भारत के प्रधानमंत्री बनने का सपना लेकर भारतीय जनता पार्टी के विरोध में विपक्षी दलों का INDIA गठबंधन लगभग तैयार हो गया है और हर दल का अपना-अपना दावा भी सामने आ रहा है। प्रत्येक दल की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं भी सामने आ रही हैं, लेकिन, सबसे बड़ी प्राथमिकता सरकार बनाना और इंडी गठबंधन का प्रधानमंत्री बनाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पराजित करने का सपना लेकर लगभग 26 विपक्षी दल एक साथ आए हैं। इन दलों में सबसे बड़ा दल कांग्रेस है और उसकी ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन है, इसमें कोई विवाद नहीं है। यह निर्विवाद तथ्य है कि आखिर कांग्रेस किसे प्रधानमंत्री बनाना चाहती है। वह बात दूसरी है कि कांग्रेस के युवराज के चेहरे पर इंडि गठबंधन को विश्वास नहीं है और प्रधानमंत्री पद को लेकर रोज नए-नए चेहरे सामने आते रहते हैं।
जहां एक ओर कांग्रेस के युवराज की सर्वस्वीकार्यता पर पहला प्रहार कांग्रेस की ही सहयोगी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया तो वहीं बहुजन समाज पार्टी को इंडी गठबंधन में लाने की कवायद को धक्का तब लगा जब बहुजन समाज पार्टी के एक नेता की ओर से यह शर्त रख दी गयी कि मायावती को इंडी गठबंधन का चेहरा बनाया जाए। सारी कवायद चेहरे की है। कवायद इस बात की है कि कैसे भी जोड़तोड़ करके सत्ता में आया जाए, चेहरा केवल एक है! वह चेहरा है नरेंद्र मोदी विरोध का। इस विरोध वाले चेहरे पर मुखौटे बदलते रहते हैं। हाँ, यह बात महत्वपूर्ण है कि चाहे किसी का भी मुखौटा नरेंद्र मोदी विरोध पर लगाया जाए, कोई भी यह मुखौटा बनने के लिए तैयार नहीं है।
जहां एक ओर ममता बनर्जी ने कांग्रेस के ही मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे किया था, तो वहीं बहुजन समाज पार्टी ने मायावती का नाम आगे किया है। बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। ममता बनर्जी भी प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश में प्रधानमंत्री देखते हैं।
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परन्तु यह सबसे रोचक है कि जिन नामों का उल्लेख किया जाता है वह खुद आगे बढ़कर यह नहीं कहते कि हाँ, वह ही नरेंद्र मोदी को परास्त करके इंडी गठबंधन का नेतृत्व करेंगे या फिर इंडी गठबंधन का नेतृत्व करके प्रधानमंत्री बनेंगे? कहने के लिए इतने सारे नेतृत्व हैं, परन्तु आगे बढ़कर इस सेना की कमान थामने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है।
क्या यह डर है या फिर कुछ और? या फिर हर दल अपनी अपनी ढपली बजा रहा है कि उनका ही नेता प्रधानमंत्री हो या फिर किसी नेता की अनकही महत्वाकांक्षा है कि वही प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हों, जैसा कि बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे किए जाने पर कुपित हो गए थे और उन्होंने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई थी।
कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम पर जब ममता बनर्जी ने प्रस्ताव रखा था, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एवं शिव सेना (उद्धव गुट) के नेता उद्धव ठाकरे ने भी इसी प्रस्ताव का अनुमोदन किया था। यह बहुत ही हैरानी की बात है कि अरविन्द केजरीवाल, जो नरेंद्र मोदी के बाद स्वयं को उनका अघोषित एवं स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते हैं, वह भी मन की अभिलाषा को बाहर न लाकर मल्लिकार्जुन खड़गे का समर्थन कर रहे हैं। क्या यह समझा जाए कि वह भी चेहरा होते हुए भी चेहरा नहीं होना चाह रहे हैं?
वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार का कहना है कि किसी का भी चेहरा इंडी गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के लिए जरूरी नहीं है। सोमवार को शरद पवार ने यह जोर देकर कहा कि विपक्षी दलों को प्रधानमंत्री पद के लिए किसी नाम की घोषणा करना जरूरी नहीं है। शरद पवार ने 1977 के आम चुनावों का उदाहरण देते हुए कहा कि जब 1977 में आम चुनाव हुए थे तो विपक्षी दल बिना चेहरे के लड़े थे और मोरार जी देसाई कहीं भी रेस में नहीं थे।
शरद पवार का कहना है कि जब जनता मन बनाती है तो चेहरा नहीं देखती है। मगर उन्हीं की बातों के उलट अब कांग्रेस के नेता एवं कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि केवल कांग्रेस में ही देश की समस्याओं को हल करने की शक्ति है और यह कि राहुल गांधी को भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। 29 दिसंबर को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इंडी गठबंधन की ओर से राहुल गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित करते हुए कहा कि केवल कांग्रेस ही इस देश की समस्याओं का समाधान दे सकती है और इसके लिए राहुल गांधी को ही देश का प्रधानमंत्री होना चाहिए। सिद्धारमैया ने यह बात बंगलुरु में कांग्रेस के 139वें स्थापना दिवस के अवसर पर कही।
खड़गे का यह कहना था कि किसी ने भी देश में भारत जोड़ो यात्रा नहीं की है। गौरतलब है कि इंडि गठबंधन की ओर से कई नाम आ रहे हैं, कोई खुश हो रहा है, कोई मायूस हो रहा है। मगर कोई खुलकर सामने आकर यह नहीं कह रहा है कि हाँ, मैं हूँ चेहरा या यह है चेहरा? हर कोई प्रधानमंत्री बनना चाहता है, मगर आगे बढ़कर कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है। फिर ऐसे में जितने दल, उतने नेता या फिर जितने नेता उतने प्रधानमंत्री? या कहें इंडी गठबंधन के कितने प्रधानमंत्री?
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