नया मीडिया अपने दौर के सामाजिक रुझानों, प्रवृत्तियों, आदतों और अभिव्यक्ति के रंग-ढंग को पारंपरिक मीडिया की तुलना में अधिक तेजी से अपना लेता है, क्योंकि उस दौर की युवा आबादी और उस दौर का नया मीडिया- दोनों प्राय: एक ही पीढ़ी से आते हैं।
संचार माध्यम भले ही किसी भी रूप में हों, अपने दौर की भाषा से प्रभावित होते हैं और स्वयं भी भाषा को प्रभावित करते हैं। इनकी प्रवृत्ति डायनेमिक है और वे हर कालखंड में अभिव्यक्ति के नए मंचों को अपनाते तथा विकसित करते आए हैं। ये नए मंच शुरू में एक वैकल्पिक माध्यम के रूप में सामने आते हैं और धीरे-धीरे मीडिया की मुख्यधारा का हिस्सा बन जाते हैं। अपने प्रारंभिक दौर में हम उन्हें ‘नए मीडिया’ के रूप में परिभाषित और चिह्नित करते हैं, किंतु कुछ दशकों के बाद वे पारंपरिक मीडिया की श्रेणी में गिने जाने लगते हैं, क्योंकि तब तक किसी और ‘नए मीडिया’ का उभार हो चुका होता है। वाचिक माध्यमों, शब्दांकन, मुद्रण, सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन और वेब का इतिहास इसी ओर संकेत करता है।
नया मीडिया अपने दौर के सामाजिक रुझानों, प्रवृत्तियों, आदतों और अभिव्यक्ति के रंग-ढंग को पारंपरिक मीडिया की तुलना में अधिक तेजी से अपना लेता है, क्योंकि उस दौर की युवा आबादी और उस दौर का नया मीडिया- दोनों प्राय: एक ही पीढ़ी से आते हैं। उनकी विकास प्रक्रियाओं के बीच भी स्वाभाविक तारतम्य होता है। वे एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझते तथा अभिव्यक्त करते हैं। मौजूदा समय में नई पीढ़ी के लिए प्रयुक्त होने वाले ‘डिजिटल नेटिव’ (डिजिटल दुनिया के मूल निवासी) नामक विशेषण से यह तथ्य बखूबी ध्वनित होता है।
डिजिटल नेटिव वे हैं, जो डिजिटल प्रौद्योगिकी आधारित संचार माध्यमों और साधनों को किसी नई तथा चुनौतीपूर्ण परिघटना की तरह नहीं देखते, अपितु अपने समय की स्वाभाविक विकास प्रक्रिया के रूप में देखते और अपनाते हैं। विकास की इस प्रक्रिया में नई पीढ़ी तथा नए मीडिया ने किन विशिष्टताओं, नवीनताओं और विभिन्नताओं को अपनाया तथा आगे बढ़ाया, इसका अध्ययन समाजशास्त्रीय दृष्टि से बहुत रुचिकर एवं महत्वपूर्ण होता है। भाषायी संदर्भ में तो इसका अतिशय महत्व है।
नया मीडिया अब पारंपरिक अर्थों में ‘नया’ नहीं रह गया है और न ही सोशल मीडिया, जो कि नए मीडिया का एक अनुप्रयोग है। 1990 के दशक में विश्वव्यापी वेब के आगमन के बाद लगभग 33 साल बीत चुके हैं। अक्सर हम 35 वर्ष तक की आयु को युवा आयु मानते हैं। एकाध साल में नया मीडिया अपने यौवन की आयु से आगे निकल चुका होगा। किसी माध्यम के विकास और स्थायित्व के लिहाज से यह पर्याप्त रूप से बड़ी अवधि है।
युवा आबादी और उस दौर का नया मीडिया- दोनों प्राय: एक ही पीढ़ी से आते हैं। उनकी विकास प्रक्रियाओं के बीच भी स्वाभाविक तारतम्य होता है। वे एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझते तथा अभिव्यक्त करते हैं। मौजूदा समय में नई पीढ़ी के लिए प्रयुक्त होने वाले ‘डिजिटल नेटिव’ (डिजिटल दुनिया के मूल निवासी) नामक विशेषण से यह तथ्य बखूबी ध्वनित होता है।
नए मीडिया का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पारंपरिक संचार माध्यमों की तुलना में उसकी पहुंच का परिमाण कई गुना विशाल है। विश्व का लगभग हर औसत नागरिक, भले ही वह हिंदी सहित कोई भी भाषा बोलता हो, किसी न किसी रूप में उससे जुड़ा है। जब दुनिया के अरबों लोग एक वर्चुअल समुदाय का हिस्सा हों, तो उनके बीच होने वाले औपचारिक-अनौपचारिक संपर्क विविध किस्म के अभूतपूर्व तथा अद्भुत अनुभवों एवं प्रभावों को जन्म देते हैं। शब्दों, कहावतों, अभिव्यक्ति के तौर-तरीकों, परंपराओं और विधाओं का आदान-प्रदान होता है। जानकारियों का दायरा भी बढ़ता है और अभिव्यक्ति के रंग-ढंग भी बदलते हैं। हालांकि ऐसा पहले भी होता आया है, लेकिन मौजूदा दौर में आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रभुत्व के कारण परिवर्तन की गति बहुत अधिक तीव्र है और दायरा बहुत व्यापक।
ये बदलाव एक तरफ भाषाओं को ताजगी तथा विस्तार देते हैं, तो कहीं-कहीं उनमें विकृतियां भी लाते हैं। वे अनेक किस्म की परंपराओं तथा जड़ताओं को चुनौती भी देते हैं। यह बदलाव भाषायी पारिस्थितिकी में चिंताओं तथा असहज स्थितियों को जन्म देता है, विशेषकर शुद्धतावादियों के बीच। दूसरी ओर, भाषाओं को सरल-सहज तथा प्रवाहमान बनाने के हिमायती युवा वर्ग में बदलावों के प्रति एक किस्म की बेपरवाही, यहां तक कि उत्साह भी देखने को मिलता है।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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