उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने हलाल प्रमाणन पर प्रतिबंध लगा दिया है। हलाल सर्टिफिकेट न केवल राज्य की सत्ता को चुनौती देने वाली और जबरन वसूली करने वाली प्रणाली है, बल्कि यह अन्य लोगों पर मजहब थोपने का भी काम करती है
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने हलाल प्रमाणन पर प्रतिबंध लगा दिया है। पहला प्रश्न यह कि इसकी आवश्यकता क्या थी? और अगर यह इतना ही अनिवार्य था, तो आगे क्या किया जाना चाहिए? इस समाचार और उसके विश्लेषण की शुरुआत प्रस्तावना-रूपरेखा से न करके सीधे उपसंहार से की जा सकती है। वह यह कि हर राज्य को हलाल प्रमाणन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। सभी को हलाल उत्पादों, हलाल भोजन परोसने वाले रेस्तरां और हलाल उत्पादों का स्टॉक करने वाली दुकानों का बहिष्कार करना चाहिए। ऐसा कहने का कारण यह है कि आपको यह जरूर पता होना चाहिए कि किसी भी उत्पाद को ‘हलाल’ सर्टिफिकेट मिलने के लिए किन शर्तों को पूरा करना होता है। लेकिन इन शर्तों को इस प्रकार रखा गया है कि जो उसे गौर से न देखे, वह उसका खेल समझ ही न सके। उदाहरण के लिए ‘हलाल’ सर्टिफिकेट मिलने की शर्तों को जानने के लिए आप CAC/GL 24-1997 गूगल करें। इसमें ‘हलाल’ की परिभाषा मिलेगी। इसके अनुसार, हलाल खाद्य का अर्थ उस खाद्य से है, जिसे इस्लामी कानून के तहत अनुमति दी गई हो और जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा करे—
- कथित हलाल खाद्य में ऐसा कुछ भी नहीं हो, जिसे इस्लामी कानून के अनुसार गैर-कानूनी माना जाता हो;
- उसे किसी ऐसे उपकरण या सुविधा का उपयोग करके तैयार, संसाधित, परिवहन या संग्रहीत नहीं किया गया हो, जो इस्लामी कानून के अनुसार किसी भी गैर-हलाल चीज से मुक्त हो
- निर्माण, प्रसंस्करण, परिवहन या भंडारण के दौरान वह किसी ऐसे खाद्य के सीधे संपर्क में न हो, जो हलाल न हो और उपरोक्त दोनों शर्तों को संतुष्ट करने में विफल हो।
ईरान का फार्मूला
ईरान में 1979 की क्रांति के बाद वहां के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने गैर-मुस्लिम देशों से खाद्य, विशेष रूप से मांस के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध के कारण जब बाजार में भोजन की कमी होने लगी, तो अयातुल्ला खुमैनी को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब उन्होंने यह रास्ता निकाला कि यदि ईरान को फिर से पश्चिम से मांस आयात करना शुरू करना पड़ा, तो वह जानवर के वध की प्रक्रिया के ‘इस्लामीकरण’ पर जोर देगा। हालांकि हलाल खाद्य उद्योग के लिए प्रोटोकॉल स्थापित किए गए थे, लेकिन इसके पहले उन्हें मजहबी नेताओं द्वारा कभी भी अधिकृत नहीं बनाया गया था।
हलाल का अर्थशास्त्र
हलाल के पीछे पूरा अर्थशास्त्र है। सबसे सरलता से नजर आता है प्रमाणन और उसकी लागत। लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में जाएं, तो रोजगार जिहाद और हिंदू-सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना उसका एक अंतर्निहित हिस्सा है। वहीं समानांतर अर्थव्यवस्था का पहलू अपने स्थान पर है। समानांतर राजस्व सृजन और राजस्व का उपयोग राष्ट्रविरोधी गतिविधियों, आतंकवादियों को बचाने और प्रेस्टीट्यूट मीडिया को खरीदने के लिए करना जरा भी आश्चर्यजनक नहीं है। जब कोई रेस्तरां कहता है कि ‘यहां सभी नॉन-वेज हलाल प्रमाणित हैं’, तो इसका अर्थ होता है कि रेस्तरां किसी हिंदू कसाई से मांस नहीं खरीदता है। इस प्रकार हलाल हिंदुओं का प्रणालीगत बहिष्कार है।
हलाल, हराम और गैर-हलाल में अंतर
आप गौर करें कि मूल शर्त यह है कि वह खाद्य इस्लामी कानून के अनुसार होनी चाहिए। उसे तैयार करने से लेकर प्रसंस्कृतकरने, ढोने और भंडार में रखने तक यह शर्त लागू रहेगी। मूल प्रश्न यह है कि इस्लामी कानून के अनुसार हलाल क्या है? सबसे पहले मांस की बात करें। गूगल करने पर पता चलता है कि इस्लाम में भोजन में प्रयुक्त होने वाली हर चीज हलाल या हराम या गैर-हलाल है। गैर-हलाल खाद्य पदार्थों में शराब और अन्य नशीले पदार्थ, कोई भी जानवर जिसे इस्लामी तरीके से वध न किया गया हो (मछली और समुद्री जीवों को छोड़कर), रक्त, सूअर का मांस, किसी देवता की मूर्ति के सामने जीव वध के उपरांत तैयार मांस (अल्लाह के सिवा किसी और के नाम पर जिबह किया गया), दांत वाले सभी मांसाहारी जीव जैसे- शेर और बाघ, पंख वाले सभी जीव जिनके पंजे होते हैं (शिकारी पक्षी, बाज, गिद्ध) और इसी तरह पालतू गधे, चूहे, बिच्छू, सांप, मेंढक आदि। यह सब गैर-हलाल हैं। अब प्रश्न उठता है कि भोजन और पेय पदार्थों के हलाल होने की क्या शर्त है? भोजन या किसी पेय को हलाल होने के लिए उसमें ऐसा कुछ भी शामिल नहीं होना चाहिए, जिसे शरिया कानून में हराम माना जाता हो। इसे किसी भी हराम चीज से तैयार, संसाधित या दूषित नहीं होना चाहिए। किसी भी हराम चीज से दूषित सुविधा का उपयोग करके ढुलाई या भंडारण भी नहीं किया गया हो।
अभी सबसे मूलभूत प्रश्न बाकी है। इस्लामी कानून क्या है? इस्लामी कानून माने शरिया या शरीयत। यानी हलाल खाद्य पर वही दिशानिर्देश लागू होंगे, जो शरिया के लिहाज से उचित हों। फिर कोई संगठन उसका हलाल प्रमाणीकरण करके एक औपचारिक प्रमाणपत्र देता है कि खाद्य उत्पाद, इसकी सामग्री और इसके निर्माण में शामिल प्रक्रिया इस्लामी कानूनों का अनुपालन करती है। जानवरों के वध की हलाल प्रक्रिया, जिसे ‘जिबह’ कहा जाता है। इसमें विशेष जोर जानवरों का ‘खून बहने’ पर होता है। यह विशेष रूप से इस्लामी मान्यता के कारण है कि रक्त ‘अशुद्ध’ होता है। इसलिए जिबह किए गए जानवरों से रक्त बहना हलाल प्रक्रिया का प्रमुख आधार है। कुरान की कई ऐसी आयतें हैं, जो दोहराती हैं कि खून के सेवन से किसी भी कीमत पर बचना चाहिए। खून को इस्लाम में हराम माना गया है। जो कुछ भी बिना कलमा पढ़े जिबह किया गया हो, वह फिर हराम और गैर-इस्लामी हो जाता है।
सरकार को चुनौती!
हलाल नेटवर्क गहरे से गहरा होता जा रहा है और उस स्थिति में पहुंच रहा है, जहां इससे निपटना सरल नहीं होगा। सबसे पहला बिंदु देश की वैधानिक सरकार की प्रभुसत्ता को दी गई चुनौती का है। हलाल नेटवर्क ने सरकारों, उसके संस्थानों, कानूनों की भूमिका व प्रधानता को पूरी तरह नकारने का और उन्हें नकारा जा सकता है-इस धारणा को स्थापित करने का काम किया है। दूसरा बिंदु रोजगार का है। तीसरा बिंदु लागत के स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिए अभिन्न आपूर्ति शृंखला बनाने की एक दीर्घकालिक योजना का है। हलाल नेटवर्क इस आपूर्ति शृंखला को बहुत बड़े पैमाने पर कब्जे में ले चुका है।
ठगी का धंधा
हलाल का धंधा ठगी से भी जुड़ा है। हलाल प्रमाणपत्र देने वाली संस्थाएं अपना पैसा कहां खर्च करती हैं, वह तो अपने स्थान पर है। एक इस्लामिक बैंकिंग और हलाल निवेश कंपनी आईएमए की स्थापना 2006 में कर्नाटक के बेंगलुरु में मंसूर खान द्वारा की गई थी। मंसूर खान ने प्रति माह 14 प्रतिशत से 18 प्रतिशत तक रिटर्न का वादा किया था। इसके बाद वह भारत से भाग गया। उसने लगभग 2,800 करोड़ रुपये लूटे। 23,000 से ज्यादा लोग इस इस्लामिक बैंकिंग ठगी के शिकार हुए हैं।
अब मांस की बात करें, तो प्रमाणित हलाल मांस वही हो सकता है, जिसकी प्रक्रिया के हर चरण में सिर्फ मुस्लिम ही नियुक्त हो। चाहे वह पशु या पक्षी का वध करना हो या उसे पकाना हो। इस्लामी कानून (शरिया) कानून इतनी बारीकी तक जाते हैं कि उनमें यह तक कहा गया है कि किसी जानवर को ‘हलाल’ करने के लिए तेज धार चाकू का उपयोग किया जाना चाहिए, चाकू जानवर की गर्दन से 2 से 4 गुना बड़ा होना चाहिए और जानवर को ‘आराम से’ मरने देना चाहिए। किसी खाद्य के हलाल होने के लिए मुल्ला द्वारा उस पर कलमा पढ़ने और पैक करने से पहले उस पर थूकने की आवश्यकता भी मानी जाती है। भले ही वह मूंग दाल हो या हेयर क्रीम, अगर वह हलाल प्रमाणित है तो यही मामला है।
दो वर्ष पूर्व एस.जे.आर. कुमार नामक एक व्यक्ति ने केरल उच्च न्यायालय में दाखिल अपनी याचिका में कहा कि ‘‘मुस्लिम समुदाय के विद्वान सार्वजनिक रूप से घोषणा करते रहे हैं कि खाद्य सामग्री की तैयारी में हलाल को प्रमाणित करने के लिए उसमें लार (थूक) मिलाना एक आवश्यक घटक है। मुस्लिम विद्वानों ने अपने पवित्र ग्रंथों और इसकी मान्य व्याख्याओं के आधार पर यह मत दिया है। हालांकि एक वर्ग द्वारा अलग विचार भी व्यक्त किए गए हैं। खाद्य सामग्रियों को हलाल बनाने के लिए उन पर थूकने के संबंध में हाल के विवाद और धार्मिक विद्वानों की प्रतिक्रियाओं के मद्देनजर बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिम समाज हलाल प्रमाणित खाद्य सामग्रियों के घरेलू उपयोग को लेकर बहुत चिंतित और असहज है। यह बेहद निराशाजनक है कि (हलाल) प्रमाणन के साथ तैयार खाद्य सामग्री को हिंदू मंदिरों में नैवेद्यम (प्रसाद) बनाने में उपयोग किया जाता है, जबकि उनके अनुष्ठान और रीति-रिवाज अलग हैं।’’
वास्तव में हलाल मांस उद्योग गैर-मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है और हलाल प्रक्रिया की मजहबी आवश्यकताओं को बनाए रखने के नाम पर अंतत: गैर-मुसलमानों को नौकरियों और रोजगार से बाहर कर देता है। हलाल प्रमाणपत्र गैर-मांस उत्पादों जैसे शाकाहारी खाद्य पदार्थों, सौंदर्य प्रसाधन, मसालों और अन्य एफएमसीजी सामान के लिए भी है। कई कंपनियां, इस्लामिस्ट और हलाल समर्थक बार-बार इसे दुहराते भी हैं। आंखों में धूल झोंकने के लिए अल तकिया के तहत एक ऐसा वर्ग सामने जरूर आ जाता है, जो यह दावा करता है कि हलाल प्रमाणीकरण केवल ‘शुद्धता और प्रामाणिकता’ का एक मापदंड है। हलाल प्रमाणीकरण (गैर-मांस उत्पादों पर) का सीधा सा अर्थ यह है कि उत्पाद ‘अच्छा’ है। फिर हलाल प्रमाणपत्र की आवश्यकता क्यों है? और इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हलाल प्रमाणीकरण के पीछे क्या औचित्य है?
प्रसाद के लिए हलाल प्रमाणपत्र क्यों?
तमिलनाडु के इरोड के करीब भवानी श्रीसंगमेश्वर मंदिर। यहां 3 नदियों कावेरी, भवानी और अमृता का संगम होता है। ठीक प्रयाग की तरह। इसे दक्षिण प्रयाग के नाम से भी जाना जाता है। पिछले वर्ष आदि केशव पेरुमल सन्निधि के पास स्थित प्रसाद स्टॉल पर ऐसे खाद्य पदार्थ बेचे जाते पाए गए, जो मंदिर से संबंधित नहीं थे। आमतौर पर भोजन मदापल्ली (मंदिर की रसोई, जहां नैवेद्य तैयार किया जाता है) में तैयार किया जाता है और पूजा के बाद श्रद्धालुओं को बेचा जाता है। प्रत्येक मंदिर की रसोई में केवल विशिष्ट खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं और कुछ तो अपने व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध भी हैं। प्रसाद स्टॉल में केवल भोजन, मिठाइयां और अन्य वस्तुएं (केवल मीठा पोंगल, इमली चावल, दही चावल, लड्डू, आदिरासम और मुरुक्कू ) ही बेची जाती हैं, जो मंदिर की रसोई में तैयार की जाती हैं। लेकिन ऐसी शिकायतें मिलीं कि जिन लोगों को प्रसाद स्टॉल चलाने का ठेका दिया गया है, वे डीएमके सरकार की अनुमति से कुछ ऐसे स्नैक्स बेचते पाए गए, जो मंदिर से संबंधित नहीं थे और ऊपर से हलाल प्रमाणित थे। कुछ श्रद्धालुओं ने हिंदू संगठनों को इसके बारे में बताया। भाजपा, हिंदू मुन्नानी और हिंदू मक्कल काची के पदाधिकारियों ने सवाल किया कि उन्हें मंदिर के अंदर क्यों बेचा गया। बहुत विरोध और विवाद के बाद मंदिर परिसर में बनी इस दुकान को बंद कर दिया गया।
हलाल का विचार ही अपमानजनक
वास्तव में यह दावा कई प्रश्न उत्पन्न करता है। सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले कई प्रमाणपत्र मौजूद हैं, जो शुद्धता, प्रामाणिकता और गुणवत्ता आदि से सीधे संबद्ध हैं। इनके बावजूद उत्पादों के लिए अलग से हलाल प्रमाणपत्र का अर्थ तो यही हुआ कि उपभोक्ता उत्पादों पर आईएसआई और एफएसएसएआई जैसे मौजूदा सरकारी प्रमाणपत्र पर्याप्त नहीं हैं! फिर हलाल प्रमाण उत्पादों की तथाकथित शुद्धता या अच्छाई तय करने की कोई पारदर्शी, वैज्ञानिक या सुपरिभाषित विधि भी नहीं है। इसके विपरीत हलाल प्रमाणीकरण मजहबी इस्लामी संगठनों द्वारा जारी किया जाता है। उदाहरण के लिए, भारत में जमीयत उलेमा-ए-हिंद इसका प्रमाणपत्र जारी करने वालों में से एक है, लेकिन यह संगठन आतंकवादियों और हत्यारों को कानूनी सहायता प्रदान करने और उसके लिए चंदा जुटाने का विशेषज्ञ है।
चूंकि इस प्रमाणीकरण का आधार एक मजहबी विश्वास है, इसलिए हलाल प्रमाणीकरण का यह विचार ही अपने आप में भेदभावपूर्ण है कि क्या किसी उत्पाद में कोई ऐसी सामग्री शामिल है, जिसका इस्लाम में निषेध है। इस तरह से हलाल प्रमाणीकरण का विचार गैर-अनुयायियों पर भी इस्लामी यकीन को थोपता है। साथ ही, हलाल प्रमाणीकरण एक समानांतर अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहित करता है।
भारत जैसे पंथनिरपेक्ष देश में, जहां 80 प्रतिशत से अधिक आबादी हिंदू है और जहां कई संस्कृतियों के साथ-साथ कई धार्मिक-पांथिक मान्यताएं पनपती हैं, हलाल का विचार ही अपमानजनक है। यदि गैर-मांस उत्पादों के लिए हलाल प्रमाणपत्र है और आबादी का एक बड़ा वर्ग इसे सौंदर्य प्रसाधन, गैर-मांस खाद्य पदार्थों और अन्य एफएमसीजी उत्पादों जैसे उत्पादों पर चाहता है, तो फिर इसका अंत कहां होगा? अगर किसी सौंदर्य प्रसाधन के लिए हलाल प्रमाणपत्र आवश्यक है, तो रेलवे टिकट के लिए क्यों नहीं? पेट्रोल, नौकरी, डॉक्टर, वकील, शिक्षक और गाड़ियों के लिए क्यों नहीं? और आगे बढ़ें, तो वोट और प्रशासन के लिए क्यों नहीं? इससे भी बड़ा प्रश्न। अगर एक समुदाय के लिए हलाल प्रमाणपत्र हो, तो अन्य समुदायों को समान प्रमाणपत्रों की मांग करने से कौन रोक सकता है? यदि बहुसंख्यक हिंदू भी इसी तरह के प्रमाणन की मांग करें तो क्या होगा?
वास्तव में यह जबरन वसूली के समान है। एक समुदाय विशेष की मांगों को पूरा करने के लिए हलाल प्रमाणपत्र की ‘खरीद’ कंपनियों से पैसे वसूलने का एक साधन है। यह तो वैसा ही है कि ‘आप हमें हर महीने 25,000 रुपये का भुगतान करें, अन्यथा आप हमारे क्षेत्र में अपनी दुकान नहीं खोल सकते।’’ हफ्ता वसूली और किसे कहते हैं? भारत में हलाल प्रमाणन के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है। लेकिन कई निजी कंपनियां और संस्थाएं ऐसे सर्टिफिकेशन जारी कर रही हैं। भारत में प्रमुख हलाल प्रमाणन निकाय हैं—हलाल इंडिया प्रा. लि., हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि., जमीयत उलेमा-ए-महाराष्ट्र (जमीयत उलेमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट। हलाल प्रमाणन प्रदान करने वाली गैर-सरकारी एजेंसी हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि. (एचसीएस) के अनुसार, ‘अल्लाह के अलावा किसी और के नाम पर मारे गए जानवर बिना किसी संदेह के हराम हैं।’ जमीयत उलेमा-ए-हिंद (भारत में सबसे बड़ा मुस्लिम संगठन) की हलाल ट्रस्ट वेबसाइट में कहा गया है कि हलाल करने वाले को ‘मुस्लिम होना चाहिए’, ‘अधिकृत होना चाहिए और हलाल एक प्रमाणित इस्लामी संगठन की देख-रेख में होना चाहिए’, ‘जानवर का वध करना चाहिए’ और प्रत्येक जानवर का वध करने से पहले कलमा पढ़ना चाहिए। कुल मिलाकर यह पूरी समानांतर प्रमाणन प्रक्रिया संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के अधिकारियों के दायरे से बाहर चल रही है।
लंबी लड़ाई के बाद संसद में हलाल बंद
सामाजिक कार्यकर्ता सरदार रविरंजन सिंह हलाल के विरोध में लगभग डेढ़ दशक से आंदोलन चला रहे हैं। इन्होंने 2014 में ‘झटका सर्टिफिकेशन अथॉरिटी’ की स्थापना की। इसके द्वारा वे पूरे देश में हलाल अर्थतंत्र के विरुद्ध लोगों को जागरूक करते हैं कि हलाल प्रमाणन वाली वस्तुओं से देश को किस तरह का खतरा है। 2007 में इन्होंने संसद की कैंटीन में परोसे जा रहे हलाल मांस के विरोध में संघर्ष शुरू किया। लंबी लड़ाई के बाद 2021 में संसद की कैंटीन में हलाल मांस बंद हो गया है।
मुसलमानों ने की प्रतिबंध की मांग
उत्तर प्रदेश के अनेक मुसलमान कारोबारियों ने राज्य सरकार द्वारा हलाल उत्पादों पर लगाए गए प्रतिबंध का समर्थन किया है। उनका कहना है कि हलाल के नाम पर कुछ संगठन या लोग ठगी कर रहे हैं। इसलिए केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में हलाल पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
दुनिया भर से जजिया वसूल रही हलाल प्रणाली
एड्रोइट मार्केट रिसर्च के एक अध्ययन में कहा गया है कि वैश्विक हलाल बाजार का आकार 2017 में 4.54 खरब डॉलर तक तक पहुंच चुका था, जो जर्मनी, भारत और ब्रिटेन जैसे देशों की वर्तमान जीडीपी से अधिक है और 2025 तक इसके 9.71 खरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। माना जाता है कि भारत में हलाल 250 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था है। यह एक ऐसा तंत्र है, जिसके द्वारा मुसलमान विशेष रूप से हिंदुओं की कीमत पर अर्थव्यवस्था और नौकरियां हड़प लेते हैं। सरल शब्दों में, यह आर्थिक रंगभेद है। हर बार जब आप हलाल-प्रमाणित उत्पाद खरीदते हैं, तो आप जो भुगतान करते हैं उसका एक हिस्सा इस्लामिक जिहाद को भी पहुंचता है।
थॉमसन रॉयटर्स और दीनारस्टैंडर्ड की ‘स्टेट आफ द ग्लोबल इस्लामिक इकोनॉमी’ रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार, 2017 में वैश्विक हलाल अर्थव्यवस्था 2.1 खरब डॉलर की थी, क्योंकि दुनिया के लगभग 1.8 अरब मुस्लिम हलाल उत्पादों को अपना रहे थे। हलाल उत्पादों में सबसे बड़ी श्रेणी हलाल खाद्य और पेय उत्पादों की है, जिस पर दुनिया भर में उपभोक्ता 1.3 खरब डॉलर खर्च करते हैं। इसके बाद हलाल कपड़ों का बाजार 270 अरब डॉलर, हलाल मीडिया और मनोरंजन 209 अरब डॉलर, हलाल यात्रा 177 अरब डॉलर, हलाल फार्मास्यूटिकल्स 87 अरब डॉलर और हलाल सौंदर्य प्रसाधन का बाजार 61 अरब डॉलर का है।
हलाल यात्रा को थोड़ा नजदीक से देखें, तो हलाल धंधे की बहुत सारी परतें खुल जाती हैं। ऊपरी तौर पर इसका अर्थ होता है कि होटल उद्योग हलाल के प्रति जागरूक आगंतुकों के लिए हलाल वातावरण प्रदान कर रहे होते हैं। उदाहरण के लिए, लंदन के कई होटलों में अतिथि कमरों में मिनीबार हटा लिए गए हैं या वहां से शराब हटा ली गई है। होटलों में नमाज के लिए मैट बिछाए जाते हैं और होटल के रेस्तरां में प्रमाणित हलाल भोजन बनता है। फिर यही शृंखला आगे बढ़कर होटल द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली टैक्सियों आदि पर लागू हो जाती है।
हलाल प्रमाणीकरण के लिए शुल्क लिया जाता है। इस प्रकार यह एक व्यावसायिक गतिविधि है, जिसे मजहबी गतिविधियों के लिए दान और योगदान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। जमीयत उलेमा-ए-हिंद हत्याओं, दंगों आदि जैसे सांप्रदायिक घृणा अपराधों में शामिल आतंकवादियों और अपराधियों के कानूनी खर्चों को वित्त पोषित कर रही है-यह एक स्थापित तथ्य है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की हरकतों के कुछ उदाहरण हैं-
1. इसने कमलेश तिवारी हत्याकांड में गिरफ्तार पांचों आरोपियों का बचाव करने, कानूनी खर्च वहन करने और इसके लिए अपने कानूनी सेल की सेवा की पेशकश की है।
2. इसने एटीएस द्वारा गिरफ्तार किए गए अल-कायदा के संदिग्ध आतंकियों को कानूनी सहायता प्रदान की। मौलवी मौलाना अशरद मदनी ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा पकड़े गए संदिग्ध आतंकियों को कानूनी सहायता प्रदान करने की घोषणा करते हुए कहा कि मुस्लिम युवाओं के जीवन को नष्ट करने के लिए आतंकवाद को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की प्रक्रिया जारी है। निर्दोष मुसलमानों की सम्मानजनक रिहाई तक हमारा कानूनी संघर्ष जारी रहेगा।
दबाव का वैश्विक नेटवर्क
हलाल प्रमाणित उत्पादों का प्रसार केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह एक विश्वव्यापी मुद्दा है। ‘द डेली मेल’ ने खाद्य मानक एजेंसी एफएसए के संदर्भ से लिखा है, ‘‘ब्रिटेन में प्रति सप्ताह कुल 1 करोड़ 60 लाख जानवरों में से 51 प्रतिशत भेड़ें, 31 प्रतिशत चिकन और 7 प्रतिशत गोवंश का वध अब ‘मजहबी ढंग’ से किया जाता है। ब्रिटेन में आबादी का केवल एक छोटा प्रतिशत (लगभग 4 प्रतिशत) मुस्लिम है, लेकिन लगभग 70 प्रतिशत मांस आयात हलाल मानकों के अनुसार संसाधित किया जाता है। यूनाइटेड किंगडम में न्यूजीलैंड से आयात किया जाने वाला लगभग 70 प्रतिशत भेड़ का मांस ‘हलाल’ होता है। गैर-पोर्क दुकानों के कारोबार में होने वाले नुकसान की ऊंची लागत के बावजूद सब-वे शृंखला के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से में केवल हलाल स्टोर (अर्थात् पोर्क नहीं) हैं। यही बात दक्षिण अफ्रीका पर लागू होती है, जहां अनुपातहीन रूप से अधिक संख्या में चिकन हलाल प्रमाणित हैं। ऐसे में हम ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं, जहां अरबों डॉलर के पूरे मांस उद्योग पर एक समुदाय का पूर्ण एकाधिकार होगा। जैसे- हलाल मांस की मांग करने वाले मुस्लिम देश की आबादी का केवल 15 प्रतिशत हैं, लेकिन भारत में बेचा जाने वाला हलाल मांस अनुपात में बहुत अधिक है और यह अनुपात लगातार बढ़ रहा है।
अब इसे हलाल मांस उद्योग की बढ़ती हिस्सेदारी के संदर्भ में समझें। हम ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं, जहां मजहबी पहचान के आधार पर अरबों डॉलर के पूरे मांस उद्योग पर एक समुदाय का पूर्ण एकाधिकार होगा। प्रथम दृष्टि में यह संवैधानिक भी नहीं है। समानता के अधिकार के अलावा यह एससी-एसटी अधिनियम का उल्लंघन भी प्रतीत होता है, जिसमें आर्थिक बहिष्कार को स्पष्ट रूप से गैरकानूनी माना गया है। एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3(1) (जेडसी) में कहा गया है, ‘‘जो कोई भी, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य न होते हुए, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित किसी व्यक्ति या परिवार या समूह का सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार करेगा या धमकी देगा, वह कारावास की सजा के योग्य होगा, जिसकी अवधि छह महीने से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यहां आर्थिक बहिष्कार का अर्थ है अन्य बातों के अलावा ‘व्यवसाय करने, रोजगार देने या व्यापार करने से इनकार करना।’
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