विस्तारवादी चीन की पड़ोसी देशों की जमीन कब्जाने की भूख बढ़ती जा रही है। तिब्बत, नेपाल, भारत के बाद अब उसकी नजर भूटान को अधिक से अधिक निगल जाने की है। इस संबंध में सामने आई ताजा जानकारी चौंकाने वाली है। पता चला है कि कम्युनिस्ट ड्रैगन ने भूटान के कई इलाके कब्जाए हुए हैं जिनको लेकर जल्दी ही उसकी भूटान के साथ वार्ता और करार होने की उम्मीद है। लेकिन वह जब होगा तब होगा, उसके बीच भी चीन के शिकंजे भूटान के और ज्यादा इलाके को दबोचे जा रहे हैं।
भूटान के साथ चीन की सीमा विवाद पर बातचीत होने की संभावनाओं के बीच भी उसके उस देश की काफी जमीन पर दावा ठोक दिया है और इन इलाकों पर कब्जा जमा कर बैठ गया है। यह हैरतअंगेज खुलासा ब्रिटेन के थिंक टैंक चैथम हाउस ने किया है। अध्ययन के आधार पर उसका कहना है कि बीजिंग की चाल कामयाब होती दिख रही है। भूटान के साथ होने वाले करार में शायद चीन की कब्जाई जमीन पर उसी का हक माना जाए।
ब्रिटिश थिंक टैंक चैथम हाउस का कहना है कि हिमालयी देश की राजधानी थिम्पू तथा बीजिंग के मध्य सीमा को लेकर कोई भी समझौता हो या द्विपक्षीय कूटनीति संबंध, पड़ोसी भारत को उस पर गंभीर नजर रखनी होगी क्योंकि ये विषय उसकी चिंताओं में से एक है।
जाने—माने थिंक टैंक चैथम हाउस या कहें रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स का कहना है कि उसने उपग्रहों चित्रों से पता लगाया है कि सितंबर की परिस्थिति के अनुसार, चीन ने हिमालय की गोद में बसे उस छोटे से देश, भूटान की जमीन कब्जाने का सिलसिला चलाए रखा है। उस देश के साथ सीमा विवाद पर हो रही वार्ता के मध्य भी उसने अपने विस्तारवादी मंसूबों को विराम नहीं दिया है। संभावना है कि चीन और भूटान में जल्दी ही सीमा को लेकर कोई करार अमल में आ सकता है।
संभावना यह भी है कि भूटान के एक कोने में स्थित जकारलुंग वैली में बेयुल खेनपाजोंग इलाके के एक हिस्से में चीन की जो नई निगरानी चौकियां बनी हैं, वे वहीं बनी रहें। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि संभवत: छोटा सा देश भूटान जकारलुंग तथा पड़ोस की मेनचुमा घाटी में चीन की कब्जाई जमीन उसी के हवाले कर दे और कुछ रियायत ले ले।
उल्लेखनीय है कि गत अक्तूबर महीने में भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी इसी सिलसिले में बीजिंग गए थे। वे चीन जाने वाले भूटान के पहले विदेश मंत्री बन गए हैं। बीजिंग में दोरजी ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से भेंट की थी। सीमा पर बातचीत को दोरजी ने एक ‘ऐतिहासिक मौका’ बताया था। अक्तूबर में ही भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने मीडिया में एक साक्षात्कार में यह कहा कि उन्हें उम्मीद है सीमा पर एक रेखा खिंच जाएगी। यह रेखा भूटान और चीन के भूभाग को स्पष्ट कर देगी।
लगता तो है कि दोरजी और शेरिंग चीन की शैतानी मंशाओं और डोकलाम में उसकी हिमाकत के बारे में बखूबी जानते हैं और उसके साथ उसी के अनुसार व्यवहार करेंगे। कारण यह भी है कि भूटान में कुछ समय बात चुनाव होने वाले हैं और उनमें यह सीमा का मुद्दा प्रमुखता से छाया रहेगा। इसलिए दोनों को उस ‘रियायत’ को लेकर बहुत सावधान रहना होगा जिससे उनकी संप्रभुता पर आंच न आने पाए।
उधर ब्रिटिश थिंक टैंक चैथम हाउस का कहना है कि हिमालयी देश की राजधानी थिम्पू तथा बीजिंग के मध्य सीमा को लेकर कोई भी समझौता हो या द्विपक्षीय कूटनीति संबंध, पड़ोसी भारत को उस पर गंभीर नजर रखनी होगी क्योंकि ये विषय उसकी चिंताओं में से एक है।
दरअसल भूटान भारत और चीन के बीच एक ‘बफर जोन’ जैसा रहा है। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण जकारलुंग वैली के ताजा उपग्रह चित्र वहां नई बन रही चीन की बस्ती दिखाते हैं। चित्रों से ही पता चला है कि चीन ने उस इलाके में सड़कों का एक संजाल भी खड़ा कर लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये दोनों ही गतिविधियां भारत के ध्यान में हैं।
चीन-भूटान सीमा के जानकारों को मानना है कि चीनी उस इलाके में नए निर्माणों पर काफी पैसा झोंक रहे हैं। वहां मेनचुमा वैली में भी चीन ने कई इमारतें खड़ी कर ली हैं। यह वही मेनचुमा वैली है जो साल 2021 में कुछ वक्त के लिए चीन के शिकंजे में थी। लेकिन फिर इस पर द्विपक्षीय चर्चा हुई। इस इलाके में फिलहाल दोनों ही देशों की फौजें मोर्चे संभाले हुए हैं।
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