पकड़ौआ विवाह को लेकर चर्चा में आए बीपीएसएसी के माध्यम से नियुक्त गौतम को अब जान का डर सता रहा है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक को इस संदर्भ में उन्होंने एक आवेदन भी दिया है। दरअसल गौतम का विद्यालय उसी गांव में है जहां उसकी जबरन शादी कराई गई थी। गौतम की इच्छा है कि उनका अन्यत्र तबादला कर दिया जाए क्योंकि यहां उनकी जान को खतरा है। शिक्षा विभाग की समस्या है कि शिक्षक बहाली के नए प्रावधानों के अनुसार किसी विद्यालय में नियुक्त शिक्षक को दूसरे विद्यालय में तबादला करना एक प्रकार से संभव नहीं है।
क्या है मामला
दरअसल वैशाली के पातेपुर के महया मालपुर गांव के रहनेवाले 23 वर्षीय गौतम कुमार ने हाल ही में बीपीएससी द्वारा आयोजित शिक्षक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। दिवाली के समय इनकी नियुक्ति रेपुरा उत्क्रमित मध्य विद्यालय में हुई। गौतम के पिताजी की मृत्यु हो चुकी है। गौतम के ऊपर ही घर की जिम्मेवारी है। घरवाले खुश थे। लेकिन नौकरी लगने के 15 दिन के अंदर ही उनकी जबरिया शादी करा दी गई।
30 नवंबर को बीपीएससी उत्तीर्ण शिक्षक गौतम कुमार जब स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे थे, उसी समय 3-4 लोग आए और उनका अपहरण कर लिया। बाद में बंदूक की नोक पर उनकी जबरन शादी करा दी गई। उस समय गौतम के सामने दो ही विकल्प थे – या तो गोली खाए या सामने बैठी लड़की की मांग में सिंदूर भरे। मजबूरन गौतम को शादी करनी पड़ी। घटना के बाद गौतम का परिवार सदमे में है। गौतम ने भी दुल्हन को साथ रखने से मना कर दिया। गौतम का कहना था कि वे इस शादी को नहीं मानते। गौतम के घरवाले सोच रहे थे कि पहले गौतम अपनी बहन की शादी करेगा। दादी का कहना है कि बेटे की मौत के बाद समाज के लोगों का ही साथ था मगर किसी ने साथ नहीं दिया।
पकड़ौआ विवाह
जिस ढंग से शिक्षक गौतम कुमार की शादी हुई, उसे बिहार में पकड़ौआ बियाह कहते हैं। पकड़ौआ अंगिका शब्द है जिसका तात्पर्य है जबरदस्ती। इसकी शुरुआत 70 के दशक में हुई। वैसे पकड़ौआ विवाह की शुरुआत कहां से हुई, यह बता पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन इसका केंद्र बिहार का बेगूसराय जिला रहा। यहां पकड़ौआ विवाह के सबसे ज्यादा मामले सामने आए। बेगूसराय से सटे पटना जिले के मोकामा, पंडारख, बाढ़, बख्तियारपुर, बड़हिया में भी खूब पकड़ौआ विवाह हुए। वैसे बेगूसराय का मटिहानी इसके लिए शुरुआत में कुख्यात रहा, लेकिन बाद में अन्य ज़िलों में भी ऐसी शादियां होने लगीं।
पकड़ौआ विवाह का सूत्रधार परिवार, रिश्तेदार और दोस्त होता है जो शादी योग्य युवक का अपहरण करवाने और फिर शादी कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पकड़ौआ विवाह के लिए पहले अपहृत लड़के से मनुहार करते हैं, कई प्रकार का लालच देते हैं और तब भी जब बात नहीं बनती है तो फिर लड़के को डराया धमकाया जाता है या फिर जमकर पिटाई भी की जाती है। इस प्रकार के 90 प्रतिशत मामले सफल ही होते हैं।
पकड़ौआ विवाह पर कई हिंदी फिल्में बनी जिसमें ‘अंर्तद्वंद’, ‘जबरिया जोड़ी’, ‘अतरंगी रे’ प्रमुख हैं। छोटे पर्दे पर ‘भाग्य विधाता’ नाम का सीरियल भी बना।
पकड़ौआ विवाह का धंधा
बिहार में 1970 के दशक में इलाक़े के लठैत या दबंग व्यक्ति ही लड़के का अपहरण कर लेते थे। लेकिन, 80 के दशक में यह काम भी व्यवसाई हो गया । इसके लिए बकायदा गिरोह बन गए। हर पांच से सात गांव पर बनने वाले इस गिरोह की लग्न के समय अच्छी मांग रहती थी।
परीक्षा और शादी विवाह के समय बड़ी संख्या में इस तरह की शादियां होती थीं । उस वक़्त लड़कों के माता-पिता अपने बेटे को कहीं अकेले जाने देने में हिचकते। लड़के की नौकरी लगने पर घरवाले पड़ोसियों तक से इस बात को छुपाकर रखते कि उनका बेटा कमाने लगा है।
पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में जबरन शादी या पकड़ौआ विवाह के लगभग तीन से चार हज़ार मामले प्रति वर्ष दर्ज़ होते हैं। इसमें प्रेम प्रसंग में घर से भागने वाले जोड़ों का आंकड़ा शामिल नहीं है। बिहार में वर्ष 2009 में 1336, 2010 में 1702, 2011 में 2314 और 2012 में 2992 अपहरण शादी के लिए हुए। अब यह बढ़कर साल 2017 में 3678, 2018 में 4301, 2020 में 3328, 2021 में 4399 और 2022 में 4500 अपहरण शादी के लिए किए गए।
पटना उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले पकड़ौआ विवाह का एक मामला अवैध बताया है।यह मामला नवादा ज़िले के रेवरा गांव के चंद्रमौलेश्वर सिंह के बेटे रविकांत और लखीसराय ज़िले के चौकी गांव के बिपिन सिंह की बेटी बंदना कुमारी की शादी का है। यह शादी 30 जून, 2013 की है। उस दिन सेना में नौकरी लगने के बाद रविकांत सिंह अपने चाचा सत्येंद्र सिंह के साथ लखीसराय स्थित अशोक धाम में पूजा करने गए थे। इस निर्णय के बाद पकड़ौआ विवाह का भय शायद लोगों में काम हो। शिक्षक गौतम कुमार को भी आशा है कि उन्हें भी न्याय मिलेगा।
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