अपनी संस्कृति, तकनीक और अपने ज्ञान पर चलें
May 17, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

अपनी संस्कृति, तकनीक और अपने ज्ञान पर चलें

भारत इसलिए गरीब हुआ, क्योंकि विकास करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे। उन्हें लगता है कि हमारे पास विज्ञान नहीं था। लेकिन विज्ञान और तकनीक के विकास में लंबा समय लगता है तथा इसमें हमारे देश का बहुत बड़ा योगदान है।

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Oct 23, 2023, 09:35 pm IST
in भारत, संघ, संस्कृति, गुजरात
सुनील आंबेकर

सुनील आंबेकर

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

साबरमती संवाद के ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर ने कहा कि हमें अपने ज्ञान, अपनी संस्कृति और तकनीक को अपना कर नई पीढ़ी को इस तरह तैयार करना होगा कि वह दुनिया को नई दिशा दे सके। इसी से भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा। प्रस्तुत है श्री आंबेकर द्वारा व्यक्त विचार

हम लोग बचपन में महात्मा गांधी के बारे में पढ़ते एवं सुनते थे। बाद में पता चला कि गुजरात के लोगों का समुद्री रास्ते से विदेश जाना और व्यापार करना बहुत पुरानी परंपरा थी। जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका गए, तो वहां पहले से ही उनका साथ देने के लिए गुजराती मौजूद थे।

इससे यही पता चलता है कि हमने अंग्रेजों के जहाजों से दुनिया में जाना प्रारंभ नहीं किया। बहुत पहले से दुनिया में हमारा आना-जाना होता था। 3,000 वर्ष पूर्व के दस्तावेज में इन यात्राओं का विवरण है, जिसमें यह बताया गया है कि यात्री कैसे भारत आते थे और यहां के लोग किस-किस प्रकार की वस्तुएं बनाते थे। इन दस्तावेजों में भारत में बनने वाली छोटी से छोटी वस्तुओं, कपड़ों से लेकर लोहे और सोने की वस्तुओं का उल्लेख है, जिनकी पूरी दुनिया कायल थी। कई लोगों को लगता है कि आज के कम्प्यूटर युग में भारत की ज्ञान परंपरा की क्या आवश्यकता है? उसके बारे में जानने की क्या जरूरत है?

हमारे ज्ञान को दबाया गया

कई लोगों को यह लगता है कि भारत इसलिए गरीब हुआ, क्योंकि विकास करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे। उन्हें लगता है कि हमारे पास विज्ञान नहीं था। लेकिन विज्ञान और तकनीक के विकास में लंबा समय लगता है तथा इसमें हमारे देश का बहुत बड़ा योगदान है। हमारे ज्ञान को दबाया गया, इसलिए हम गरीब हो गए। हमें इतिहास से सीखना चाहिए। अगर किसी देश की स्मरण शक्ति क्षीण पड़ जाए, तब उस देश में रहने वाले लोगों की शक्ति भी खत्म हो जाती है। इसलिए इतिहास की जानकारी होना बहुत जरूरी है। यदि आपके पास अतीत को लेकर समझ नहीं हैं, तब आपको समझ में नहीं आएगा कि मैं कहां खड़ा हूं, कहां से आया हूं और मुझे जाना कहां है? अपने देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो कहां जाना है, क्यों जाना है और कैसे जाना है, इसे लेकर बड़ी दुविधा में रहते हैं। इसी तरह, कभी-कभी देश के नाते भी दुविधा हो जाती है। इसलिए हमें यह पता होना चाहिए हम क्या हैं, हमारा ज्ञान क्या है? आज इस संदर्भ में अपनी खोई हुई स्मरण शक्ति को वापस लाने की जरूरत है।

नालंदा विश्वविद्यालय में वेद, शास्त्र और रामायण आदि को तो पढ़ाया ही जाता था, व्यक्तित्व का विकास कैसे हो, इसके लिए लगभग 72 तरह के पाठ्यक्रम तैयार किए गए थे। इसके अलावा पता नहीं और कितने पाठ्यक्रम और विषय थे। नालंदा विश्वविद्यालय को जलाए जाने के बावजूद वहां से जो दस्तावेज मिले हैं, उनमें इसका उल्लेख है कि धातु से लेकर जरूरत की वस्तुएं तक हाथ से कैसे बनाई जाती थीं। यहां तक कि शृंगार, त्योहार आदि के लिए भी पाठ्यक्रम थे। यानी आज जिसे हम इंटरप्राइजेज कोर्सेस कहते हैं, नालंदा विश्वविद्यालय में वेद पढ़ने वाला हर व्यक्ति उसकी पढ़ाई करता था। विद्यार्थियों को गूढ़ से गूढ़ ज्ञान दिया जाता था। जैसे- अग्नि क्या है? जल क्या है? इनका संबंध क्या है? आज की भाषा में जिसे हम विकसित विज्ञान कहते हैं, उसके बारे में उन्हें पूरी जानकारी थी। वे सूर्य, चंद्रमा के साथ यह भी जानते थे और यह गणना करने में सक्षम थे कि कौन सा ग्रह किसके निकट घूमता है। उस समय पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों को रोजमर्रा के जीवन के बारे में भी बताया जाता था। पाकशास्त्र में यह सिखाया जाता था कि ऋतु के अनुसार, भोजन कैसे तैयार किया जाए, उसे कब और कैसे खाया जाए। हमारी शिक्षा पद्धति में यह इंटरप्राइजिंग, जिसे आज ‘स्किल एजुकेशन’ कहते हैं, बहुत पहले से मौजूद थी।

कार्यक्रम में प्रतीक चिह्न देकर श्री सुनील आंबेकर का सम्मान करते हुए (बाएं से) श्री प्रफुल्ल केतकर और श्री हितेश शंकर

देश में आज भी ऐसे लोग हैं, जिन्होंने हजारों वर्ष पुरानी ज्ञान परंपरा को संजो रखा है। ऐसे लोगों ने ही श्रीराम मंदिर की रूपरेखा बनाई। इन्होंने ही मंदिर में प्रयुक्त होने वाले पत्थर को तराश कर आपस में जोड़ने की तकनीक बताई।

एक चीज और पता होनी चाहिए। हमारे यहां सभी लोग कहते हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है। भारत में कृषि मुख्य उद्योग है, लेकिन पहले कृषि करने वाला गांव के दूसरे उद्योग के बारे में भी जानता था। वह जरूरत के अनुसार लोहे या धातु की वस्तु बना सकता था। झारखंड का एक जिला है गुमला, जहां अभी लोग स्टील बनाने की विधि जानते हैं। जब हमने गांवों में इस तरह के लोगों को खोजना शुरू किया था, तब गुमला में ऐसा उद्योग मिला था। यानी उन्हें इसका ज्ञान पीढ़ियों से मिला।

प्राचीन ज्ञान आज भी सुरक्षित

उत्तर प्रदेश में एक जिला, एक उत्पाद पर जोर दिया जा रहा है। प्रत्येक जिला एक चीज के लिए प्रसिद्ध है। कहीं लकड़ी की वस्तु तो कहीं ताले आदि बनते हैं। ये हजारों वर्ष पुरानी परंपराएं हैं। मुगलों ने इस तरह के उद्योगों को नष्ट करने के बहुत प्रयास किए। इसी तरह, ब्रिटिश काल में मशीन लाकर पुराने उद्योगों को खत्म करने के बहुत प्रयास किए गए। उन स्वाधीनता सेनानियों को नमन है, जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, देश की मिट्टी को बचाया और हमें स्वाधीनता दिलाई। लेकिन जिन्होंने सैकड़ों वर्षों के हमलों के बाद भी हजारों वर्ष पुराने ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया, वे भी स्वाधीनता सेनानी हैं। इनके कारण ही आज हमारे पास वह ज्ञान है। इसलिए 2021 से एक जिला, एक उत्पाद योजना के तहत वस्तु बनाए जा रहे हैं।

श्रीरामजन्मभूमि पर रामजी का मंदिर बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। हम चाहते हैं कि मंदिर ऐसा बने, जिसे हजारों साल तक कुछ न हो। लेकिन आज के लोग कहेंगे कि देश-विदेश से इंजीनियर लाओ। हजारों वर्ष पुरानी ज्ञान परंपरा को संजोये रखने वाले लोग विदेशों में नहीं, बल्कि अपने ही देश के गांव में उपेक्षित पड़े हुए मिले। इन्होंने मंदिर की रूपरेखा बनाई। मंदिर में प्रयुक्त होने वाले पत्थरों को तराश कर आपस में जोड़ने की तकनीक बताई। ऐसे कुशल कारीगर आज भी हमारे यहां हैं, जिन्होंने हजारों वर्षों की कारीगरी को संभाल कर रखा है। इन सभी को एकत्रित किया गया और साझे प्रयास से आज भारत की पारंपरिक कुशलता के आधार पर मंदिर बनाया जा रहा है।

हमारे शास्त्रों में मंदिर निर्माण की विधि बहुत विस्तार से बताई गई है। इसलिए भारत की कंपनियां, भारत के लोग और पुराने अनुभवों को मिलाकर मंदिर को इस तकनीक से बनाया जा रहा है कि हजार वर्ष तक उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।

जब आप यूट्यूब पर खाना बनाने की विधि देखेंगे, तो खाना बनाने की पुरानी परंपरा ही सबसे ज्यादा दिखेगी। अक्सर खाना बनाने की विधि बताने वाले लोग ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं होते। कल्पना कीजिए कि हमारे देश में कितने विशाल प्रांत और कितने प्रकार के अन्न हैं, इस हिसाब से सोचिए हमारे पास कितने प्रकार के उद्योग एवं अनुभव होंगे? अभी तक हम लोग दुनियाभर की चीजें खाते आए, लेकिन अभी हम जो बना रहे हैं, उसे खाने के लिए दुनिया तैयार है। इसलिए हमें पुरानी स्मरण शक्ति को जाग्रत करना पड़ेगा कि दुनिया को हम क्या-क्या दे सकते हैं। बहुत सारे लोग ऐसी नई-नई चीजें सीख रहे हैं। इसी को सीखकर उनसे जुड़े उद्योग स्थापित कर रहे हैं, जो बहुत बड़े उद्योग का आकार ले रहा है। यानी आज की नई तकनीक और प्राचीन ज्ञान का एक अच्छा मिश्रण बन रहा है।

हमारे पास हर ज्ञान के बारे में पुस्तकें उपलब्ध हैं। वेदों-शास्त्रों में धातु शास्त्र, विमान शास्त्र भी उपलब्ध है। भारत सरकार ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा के संबंध में एक योजना शुरू की है। इसके अंतर्गत भौतिकी, गणित सहित हर क्षेत्र में भारत का ज्ञान क्या था, उसके बारे में पढ़ाया जाएगा। हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि अब हमें पुरानी ज्ञान परंपरा के बारे में जानने का अवसर मिलेगा। इस आधार पर हम पूरी दुनिया को अपने ज्ञान से अवगत करा सकते हैं। योग को ही लें, यह हमारा बहुत पुराना ज्ञान है, जिसे दुनिया ने हाथोंहाथ ले लिया है। यह कुशलता और ज्ञान हजारों साल पहले भी हमारे यहां था और आने वाले हजारों साल बाद भी यह काम आएगा। इसलिए इस बात को समझना बहुत जरूरी है। आज लोग गूगल के सहारे चलते हैं, जो आगे जाकर फंसा देता है। यानी दूसरों के सहारे जिंदगी में चलना संभव नहीं है। हमें कहां, किस रास्ते से जाना है, इसके लिए अपना ज्ञान विकसित करना होगा।

नालंदा विश्वविद्यालय में वेद, शास्त्र पढ़ाने के साथ व्यक्तित्व का विकास कैसे हो, इसके लिए लगभग 72 पाठ्यक्रम थे। इनके साथ ही, अन्य अनेक पाठ्यक्रम और विषय थे जिन्हें तब पढ़ाया जाता था।

इतना सब कुछ होने के बावजूद हम अच्छा खाना, अच्छा पानी और अच्छे जीवन के लिए उसी दौड़ में जाएंगे या अपने भविष्य के बारे में सोचेंगे? यह प्रश्न इसलिए उठा रहा हूं, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में जो भी तकनीक हमारे यहां आई, हमने उसे ले लिया। लेकिन इसके कारण काफी समस्याएं भी आ गई। जैसे- हमने दुनिया से आर्थिक प्रणाली, विपणन प्रणाली, उत्पादन प्रणाली अपना ली, जिसके कारण प्रदूषण की समस्या आ गई। इसलिए यदि अच्छा जीवन जीना है, तो हमें दुनिया को दिशा दिखानी होगी। ऐसी पद्धति लानी पड़ेगी ताकि हम अच्छी दुनिया बना सकें। इस पीढ़ी के सामने दो प्रश्न हैं। पहला, च्वाइस आफ कल्चर और दूसरा च्वाइस आफ टेक्नोलॉजी। च्वाइस आफ कल्चर यानी संस्कृति का चयन अपनी सभी आर्थिक और उत्पादन गतिविधियों के लिए होना चाहिए, न कि उत्पादन और तकनीक आधारित संस्कृति बनने के लिए। आप कैसा जीवन जीना चाहते हैं, यह पहले तय हो जाना चाहिए। हमें आनंद किसमें आता है? सुख किसमें मिलता है?

यह तय होना चाहिए। इसी को संस्कृति कहते हैं। यानी आपके पास यह विवेक होना चाहिए कि आपको रोबोट को निर्देशित करना है। ऐसा ज्ञान हमें भारतीय परंपरा ही देगी। इसी से हम ऐसी दुनिया बना सकते हैं, जो टिकाऊ भी होगी और पर्यावरण अनुकूल भी। तभी दुनिया चलेगी और हमारा परिवार भी खुश रहेगा। भारत तभी विश्व गुरु कहलाएगा, जब भारत के लोग दूसरों के दिमाग से नहीं, बल्कि अपने दिमाग से चलेंगे। दूसरे के दिमाग से चलेंगे, तो यह संभव नहीं हो सकता है। अपनी संस्कृति—अपनी तकनीक, यही हमारी पीढ़ी का मंत्र होना चाहिए। हमारा ज्ञान पुराना जरूर है, परंतु आज के लिए भी बहुत उपयोगी है। इसे नए स्वरूप में लाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।

Topics: Vedasभारत फिर से विश्व गुरुनालंदा विश्वविद्यालय में वेदशास्त्र और रामायणअपनी संस्कृति—अपनी तकनीकयही हमारी पीढ़ी का मंत्रIndia is again Vishwa GuruShastras and Ramayana in Nalanda Universityits own culture and its own technologythis is the mantra of our generation.
Share19TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Uttarakhand Shastrotsav

हरिद्वार में गूंजा वेद मंत्र: भारतीय संस्कृति का पुनर्जागरण और विश्व कीर्तिमान

Lokbhasha Bhartiya Sanskriti

लोकभाषा के बिना लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के विकास से यहां पर्यटकों की संख्या 10 गुना बढ़ गयी है

मंदिर-मंदिर अगणित यात्री

कृत्रिम बुद्धिमत्ता करेगी हिंदी का कायाकल्प

सुविचार

सुविचार : उन्नति और आगे बढ़ना प्रत्येक जीवात्मा का उद्देश्य है

डॉ धन सिंह रावत, शिक्षा मंत्री,  उत्तराखंड

नई शिक्षा नीति होगी लागू, गीता, वेद को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने ली जाएगी राय : धन सिंह रावत

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Cyber ​​fraud

हिमाचल के सरकारी बैंक में ऑनलाइन डाका : Cooperative Bank के सर्वर में घुसकर Hackers ने उड़ाए 11.55 करोड़ रुपए

मणिपुर में भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद

एनआईए (प्रतीकात्मक चित्र)

पंजाब में 15 ठिकानों पर NIA की छापेमारी, बब्बर खालसा से जुड़े आतंकियों की तलाश तेज

India And Pakistan economic growth

आतंकवाद और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते

नीरज चोपड़ा ने दोहा डायमंड लीग में रचा इतिहास, PM मोदी ने शानदार उपलब्धि पर दी बधाई

उत्तराखंड : अरबों की सरकारी भूमि पर कब्जा, कहां अटक गई फैज मोहम्मद शत्रु संपति की फाइल..?

#ऑपरेशन सिंदूर : हम भांप रहे हैं, वो कांप रहे हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर

देहरादून : पहलगाम हमले के डॉक्टर तंजीम ने बांटी मिठाइयां, पुलिस ने दर्ज की एफआईआर

पाकिस्तान में असुरक्षित अहमदिया मुसलमान : पंजाब प्रांत में डाक्टर की गोली मारकर हत्या

सीमित सैन्य कार्रवाई नहीं, भारत को चाहिए क्षेत्रीय संतुलन पर आधारित स्पष्ट रणनीति : डॉ. नसीम बलोच

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies