लोग सरकारी नौकरी के लिए क्या नहीं करते हैं, लेकिन बिहार में सरकारी शिक्षक सामूहिक रूप से देने लगे हैं त्यागपत्र। कहा जा रहा है कि ये शिक्षक राज्य के बिगड़ते माहौल के कारण ऐसा कर रहे हैं। हालांकि सरकार कुछ और ही कह रही है।
बिहार सरकार ने गत दिनों सरकारी नौकरी देने के नाम पर कई बड़े आयोजन किए। सबसे ज्यादा तामझाम के साथ शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सौंपा गया था। अब नव नियुक्त शिक्षक सामूहिक त्यागपत्र देकर बिहार से भाग रहे हैं। पहले कुछ ही शिक्षक त्यागपत्र दे रहे थे, लेकिन अब समूह में दे रहे हैं। एक सप्ताह के अंदर समस्तीपुर में 55 से अधिक, मुजफ्फरपुर में 40, गया में 16, गोपालगंज में 9 और बेगूसराय में 7 शिक्षकों ने त्यागपत्र दे दिया है। बिहार सरकार द्वारा इन शिक्षकों के त्यागपत्र का कारण अन्य स्थान पर नौकरी लगना बताया जा रहा है। लेकिन वास्तविकता में बिहार की व्यवस्था इन्हें रास नहीं आ रही है। सिर्फ शिक्षक ही नहीं सामान्य व्यक्ति भी बिहार से बाहर जाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। जब ये शिक्षक अपना त्यागपत्र सौंप रहे थे तब लोकसभा में छपरा के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी बिहार से लोगों के पलायन का मुद्दा उठा रहे थे। लोकसभा में श्री रूड़ी ने बताया कि बिहार की कुल जनसंख्या में से 4 करोड़ लोग तो बिहार के बाहर ही रह रहे हैं। अर्थात एक तियाही आबादी बिहार के बाहर रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण बिहार की कानून व्यवस्था और रोजगार के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध न होना है।
बिहार में तो नौकरी के नाम पर रिश्ते भी टूटते रहे हैं। बहुत पहले लालू राज में एक दक्षिण भारतीय आईपीएस की मंगेतर ने शादी करने से मना कर दिया था। मंगेतर का कहना था कि आईपीएस बिहार में नौकरी छोड़े तभी वह उसके साथ शादी करेगी। कुछ कुछ ऐसा ही अब पुनः होने लगा है। बिहार में नौकरी तो लग रही है लेकिन अभ्यर्थी योगदान करने के नाम पर कन्नी काट रहे हैं। 10 हजार शिक्षक परीक्षा पास अभ्यर्थियों ने नियुक्ति पत्र नहीं लिया है।
2020 के विधान सभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने एक कलम से 5 लाख लोगों को नियमित नौकरी देने का वायदा किया था। 2020 में सत्ता तो नहीं मिली लेकिन नीतीश कुमार के पलटी मारने से 2022 में बिहार की सत्ता में राजद शामिल हुआ। जब पत्रकारों ने बार – बार तेजस्वी यादव को उनके घोषणा की याद दिलाई तो तेजस्वी यादव ने नौकरियों के बारे में बोलना शुरू किया। कुछेक नौकरी के लिए भी बड़ा तामझाम किया गया। पूर्ववर्ती राजग सरकार के समय प्रारंभ हुई नियुक्ति प्रक्रिया को ऐसा दिखाया गया जैसे यह काम महागठबंधन की सरकार ही कर रही है। नियुक्ति पत्र देने के नाम पर बड़े आयोजन किए गए। लेकिन मूल सवाल है कि कितनी नौकरियों के लिए राजद के सत्तासीन होने के बाद प्रक्रिया प्रारंभ हुई और वास्तव में कितनी नौकरी लोगों को मिली? इसके साथ एक और सवाल महत्वपूर्ण है कि परीक्षा पास करने के बाद कितने अभ्यर्थियों ने अपना योगदान दिया और कितने अभ्यर्थी नियमित काम कर रहे हैं? सामान्य अर्थों में इसमें ड्रॉपआउट होने वालों की संख्या कितनी है?
पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी लगातार इस मुद्दे को उठा रहे हैं। उनके अनुसार बिहार संभवतः पहला राज्य होगा जहां शिक्षकों का पुराना कैडर समाप्त कर दिया गया। बिहार लोकसेवा आयोग ने 1.70 लाख शिक्षकों की नियुक्ति-परीक्षा के जो परिणाम जारी किये , उसमें मात्र 1 लाख 22 हजार 324 अभ्यर्थी सफल हुए। इन सबकी नियुक्ति के बाद भी 47,676 शिक्षकों के पद खाली रह जाएँगे। उच्च माध्यमिक स्तर के 16 विषयों में सिर्फ 25.48 फीसद उत्तीर्ण हुए।
पिछले दिनों प्रधानाध्यापक नियुक्ति परीक्षा में मात्र 4 प्रतिशत अभ्यर्थी पास हुए। बिहार में 17 साल से नीतीशे कुमार हैं , लेकिन स्कूली शिक्षा में बहार नहीं है। शिक्षा विभाग 2021 तक जदयू कोटे के मंत्रियों के पास ही रहा और बिहार सामूहिक नकल, पेपर लीक से लेकर शिक्षकों पर अत्याचार के समाचारों से बदनाम होता रहा।
बकौल सुशील कुमार मोदी, “राज्य में सिपाही-दरोगा भर्ती से लेकर सेना और रेलवे की नौकरी के लिए लाखों लोग आवेदन करते हैं, लेकिन यहाँ के स्कूलों में कोई शिक्षक नहीं बनना चाहता।” शिक्षकों के रिक्त पद से कम आवेदन और परीक्षा में जरूरत से कम लोगों का सफल होना अपने आप में एक बड़ा सवाल है।
बिहार में महागठबंधन की सरकार 2022 में बनी। इसने कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी और 10 लाख रोजगार देने का वादा किया था। सबसे ज्यादा शिक्षा विभाग में रिक्तियां थी। बिहार सरकार ने इन रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया शुरू की। 14 महीने में 1 लाख 22 हजार शिक्षकों की नियुक्ति करने की घोषणा हुई। इसमें भी एक बड़ा गड़बड़ झाला था। 37 हजार 500 शिक्षकों को दुबारा नियुक्ति पत्र सौंपा गया। ये शिक्षक पहले से कार्यरत थे। इन नियोजित शिक्षको ने सिर्फ नियमित होने के लिए परीक्षा दी थी। अन्य राज्यों के लगभग 40 हजार लोग बिहार में शिक्षक बने। 10 हजार उत्तीर्ण शिक्षकों ने नौकरी स्वीकार करने से मना कर दिया। एक प्रकार से देखा जाए तो सिर्फ 30 हजार बाहरी लोगों को ही नौकरी मिल पाई। बिहार के उच्च माध्यमिक (प्लस टू) विद्यालयों में गणित, भौतिकी और रसायन शास्त्र जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ानेवाले योग्य शिक्षक नहीं मिले। और अब दर्द यह है कि बहुप्रचारित शिक्षक बहाली से शिक्षक त्यागपत्र दे रहे हैं।
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