हवाई क्षेत्र में आएदिन घुसपैठ करने की बीजिंग की नीति काफी समय से उस देश को सताए हुए है। लेकिन वहां की पूूर्वॅवर्ती राष्ट्रीय सोच वाली सरकार ने उसकी तमाम चालें नाकाम करने की पूरी कोशिश की है। लाई चिंग-ते से पूर्व त्याई इंग वेन ने राष्ट्रपति रहते हुए ताइवान को एक स्वतंत्र व संप्रभु राष्ट्र के नाते गौरव से खड़ा रखा है। अब लाई भी उसी सोच के साथ काम करने वाले हैं।
लाई चिंग की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने चीन के उस दावे को कभी माना नहीं है कि ताइवान उसका हिस्सा है। अपने इसी भाव की वजह से इस बार पार्टी ने तीसरी बार सत्ता की कमान संभाली है। लाई का जीतना बीजिंग को चीन के हितों के विपरित लग रहा है। चुनाव से पहले चीन ने ताइवान के वोटरों को एक धमकी जैसी दी थी कि लाई को न चुनें नहीं तो चीन की नाराजगी झेलनी पड़ेगी, लेकिन लाई की जीत ने चीन को एक चपत ही लगाई है।
इसलिए स्वाभाविक है कि उनके चुनाव के बाद चीन ने नए सिरे से अपने डैने पैने करने शुरू किए हैं। कहना न होगा कि चीन ताइवान को जकड़ने का उचित समय देख रहा है। ताइवान में लाई चिंग-ते की जीत से राष्ट्रपति शी की त्योरियां चढ़ रही हैं।
लाई चिंग की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने चीन के उस दावे को कभी माना नहीं है कि ताइवान उसका हिस्सा है। अपने इसी भाव की वजह से इस बार पार्टी ने तीसरी बार सत्ता की कमान संभाली है। लाई का जीतना बीजिंग को चीन के हितों के विपरित लग रहा है। चुनाव से पहले चीन ने ताइवान के वोटरों को एक धमकी जैसी दी थी कि लाई को न चुनें नहीं तो चीन की नाराजगी झेलनी पड़ेगी, लेकिन लाई की जीत ने चीन को एक चपत ही लगाई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अब चीन लाई को भी चैन से नहीं बैठने देगा। चीन के विदेश मत्रांलय के बयान को देखें तो उसने साफ कहा है कि विश्व में एक ही चीन है तथा ताइवान चीन का ही हिस्सा है, इस तथ्य में बदलाव नहीं हो सकता है। यह संभव नहीं है।
चीन के मीडिया में भी ताइवान और लाई की जीत पर कई समाचार प्रकाशित हुए हैं। चीन के सरकारी चैनल सीसीटीवी न्यूज़ में राज्य परिषद में ताइवान मामलों के विभाग के प्रवक्ता शेन का बयान है कि ‘ताइवान में चुनाव किसी भी तरह यह सिद्ध नहीं कर देता कि चीन का ताइवान की जमीन पर कोई हक नहीं है’। शेन ने कहा कि ‘हम हमेशा से चाहते हैं कि ताइवान का मुद्दा सुलझे। और एक दिन हम इसे सुलझा ही लेंगे। हमारी यह बात पत्थर की तरह ठोस है’।
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