क्या यह माना जाए कि उम्माह सिर्फ मानव जाति के विरुद्ध सतत युद्ध की घोषणा है? विडंबना यह कि इन सारी चीजों पर एक मजहबी मुलम्मा चढ़ा देने से कई चीजें उसकी ओट में छिप जाती हैं। लेकिन आखिर कब तक?
इस्राएल और हमास के बीच युद्ध विराम को लेकर एक सहमति बनती नजर आ रही है। अच्छी बात है। शांति और युद्ध विराम की आवश्यकता तो वे लोग भी इस्राएली जवाबी कार्रवाई के बाद से ही व्यक्त करते रहे हैं, जो सिर्फ युद्ध की तैयारी लगातार करते रहे हैं, और जिनके मानस में सिर्फ अपने अलावा शेष मानव जाति के लिए सिर्फ घृणा भरी है। और यह वह तथ्य है, जिसकी अनदेखी करके अथवा जिसका कोई समाधान निकाले बिना किसी प्रकार की शांति की अपेक्षा रखना व्यर्थ ही है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि युद्ध विराम तो किसी भी पक्ष से कभी भी तोड़ा जा सकता है। ऐसे में यह विचार करना आवश्यक है कि आखिर किस पक्ष द्वारा युद्ध विराम तोड़ने की संभावना कितनी अधिक और कितनी वास्तविक है। जब तक इसकी संभावना बनी रहेगी, स्थायी शांति संभव ही नहीं होगी।
यह एक यक्ष प्रश्न है। जटिल जरा भी नहीं लेकिन उत्तर देना सरल भी नहीं। भले ही 7 अक्तूबर को हमास द्वारा किए गए हमलों को उचित ठहराने के लिए सैकड़ों तर्क दिए जाएं, सत्य यह है कि चली आ रही शांति को बिना किसी तात्कालिक कारण के भंग किया गया था और अगर गैर-तात्कालिक कारण खोजें, तो कहना होगा अकारण भंग किया गया था। वास्तव में इन आतंकवादी हमलों का कोई कारण नहीं होता है, उसकी तो खोज की जाती है, बल्कि अनुसंधान किया जाता है।
इस्राएल के खिलाफ चल रहे प्रचार युद्ध में एक बड़ा तर्क दिया गया कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हो रहा है। कितनी बड़ी संख्या में? मुश्किल से 2 लाख और यह शोर सबसे ज्यादा मचाने वाले पाकिस्तान में पिछले एक महीने में 20 लाख से ज्यादा मुसलमानों को बेदखल किया गया, पूरी तरह लूटकर उन्हें उनके घरों से निकाल दिया गया, उनसे कहा गया कि उन्होंने जो भी कुछ कमाया है वह उसे यही छोड़ दें। यहां तक कि उन्हें अपने पालतू जानवर भी अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। इतनी विशाल जनसंख्या को ठंड के मौसम में, अफगानिस्तान धकेल दिया गया। तब न वहां दवाइयां का रोना रोया गया, न भोजन का, न पानी का, न बिजली का, न इंटरनेट का, न मानवाधिकारों का और न इस्लाम का।
अगर इतिहास के एक शिक्षक को शरण पाकर रहने वाले एक बच्चे ने सिर्फ चित्र बनाने के आरोप में जान से मार दिया था, तो इसे कारण नहीं माना जा सकता। यह तो मन में भरी हुई नफरत थी, जो कारण खोज रही थी। चित्र बनाना या कार्टून बनाना भी कारण नहीं माना जा सकता है। भारत ने कौन-सा कार्टून बनाया था, जो वह 1400 वर्ष से लगातार हमले झेल रहा है, और जिसकी शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा आज भी वही आतंकवाद है?
फिर भी दो बहुत रोचक पहलू सामने आते हैं। एक यह कि हमलावरों के इस गिरोह को लगातार ऐसे लोग मिलते जाते हैं जो अपने आका के इशारे पर अपनी और दूसरों की जान का सौदा करने के लिए तैयार रहते हैं और दूसरा इनके युद्ध में बंधक बनाकर प्रयुक्त की गई मानव जाति को हमेशा उस उम्माह का सपना दिखाया जाता है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं होता।
इस्राएल के खिलाफ चल रहे प्रचार युद्ध में एक बड़ा तर्क दिया गया कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हो रहा है। कितनी बड़ी संख्या में? मुश्किल से 2 लाख और यह शोर सबसे ज्यादा मचाने वाले पाकिस्तान में पिछले एक महीने में 20 लाख से ज्यादा मुसलमानों को बेदखल किया गया, पूरी तरह लूटकर उन्हें उनके घरों से निकाल दिया गया, उनसे कहा गया कि उन्होंने जो भी कुछ कमाया है वह उसे यही छोड़ दें। यहां तक कि उन्हें अपने पालतू जानवर भी अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। इतनी विशाल जनसंख्या को ठंड के मौसम में, अफगानिस्तान धकेल दिया गया। तब न वहां दवाइयां का रोना रोया गया, न भोजन का, न पानी का, न बिजली का, न इंटरनेट का, न मानवाधिकारों का और न इस्लाम का।
हाल ही में रोहिंग्याओं से लदी नावें जब इंडोनेशिया के तट के पास आने लगी तो इंडोनेशिया की पुलिस ने उन्हें बुरी तरह खदेड़ दिया। तब वहां इस्लाम कोई मुद्दा नहीं था। सऊदी अरब में घुसने की कोशिश कर रहे फिलिस्तीनियों पर जब सऊदी सेना ने मशीनगनों से फायरिंग की, जिसमें सैकड़ों फिलिस्तीनी मारे गए, तब भी इस्लाम कोई मुद्दा नहीं था।
जब जॉर्डन ने हजारों फिलिस्तीनियों का कत्ल कराया और जब पाकिस्तान की सेना ने नरसंहार को अंजाम दिया, जब सीरिया में अपने ही नागरिकों पर बमबारी की गई, तब भी उम्माह कहीं रास्ते में नहीं आया। लेकिन किसी इस्राएल का, चार्ली हेब्दो का नाम आते ही तुरंत यह आविष्कार कर लिया जाता है कि इतने सारे देश हैं और वह सब मिलकर एक उम्माह होते हैं और ऐसे काफिरों का कत्ल तो उम्माह का फर्ज होता है। तो फिर आखिर यह उम्माह है क्या? क्या यह माना जाए कि उम्माह सिर्फ मानव जाति के विरुद्ध सतत युद्ध की घोषणा है? विडंबना यह कि इन सारी चीजों पर एक मजहबी मुलम्मा चढ़ा देने से कई चीजें उसकी ओट में छिप जाती हैं। लेकिन आखिर कब तक?
@hiteshshankar
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