पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को लेकर दो भयावह करने वाले समाचार आ रहे हैं, मगर यह दुर्भाग्य की बात है कि गाजा की महिलाओं पर शोर मचाने वाली लॉबी इन भयावह घटनाओं पर मौन हैं। बात पहले अफगानिस्तान की, जहाँ पर तालिबान का शासन है। महिलाओं के लिए तालिबान ने जहाँ एक ओर बाहर निकलने के सभी मार्ग बंद कर दिए हैं तो अभी हाल ही में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर भी दिल दहला देने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इसके मुताबिक, गर्भवती महिलाओं की स्थिति अफगानिस्तान में बहुत खराब है। वहां हर दो घंटे में एक महिला की मौत बच्चे को जन्म देते समय हो रही है। इस बात की पुष्टि करते हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफेन दुजारिक ने इसी महीने कहा था कि हर दो घंटे में एक गर्भवती की मृत्यु हो रही है।
हालांकि अभी तक अफगान स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रया नहीं दी गई है। मगर फिर भी यह होना स्वाभाविक है, क्योंकि वहां पर महिलाओं का अकेले बाहर निकलना प्रतिबंधित है, बिना परदे के निकलना प्रतिबंधित है तो ऐसे में वह प्रसव जैसी स्थितियों में अकेले कैसे बाहर निकलेंगी? डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा संचालित किए जा रहे अस्पताल में डॉक्टर्स इन महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। इस अस्पताल द्वारा एक महिला जुबैदा के विषय में बताया गया है कि वह पूर्वी अफगानिस्तान से इस अस्पताल में आई थी, क्योंकि उसका मामला बहुत पेचीदा था। क्रिटिकलनेस ये थी कि या तो वह महिला या फिर उसका बच्चा दोनों में से एक ही जीवित रह सकता था। हालांकि उसकी किस्मत अच्छी थी कि वह दोनों ही बच गए। मगर इस अस्पताल में आने वाली हर महिला इतनी भाग्यशाली नहीं होती है।
इस परिसर में एक वर्ष में 20,000 से अधिक प्रसव होते हैं और यहाँ पर केवल वही मामले आते हैं जो जटिल होते हैं। खोस्त प्रांत की राजधानी खोस्त में एमएसएफ में दाइयों की प्रमुख थेरेसी तुयिसाबिंगेरे, का कहना है कि उनके लिए जीवन बचाना बहुत कठिन होता है। वह और लगभग 100 दाइयां अफगानिस्तान में गर्भवती मृत्यु दर कम करने के लिए एक युद्ध लड़ रही हैं, मगर उन्हें इस लड़ाई में समस्याएं आ रही हैं। गैर-सरकारी संगठन नॉर्वेजियन अफगानिस्तान समिति (एनएसी) के अफगानिस्तान के डायरेक्टर टेर्जे वॉटरडाल का दावा है कि उन्होंने अफगानिस्तान के दूरदराज के हिस्सों में प्रति 100,000 जन्मों पर 5,000 माताओं की मृत्यु देखी है। उन्होंने कहा, “पुरुष महिलाओं को अपने कंधों पर लेकर आते हैं और महिलाएं अस्पताल पहुंचने की कोशिश में पहाड़ पर मर जाती हैं।”
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शरिया बना काल
यह तो प्रसव के दौरान महिलाओं की मृत्यु है, लेकिन एक विषय और है, जिस पर लोगों का ध्यान सहज नहीं जाता है। महिलाओं की मृत्यु को प्राकृतिक आपदा में हुई मृत्यु मानकर अनदेखा कर दिया जाता है। वो है हाल ही में अफगानिस्तान में आए भूकम्पों में महिलाओं की हुई मृत्यु। अक्टूबर में जब अफगानिस्तान में भूकंप आया था, जिसको लेकर यूएन के अधिकारी ने खुलासा किया था कि इससे महिलाएं और लड़कियां ही अफगानिस्तान में सबसे अधिक प्रभावित हुई थीं। यूएनवीमेन ने हेरात प्रांत के क्षेत्रों की में महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं के विषय में बताया था कि तहजीबी अंतर है, उसके चलते महिलाएं पड़ोसियों या फिर दूसरे परिवारों के साथ टेंट साझा नहीं कर सकती हैं। अगर उनके पास ऐसा कोई पुरुष संबंधी नहीं है जो उनकी ओर से मानवीय सहायता ले सके तो वह मानवीय सहायता भी नहीं ले सकती हैं, क्योंकि सहायता वितरण केन्द्रों पर महिला कार्यकर्ता नहीं थीं।
जितना सच ये है कि भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है, जिसमें किसी की भी जान जा सकती है, उतना ही सच ये भी है कि अफगानिस्तान में महिलाएं बहुत अधिक प्रभावित हुईं। इसके विषय में बात करते हुए पीड़ित महिलाओं ने कहा था कि वह बिना राष्ट्रीय पहचान कार्ड, या ताजकेरा के बिना सहायता नहीं ले सकती हैं और उन्हें कपड़े चाहिए, और इस्लामिक हेडस्कार्फ भी, जिससे वह सेवाएं और सहायता लेने के लिए उचित तरीके से कपड़े पहन सकें। यह भी कहा गया था कि तालिबान द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते अधिकाँश महिलाएं घरों के भीतर ही थीं, इसलिए वह बाहर नहीं निकल पाईं और भूकंप जैसी आपदा का शिकार अधिक हुईं।
वहीं इसको लेकर तालिबान ने यह कहा था कि पुरुष चूंकि बाहर काम पर थे, इसलिए वह बच गए थे। यदि रात में भूकंप आता तो ऐसा कोई “लैंगिक अंतर” नहीं होता! परन्तु यह भी कहा जा सकता है कि यदि महिलाओं के बाहर निकलने पर प्रतिबन्ध न होता तो महिलाएं इस सीमा तक इस प्राकृतिक आपदा का शिकार न होतीं । अफगानिस्तान ही नहीं एक दूसरे पड़ोसी इस्लामिक देश पाकिस्तान से भी डॉन ने एक रिपोर्ट के हवाले से यह कहा जा है कि वहां पर महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा एक मौत महामारी के रूप में उभर कर सामने आ रही है। यह रिपोर्ट हालांकि वर्ष 2020 के एवं कोविड के दौरान की है, परन्तु पाकिस्तान के समाचार पत्र डॉन ने इसे 27 दिसम्बर को उद्घृत करते हुए रिपोर्ट प्रकाशित की है कि पाकिस्तान में महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार बहुत अधिक हो रही हैं।
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