जैसे-जैसे अयोध्या में प्रभु श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तिथि निकट आती जा रही है, वैसे-वैसे इंडी गठबंधन के नेताओं का हिन्दू विरोध और तेज होता जा रहा है। हिन्दुओं के प्रति उनका द्रोह लगातार दिखता जा रहा है। किसी न किसी बहाने से हिन्दुओं के धार्मिक विश्वास पर हमले हो रहे हैं और लगातार ही यह तेज हो रहे हैं।
सबसे पहले कांग्रेस की बात की जाए, तो ऐसा लग रहा है जैसे वह मानसिक रूप से दीवालिये पन या बहुत अधिक मुस्लिम तुष्टिकरण की ओर बढ़ चली है, जहां पर उसके लिए केवल हिन्दू- विरोधियों का मत ही महत्वपूर्ण है। और ऐसा नहीं है कि हिन्दू प्रतीकों के प्रति अपमान की यह यात्रा नेतृत्व में नीचे से ऊपर जा रही है, यह ऊपरी नेतृत्व से नीचे की ओर आ रही है।
कुछ ही दिन पहले सैम पित्रोदा अर्थात सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा, जिनके नाम में ही राम है, फिर भी उन्हें राम के नाम से समस्या है। उनका कहना था कि क्या राम मंदिर ही असली मुद्दा है? और रोजगार, महंगाई आदि पर बात क्यों नहीं हो रही है आदि उन्होंने कहा था। सैम पित्रोदा ने जैसे ही यह बयान दिया था, वैसे ही लोगों ने कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया था। हालांकि मामले की नजाकत को भांपते हुए कांग्रेस ने इस बयान से दूरी बना ली और कहा कि यह कांग्रेस का आधिकारिक बयान नहीं है। मगर कांग्रेस यह कहते समय यह भूल जाती है कि दरअसल यही बयान कांग्रेस का आधिकारिक दृष्टिकोण है। क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो लगातार मंदिरों का विरोध करने वाले बयान कांग्रेस से नहीं आते? लगातार प्रभु श्री राम का अपमान या तो कांग्रेस के नेताओं के माध्यम से या फिर सहयोगी नेताओं के माध्यम से किया जा रहा है और कांग्रेस आधिकारिक रूप से मौन है।
तमिलनाडु के इंडी गठबंधन के नेता तो सनातन धर्म को ही मिटाने की बात करते हैं मगर कांग्रेस इस पर मौन रहती है। फिर कांग्रेस यही कहती है कि यह उनका आधिकारिक वक्तव्य नहीं है। वह इनसे इत्तेफाक नहीं रखती। यदि आपस में इतनी इत्तेफाकेदारी नहीं है तो आखिर इत्तेफाकेदारी है किससे? क्या केवल हिन्दू विरोध से ही इत्तेफकेदारी है? या केवल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार को गिराने पर ही इत्तेफकेदारी है?
यह कहा जा सकता है कि यही सत्य है कि किसी न किसी प्रकार सत्ता हासिल करने में ही हिस्सेदारी को लेकर ही इत्तेफाकेदारी है।
हिन्दू विरोध को लेकर कांग्रेस के नेता किसी भी प्रकार से पीछे नहीं हैं। कर्नाटक के कांग्रेसी नेता इन दिनों हिन्दुओं को लेकर अत्यंत आपत्तिजनक बयान दे रहे हैं। हाल ही में कर्नाटक कांग्रेस के पूर्व विधायक यथिन्द्र सिद्धारमैया ने 3 जनवरी को कहा कुछ लोग भारत को हिन्दू राष्ट्र की तरफ धकेल रहे हैं और ऐसा करके वह भारत को पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बदल देंगे।
दरअसल उनका इशारा इस ओर था कि यदि भारत में अधिक हिन्दू धर्म की बात होगी तो वह उसी कट्टरता की ओर चला जाएगा जहां पर कट्टर इस्लामी सोच का शासन है। मगर कांग्रेस के नेता अमेरिका जैसे देश की बात नहीं करते, जहाँ पर लोकतांत्रिक मूल्य तो हैं मगर आज भी बाइबिल पर अहथ रखकर ही संसद में शपथ ली जाती है।
धार्मिक मूल्य एवं मजहबी कट्टरता दो अलग-अलग बातें हैं और जहां तक हिन्दू धर्म की बात है तो एकमात्र धर्म है जो सर्व कल्याण की बात करता है। कांग्रेस एक वे नेता जो एक मंदिर के निर्माण से इतने बिलबिला गए हैं कि वह हिन्दू धर्म को कट्टर मुस्लिम मजहबी उन्माद के समक्ष खड़ा कर रहे हैं, उनकी सोच के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता है, क्योंकि उनका एकमात्र उद्देश्य हिन्दुओं को बदनाम करना ही है।
कांग्रेस के नेताओं का हिन्दू विरोध यहीं समाप्त नहीं होता है, कर्नाटक के एक और नेता बीके हरिप्रसाद इस सीमा तक बौखला गए हैं कि उन्होंने यह तक कहा है कि कर्नाटक में गोधरा जैसी घटना भी हो सकती है।
हालांकि इन दोनों पर कांग्रेस की आधिकारिक इत्तेफाकेदारी है या नहीं यह नहीं पता!
प्रभु श्री राम के इस मंदिर का सबसे मजेदार और रोचक विरोध आया है राष्ट्रीय जनता दल के युवराज एवं वर्तमान में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की ओर से! उनका कहना है कि हजारों लाखों करोड़ रुपये मन्दिर की जगह शिक्षा में , स्वास्थ्य सुविधाओं में लगाये जाते , बेरोजगारों को नोकरी दी जाती तो राम भगवान भी खुश होते”
मगर यह समझ नहीं आता कि मंदिर निर्माण का विरोध करने वाले स्वयं के लिए और अपने परिवार के लिए क्यों मंदिर जैसे भवन बनवा लेते हैं? पशुओं का चारा हडपने के आरोपी लालू यादव, जो उपमुख्यमंत्री के पिता है, और जिनका शासन बिहार में लम्बे समय तक रहा और साथ ही उनके बाद उनकी पत्नी अर्थात वर्तमान में उपमुख्यमंत्री तेजस्वीयादव की माँ राबड़ी देवी का शासन भी बिहार में रहा, उन्होंने अपने परिवार के लिए क्या कुछ नहीं किया, मगर क्या उन्होंने बिहार में एक भी स्कूल ढंग का नहीं बनवाया जहां से उनका अपना ही बेटा इतना पढ़ जाता कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाता? आखिर क्या कारण रहा कि एक मुख्यमंत्री ने शिक्षा की सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया?
मंदिर के बदले शिक्षा में निवेश करने वाले लोग वही हैं जिन्होंने पशुओं के लिए चारा के धन का प्रयोग अपने लिए कर लिया और इन्हें शर्म भी नहीं आती है यह बोलने में कि मंदिरों के लिए लाखों करोड़ों रूपए स्वास्थ्य सुविधाओं में लगाए जाते तो भगवान राम खुश होते? यदि चारा घोटाले के आरोपी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने घोटाला करने के स्थान पर अपने राज्य की मूलभूत सुविधाओं पर कार्य किया होता और स्वास्थ्य एवं शिक्षा की व्यवस्था की होती तो इंडी गठबंधन के ही दूसरे दल के नेता की बिहार के लोगों पर अपमानजनक टिप्पणी करने की हिम्मत नहीं होती कि यूपी और बिहार के लोग टॉयलेट साफ़ करने आते हैं।
हालांकि यह बयान पुराना है और वर्ष 2019 का है, और उसके बाद उत्तर प्रदेश की स्थिति में काफी परिवर्तन आया है। उत्तर प्रदेश योगी सरकार के अंतर्गत निवेश एवं औद्योगिक विकास को लेकर नई उपलब्धियां अर्जित कर रहा है तो वहीं बिहार की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। दयानिधि मारन की इस टिप्पणी को लेकर तेजस्वी यादव ने यह कहा था कि डीएमके सामाजिक न्याय में विश्वास करती है। अगर उस पार्टी के किसी नेता ने यूपी और बिहार के लोगों के बारे में कुछ कहा है, तो यह निंदनीय है। हम इससे सहमत नहीं हैं। यूपी और बिहार के मजदूरों की मांग पूरे देश में है। अगर वे नहीं गए, तो उन राज्यों में जीवन रुक जाएगा। लोगों को इस तथ्य को समझना चाहिए।
जिस राज्य के नेता को इस बात को लेकर गर्व का अनुभव हो कि उसके राज्य के मजदूरों की मांग पूरे देश में है, उस नेता से यह प्रश्न तो पूछा ही जाना चाहिए कि आपका शासन है, आपके पिता का शासन रहा तो क्या आपने मजदूर ही पैदा किए?
क्या कारण है कि बिहार के मजदूरों की मांग पूरे देश में होती है? और जहां वह जाते हैं वहां अपमानजनक व्यवहार का शिकार होते हैं, और उसी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री मंदिर निर्माण को लेकर यह आपत्तिजनक वक्तव्य दे रहा है कि मंदिरों के स्थान पर शिक्षा और रोजगार पर पैसा लगाया जाता? सोशल मीडिया पर लोग यह कह रहे हैं कि भूख लगने पर हिन्दू मंदिर भले ना जाये,, भूखा मर जायेगा,, पर तुम्हारे बाप की तरह जानवरों का “चारा” नहीं खाएगा? और दूसरी बात कि जब पहले भूख लगती थी तो क्या “बाबरी मस्जिद” जाते थे?
इसके साथ ही एनसीपी के नेता जितेन्द्र अव्हाड़ ने तो प्रभु श्री राम को मांसाहारी भी बता दिया और कहा कि वह वन में थे तो क्या खाते थे? मांस ही खाते होंगे?
हालांकि विवाद बढ़ने पर उन्होंने क्षमा मांगते हुए कहा कि उनका इरादा किसी को ठेस पहुंचाने का नहीं था।
यह कांग्रेस और इंडी गठबंधन की आदत है कि वह पहले अपने वोटबैंक को खुश करने के लिए हिन्दू विरोधी बयान देते हैं और बाद में या तो असहमति जताते हैं या फिर माफी मांगते हैं। हाँ, उनके वोट बैंक के पास संदेश पहुँच जाता है कि अंतत: उनकी मंशा क्या है?
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