भारत की क्रिकेट टीम इन दिनों जबरदस्त फॉर्म में है। विश्वकप में अभी तक अजेय रही टीम अब फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से भिड़ेगी। भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुए सेमीफाइनल मैच में हर खिलाड़ी के योगदान के चलते टीम फाइनल में पहुँची। जहां एक ओर मोहम्मद शमी ने सात खिलाड़ियों को मैदान से बाहर भेजा तो उससे पहले कप्तान रोहित शर्मा, शुभमन गिल, विराट कोहली की विराट पारी और श्रेयस अय्यर के धुआंधार शतक के चलते भारतीय टीम 397 रन का विशाल स्कोर खड़ा करने में सफल रही थी।
इतने विशाल स्कोर का पीछा करते हुए न्यूजीलैंड की टीम 227 रन पर सिमट गयी थी। देखा जाए तो मैच टीम स्प्रिट (टीम भावना) एवं टीम के पीछे व्यवस्थात्मक समर्थन के कारण जीता जा सकता है। जब सकारात्मक माहौल मिले, कोच बढ़िया हो, प्रशिक्षण बढ़िया हो, आहार बढ़िया हो एवं देश में समर्थन का माहौल हो। और भारतीय टीम का हर खिलाड़ी तिरंगे के लिए खेलता है, उसके लिए मैदान में केवल अपने देश के लिए खेलना ही सपना होता है, जिसके लिए वे जीतोड़ प्रयास करते हैं। मगर भारत में हर क्षेत्र को अब मजहबी राजनीति ने घेर लिया है। इससे भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच खेला गया सेमीफाइनल भी अछूता नहीं रहा। जैसे ही शमी ने 7 विकेट लिए, वैसे ही कुछ लोग शमी की मजहबी पहचान को लेकर पहचान के उस मोड़ पर चले गए जहां पर शमी केवल एक पीड़ित मुस्लिम हैं!
भारत के हर खिलाड़ी पर एक समान प्रशिक्षण व्यय किया जाता है और मोहम्मद शमी की कहानी में तो कहीं से भी मजहबी पक्षपात का आरोप लगाया ही नहीं जा सकता है। जितना प्रेम शमी के कथित चाहने वाले केवल हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए प्रदर्शित कर रहे हैं, वह उनके खोखलेपन की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है। ऐसा नहीं है कि शमी आज चर्चा में हैं। शमी का यह भाग्य कह लिया जाए कि वह लगातार चर्चा में रहते हैं, हाँ, इस बार वह वर्ग उनपर दावा ठोंकने का कुप्रयास कर रहा है, जो आज तक उनके कहीं न कहीं विरोध में खड़ा रहा था। जो मजहबी कट्टरपंथी और कथित सेक्युलर आज शमी के 7 विकेट की बात कर रहे हैं वही मजहबी कट्टरपंथी और कथित सेक्युलर हर उस अवसर पर शमी के साथ नहीं थे, जब-जब शमी पर मजहबी कट्टरपंथियों के हमले हुए। मगर आज वह शमी के बहाने खेल को उसी मजहबी कट्टरवाद में धकेलने का असफल प्रयास कर रहे हैं, जिसने पाकिस्तान की क्रिकेट टीम का क्या हश्र किया है, वह सबके सामने ही है।
सोशल मीडिया पर एक बहुत बड़ा वर्ग शमी की मुस्लिम पहचान को लेकर इस प्रकार उत्साहित हो रहा है जैसे शमी एक मजहबी जंग में गए थे और वहां पर वह हिन्दुओं को पराजित करके विजयी हुए हैं। हिन्दुओं के खिलाफ लगातार जहर उगलने वाले शादाब चौहान ने अपने X हैंडल पर लिखा कि “शामी भाई के आखिरी विकेट लेते ही दिल से निकला नारा ए तकबीर अल्लाह हू अकबर। मेरे भाई मोहम्मद शमी ने इतिहास लिख दिया। भारत की पकड़ से दूर जाते मैच को भारत की तरफ कर दिया और बता दिया कि जिसको तुमने बाहर बिठाया था वही वर्ल्ड कप जिताएगा।” इसमें उसने मोहम्मद शमी के साथ अपनी तस्वीर भी साझा की! इसी तरह कई और यूजर थे। मगर इसमें कांग्रेस का भी एक पोस्ट था कि “जब शमी के साथ कोई नहीं खड़ा था तब राहुल गांधी खड़े थे!” दरअसल वह वर्ष 2021 की बात कर रहे थे जब हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए शमी को 2021 में हुए टी20 विश्वकप में भारत की पाकिस्तान के हाथों हार को लेकर पाकिस्तानी ट्रोलर्स ने ट्रोल किया था। मगर उस ट्रोलिंग के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहराया गया था।
हाँ कांग्रेस की ओर से एक बात सही कही गयी है कि शमी की ट्रोलिंग हुई और उस समय उनका साथ देने के लिए न ही कांग्रेस थी और न ही आज उन्हें मजहबी कट्टरता की पहचान देते कट्टरपंथी लोग, क्योंकि उस समय उनकी सोशल मीडिया पर लिंचिंग और कोई नहीं बल्कि वही लोग कर रहे थे जो आज उनके बहाने हिन्दुओं पर निशाना साध रहे है। पाठकों को याद होगा जब मोहम्मद शमी ने अपनी पत्नी के साथ एक तस्वीर लगाई थी, जिसमें वह आधुनिक परिधान पहने थीं, तो उन्हें मुस्लिम होने की दुहाई देते हुए एक बड़ी लॉबी आ गई थी और उन्हें ट्रोल किया जाने लगा था।
जरा इस तस्वीर पर नजर डालिए! यह अधिक नहीं मात्र पांच वर्ष ही पुरानी है।
इसमें मोहम्मद कैफ यह कहते हुए नजर आ रहे हैं कि शमी का वह समर्थन करते हैं क्योंकि जो कमेन्ट हैं, वह बहुत शर्मनाक हैं। और उनकी लिंचिंग कौन कर रहा है, उन नामों पर भी नजर डाली जाए और स्मृति टटोली जाए कि कांग्रेस के राहुल गांधी उस समय किसके साथ खड़े थे?
ये तस्वीर और हमारी स्मृति यह बताने के लिए पर्याप्त है कि शमी के साथ कौन कब खड़ा हुआ था। मोहम्मद शमी की सोशल मीडिया लिंचिंग मजहबी कट्टरता का ढोल पीटने वालों ने एक बार नहीं बार-बार की, मगर कांग्रेस से लेकर वह सभी लोग जो पाकिस्तान द्वारा फर्जी ट्रोलिंग को लेकर शमी के बहाने हिन्दुओं पर निशाना साध रहे थे, वह शमी के साथ नहीं खड़े हुए।
शमी ने 2018 में अंग्रेजी नए साल की बधाई देते हुए शिवलिंग की फोटो सोशल मीडिया पर साझा की थी। इसके बाद उन्हें काफी ट्रोल किया गया था। कट्टरपंथियों ने ट्वीट करते हुए कहा था कि उनका नया साल मोहर्रम से शुरू होता है। उस समय किसी ने कहा कि अल्लाह को नाराज मत करो। किसी ने लिखा था कि हिंदुओं को खुश करने के लिए अल्लाह को नाराज मत कर नहीं तो नष्ट हो जाएगा। उस समय उन्हें सोशल मीडिया पर काफी घेरा गया था। मगर आज शमी की मजहबी पहचान को लेकर कॉलर उचकाने वालों में से कोई भी शमी की मदद के लिए नहीं आया था।
जो आज शमी के बहाने एक सभ्य खेल को मजहबी रंग देने का खतरनाक खेल खेल रहे हैं, उनमें से कोई भी शमी की मजहबी ट्रोलिंग के समय साथ नहीं था। आज भी वह शमी के बेहतर प्रदर्शन या फिर उनकी मेहनत के साथ नहीं है, बल्कि वह केवल इसलिए शमी का समर्थन कर रहे है क्योंकि इस बहाने वह अपनी हिन्दू घृणा को निकाल पा रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि शमी एक बहुत ही शानदार खिलाड़ी बनकर उभरे हैं और वह भी उस दौर के बाद जब उनकी निजी ज़िन्दगी कई आरोपों से घिरी थी। उस समय उनके साथ ढाल बनकर कौन खड़ा हुआ था? उनके साथ ढाल बनकर करोड़ों हिन्दू खड़े हुए थे।
शमी के खेल को आज मजहबी सीमा से परे हर कोई सराह रहा है, मगर फिर भी मजहबी उन्माद से भरा हुआ एक वर्ग लगातार शमी को केवल मजहबी दायरे में बांधकर उन्हें सीमित करना चाहता है। और इनमें से कोई भी यह नहीं सोच पा रहा है कि यदि आप मजहब के आधार पर प्रशंसा कर रहे हैं तो कल को यदि किसी ने मजहबी आधार पर निंदा कर दी तो फिर से “मुस्लिम पीड़ित हैं” का राग अलापा जाने लगेगा!
फिर भी सारे प्रश्न यहीं पर समाप्त होते हैं कि शमी भाई के कंधे पर रखकर हिन्दुओं को बदनाम करने वाले लोग शमी के साथ तब खड़े क्यों नहीं होते हैं जब उन्हें मजहबी कट्टरता द्वारा निशाना बनाया जाता है?
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