एनआईए ने इस दौरान आतंक और आतंक से संबंधित कृत्यों व गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में प्रतिबंधित आतंकी संगठन आईएसआईएस से जुड़े 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की कई टीमों ने 9 दिसंबर की सुबह महाराष्ट्र के पडघा-बोरीवली, ठाणे, मीरा रोड और पुणे तथा कर्नाटक के बेंगलुरु में 44 स्थानों पर छापेमारी की। एनआईए ने इस दौरान आतंक और आतंक से संबंधित कृत्यों व गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में प्रतिबंधित आतंकी संगठन आईएसआईएस से जुड़े 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया। इसे आईएसआईएस पुणे मॉड्यूल कहा जाता है। यह आतंकी मॉड्यूल भारत में अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने की फिराक में था।
इस मॉड्यूल का षड्यंत्र 26/11 के मुंबई हमलों से प्रेरित था, लेकिन उसकी तुलना में बहुत अधिक हाईटेक था। उनका लक्ष्य मुंबई में कोलाबा, नरीमन पॉइंट और द गेटवे आफ इंडिया क्षेत्र में होटल और रेस्तरांओं को निशाना बनाना था। इन आतंकियों ने अमदाबाद और गांधीनगर में भी हमले की योजना बनाई थी। इसके अलावा, इस मॉड्यूल की मंशा हाई-प्रोफाइल सैन्य ठिकानों पर भी हमले करने की थी, जिनकी तस्वीरें कथित तौर पर पाकिस्तान और सीरिया को भेजी गई थीं। आतंकियों ने गोप्रो (ॠङ्मढ१ङ्म) कैमरा, ड्रोन और कोड वर्ड का भी उपयोग किया था। गिरफ्तार किए गए आरोपियों के पास से यहूदी कम्युनिटी सेंटर की फोटो भी मिली है। यानी आईएसआईएस के निशाने पर भारत ही नहीं, इस्राएल के लोग भी हैं। पुणे आतंकी मॉड्यूल के खुलासे के बाद मुंबई पुलिस ने कोलाबा में पबाड हाउस की सुरक्षा बढ़ा दी है।
आतंकी मॉड्यूल की कार्यशैली
पिछले माह दिल्ली से गिरफ्तार शाहनवाज उर्फ शफी उज्जमा ने साजिश की बात कबूल की है। इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के पुणे मॉड्यूल या इकाई की कार्य प्रणाली अत्यंत हैरान करने वाली है। अगर कोई उच्च शिक्षित, उच्च पदस्थ, सुरक्षित आर्थिक स्थिति में हो, तो उसकी जीवनशैली कैसी हो सकती है? संभवत: हर व्यक्ति के सपनों में यह एक आदर्श स्थिति होगी। लेकिन क्या कोई कल्पना कर सकता है कि आर्थिक दृष्टि से संपन्न, उच्च शिक्षित व्यक्ति आतंकी गतिविधियों में सम्मिलित हो सकते हैं? या आतंकी हो सकते हैं?
इन आतंकियों की कार्यप्रणाली और टीम वर्क ऐसा था, जैसे वे कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी चला रहे हों। नए जिहादियों को भर्ती करना, युवाओं का मन परिवर्तन कर उन्हें आतंकवाद की तरफ धकेलना, उनके ठहरने-रहने व खाने-पीने की व्यवस्था करना, घने जंगलों के अंदर प्रशिक्षण व्यवस्था, आईईडी और छोटे हथियार बनाने का प्रशिक्षण देना, बम बनाने के दौरान परस्पर बातचीत में कोडवर्ड्स का उपयोग करना, फर्जी ईमेल आईडी, कई सोशल मीडिया अकाउंट्स और प्रचंड मात्रा में फंड एकत्र करना, इस तरह अत्यंत सुनियोजित पद्धति और टीम वर्क के साथ यह पुणे मॉड्यूल चल रहा था।
रोचक बात यह है कि इस मॉड्यूल का भंडाफोड़ किसी आईपीएस अधिकारी ने नहीं, बल्कि साधारण लेकिन सतर्क पुलिस सिपाहियों ने किया। ये थे- बीट मार्शल प्रदीप चव्हाण और अमोल शरद नझन
आम लोगों के बीच साधारण तरीके से रह रहे आईएसआईएस की पुणे इकाई के स्लीपर सेल्स में भर्ती का जिम्मा था एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ. अदनान अली सरकार का। अदनान पुणे के प्रसिद्ध बी.जे. मेडिकल कॉलेज से गोल्ड मेडलिस्ट है और पुणे के अनेक बड़े-बड़े अस्पतालों में डाक्टरी कर चुका है। वह मेडिकल समुदाय में एक जाना-पहचाना चेहरा था। शिया बोहरा समुदाय का डॉ. अदनान अली बाद में कन्वर्ट होकर सुन्नी हो गया था। इसके बाद इस्लाम का प्रसार करने वाले उसके बेहद उग्र लेख डिजिटल, प्रिंट और ‘वॉयस आॅफ हिंद’ जैसी पत्रिका में प्रकाशित होने लगे। इसके पास से आतंकवाद से संबंधित दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी बरामद हुए हैं।
इंजीनियर आतंकवादी
मोहम्मद शाहनवाज आलम उर्फ शैफी उज्जमा उर्फ अब्दुल्ला, मोहम्मद रिजवान अशरफ उर्फ मौलाना और मोहम्मद अरशद वारसी, ये तीनों आतंकी पेशे से बीटेक इंजीनियर हैं। शाहनवाज खनन और अरशद वारसी ने मैकेनिकल, जबकि रिजवान ने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की है। मोहम्मद अरशद वारसी ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से बी.टेक किया है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद वह दिल्ली आ गया। इसके बाद उसने जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से मार्केटिंग और आपरेशंस में एमबीए किया। झारखंड निवासी अरशद इस्लामी सिद्धांतों पर जामिया मिल्लिया से पीएचडी भी कर रहा था।
इन तीनों के षड्यंत्र में तीन महिलाएं भी शामिल थीं- रिजवान की बीवी अलफिया, शाहनवाज की बीवी और उसकी बहन मरियम। ये तीनों महिलाएं आईएसआईएस की कट्टरपंथी विचारधारा में पूरी तरह रची-बसी थीं। इसके अलावा, एनआईए ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधक जुल्फिकार अली को ‘काफिरों’ को मारने के लिए भारत में बम हमलों की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया है। जुल्फिकार अली प्रति माह तीन लाख रुपये वेतन पर काम करता था और पॉश इलाके में रहता था। जुल्फिकार इतना शातिर था कि उसके किसी सहकर्मी और पड़ोसी को उस पर कभी शक नहीं हुआ।
इन सब के लिए भारत का संविधान ‘हराम’ (गैर-इस्लामी) था और काफिरों को मारना उनका मजहबी कर्तव्य था। यह भी पता चला है कि इनके संबंध दिल्ली दंगों के मास्टरमाइंड शरजील इमाम से भी थे। इनके मॉड्यूल में ग्राफिक डिजाइनर कादिर पठान, एक अन्य ग्राफिक्स डिजाइनर मोहम्मद इमरान शामिल है। इमरान पर 5 लाख का इनाम था। अदनान सहित पांचों आरोपियों से पूछताछ के आधार पर एनआईए आकिफ अतीक नाचन तक पहुंची। वह आईईडी की टेस्टिंग करने में माहिर है। इसके अलावा, उसने इमरान और मोहम्मद यूनुस को छिपाया था। आकिफ को मुंबई के बोरीवली, ठाणे और भिवंडी में मारे गए छापों के बाद गिरफ्तार किया गया।
कोडवर्ड का प्रयोग
उनके बीच बम बनाने की तकनीक और बम बनाने में प्रयुक्त होने वाले रसायनों की बातचीत का पता किसी को नहीं चले, इसके लिए इन्होंने उन रसायनों को कोडवर्ड दिया था। जैसे- सल्फ्यूरिक एसिड के लिए सिरका, एसीटोन के लिए रोज वाटर और हाइड्रोजन पैराक्साइड के लिए शरबत कोड का इस्तेमाल किया जाता था। आईईडी बनाने के लिए आसानी से उपलब्ध थर्मामीटर, वाशिंग मशीन के टाइमर, 12 वॉट के बल्ब, 9 वॉट की बैटरी, फिल्टर पेपर, माचिस, स्पीकर वायर और सोडा पाउडर का भी इस्तेमाल किया गया।
दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने जामिया के पीएचडी छात्र की आड़ में रह रहे आतंकी अरशद वारसी को आईएसआईएस (पुणे मॉड्यूल) के साथ जुड़ाव और देश में आतंकी हमलों की योजना बनाने सहित विभिन्न गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में 2 अक्तूबर को गिरफ्तार किया था। वारसी का नाम दिल्ली के 2020 के हिंदू विरोधी दंगों की चार्जशीट में भी था, जहां वह लगातार शरजील इमाम के संपर्क में था। उसने दिल्ली में सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की साजिश रचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके अलावा, शाहीन बाग में विरोध स्थल स्थापित करने में इन आतंकियों की सक्रिय भागीदारी भी जांच में सामने आई है।
इस्राएल-हमास संघर्ष पर सुरक्षा परिषद की बैठक में उन्होंने कहा था, ‘‘यह भी स्वीकार करना जरूरी है कि हमास के हमले यूं ही नहीं हुए हैं, उनकी दुर्दशा के राजनीतिक समाधान की उम्मीदें खत्म हो रही हैं।’’ लेकिन इस तरह का विक्टिम कार्ड खेलने और दुष्प्रचार संघर्ष में माहिर उच्च शिक्षित, आर्थिक सुरक्षा में सपनों-सा जीवन जी रहे इन आतंकियों को ऐसी कौन-सी दुर्दशा या समस्या थी?
आईएसआईएस मॉड्यूल मामले में दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने ही शफी उज्जमा और मोहम्मद अशरफ को गिरफ्तार किया है। पिछले महीने एनआईए ने प्राथमिक संदिग्ध शफी उज्जमा की गिरफ्तारी में मदद करने वाली किसी भी जानकारी के लिए 3 लाख रुपये का नकद इनाम देने की घोषणा की थी। वह आईएसआईएस पुणे मॉड्यूल मामले में वांछित था। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, शैफी उर्फ शाहनवाज मूल रूप से दिल्ली का रहने वाला है, जो पुणे चला गया था। उसके दो सहयोगियों को जुलाई में एक छापे में गिरफ्तार किया गया था, जबकि वह भागने में सफल रहा। इसके बाद वह दिल्ली में एक ठिकाने पर रहने लगा। मोहम्मद अरशद वारसी ने इनामी आतंकी शाहनवाज को पनाह देने में मदद की थी।
इसके अलावा, वारसी आतंकी हमलों की साजिश रचने में भी शामिल था। पूछताछ में उससे मिली जानकारी के बाद दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा को शाहनवाज का पता लगाने और गिरफ्तार करने में सफलता मिली। वारसी जेएमआई के भीतर सक्रिय एक छात्र संगठन ‘स्टूडेंट्स आफ जामिया (एसओजे)’ से संबद्ध था। पुलिस ने दिल्ली में शाहनवाज के ठिकाने से पिस्तौल, कारतूस, प्लास्टिक सामग्री और पाइप के साथ बम बनाने के नुस्के जब्त किए हैं। इन लोगों ने नियंत्रित परीक्षण विस्फोट करने के लिए पश्चिमी और दक्षिणी भारत में टोह ली थी। शाहनवाज को पाकिस्तान स्थित आकाओं ने बम बनाने और बम की क्षमता बढ़ाने के बारे में पीडीएफ दस्तावेज भेजे थे।
2,700 पन्नों का आरोप-पत्र
एनआईए द्वारा अदालत में पेश 2,700 पृष्ठों के आरोप पत्र के अनुसार, 4 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किए जाने के बाद 5 दिसंबर को शरजील इमाम ने ‘मुस्लिम स्टूडेंट्स आफ जेएनयू’ (एमएसजे) नामक एक समूह का गठन किया था। शरजील और अन्य आरोपियों से बरामद फोन से दिल्ली पुलिस ने जो चैट हासिल की, उससे पता चला कि शरजील और वारसी लगातार संपर्क में थे। शरजील ‘स्टूडेंट्स आफ जामिया’ नाम के कट्टरपंथी सांप्रदायिक समूह के भी संपर्क में था। 6 दिसंबर को एमएसजे ग्रुप ने जामा मस्जिद इलाके में पर्चे बांटे थे, जो शरजील ने लिखे थे। इस बात का खुलासा शरजील और वारसी के बीच की बातचीत से हुआ है। कुछ पर्चों में लिखा था, ‘‘अल्लाह का कानून सबसे ऊपर है’ और ‘अल्लाह का हुक्म हर कानून से ऊपर है।’
सतर्क सिपाहियों ने किया भंडाफोड़
रोचक बात यह है कि इस मॉड्यूल का भंडाफोड़ किसी आईपीएस अधिकारी ने नहीं, बल्कि साधारण लेकिन सतर्क पुलिस सिपाहियों ने किया। ये थे- बीट मार्शल प्रदीप चव्हाण और अमोल शरद नझन। इस कर्तव्यनिष्ठ पुलिस गश्ती दल ने तीन बाइक चोर पकड़े थे। जब इन चोरों के उनके द्वारा अब तक चुराए गए सामान को बरामद करने के लिए उनके निवास स्थान पर ले जाया गया, तो तीनों ने भागने की कोशिश की। एक भागने में सफल रहा, जबकि गश्ती दल इमरान शेख और मोहम्मद यूनुस साकी को पकड़ने में सफल रहा। तलाशी के दौरान इनके घर से एक जिंदा कारतूस, चार मोबाइल फोन और एक लैपटॉप बरामद हुआ।
जब पूरी जांच कराई गई, तब पता चला कि तीनों मोस्ट वांटेड आईएसआईएस आतंकी हैं। इसके बाद मामला आगे की जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया। इसके बाद एनआईए ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में 44 ठिकानों पर छापेमारी की। आकिफ अतीक नाचन का घर ठाणे के पडघा में है। उसके घर से कई मोबाइल फोन, कुछ हार्ड डिस्क और हाथ से लिखे दस्तावेज मिले हैं। एनआईए ने जब परतें खोलीं तो पता चला कि पडघा गांव के रहने वाले जुल्फिकार उर्फ लालाभाई व पुणे के जुबैर शेख, सिमाब काजी और तल्हा खान ने 2015 से ही ‘मुस्लिम उम्मा’, ‘उम्मा न्यूज’ और ‘यूनिटी इन मुस्लिम उम्मा’ नाम के व्हाट्सएप समूह बनाकर युवाओं को कट्टरपंथी बनाना शुरू कर दिया था। फिर मेलजोल शुरू होने के बाद शुरुआती मुलाकातों में दोस्ताना और यहां-वहां की बातें करते-करते धीरे-धीरे शिर्क , खिलाफत, जिहाद, इस्लामिक राष्ट्र, आईएसआईएस आदि विषयों पर चर्चा शुरू कर कई बार गैर-मुस्लिमों की हत्या करने के बारे में भी इन मुलाकातों में और व्हाट्स एप समूह पर चर्चा होती थी।
यहां संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस की उस टिप्पणी की चर्चा करना समीचीन है, जिसमें इस्राएल-हमास संघर्ष पर सुरक्षा परिषद की बैठक में उन्होंने कहा था, ‘‘यह भी स्वीकार करना जरूरी है कि हमास के हमले यूं ही नहीं हुए हैं, उनकी दुर्दशा के राजनीतिक समाधान की उम्मीदें खत्म हो रही हैं।’’ लेकिन इस तरह का विक्टिम कार्ड खेलने और दुष्प्रचार संघर्ष में माहिर उच्च शिक्षित, आर्थिक सुरक्षा में सपनों-सा जीवन जी रहे इन आतंकियों को ऐसी कौन-सी दुर्दशा या समस्या थी?
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