विदेशियों को भी लगने लगा है कि गया जी आकर ही मुक्ति मिल सकती है। वैसे तो गया जी में सालों भर पिंडदान किया जा सकता है लेकिन पितृपक्ष (आश्विन कृष्ण पक्ष) में पिंडदान का विशेष महत्व है। गत 10 – 12 वर्षों में पितृपक्ष के समय विदेशी पिंडदानियों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है। इस वर्ष न सिर्फ विदेशी फिल्म अभिनेता चुनमनंनत और उनकी मां साकरिक ने यहां 5 अक्टूबर को पिंडदान किया बल्कि यूक्रेन की 28 वर्षीया महिला यूलिया ने भी गया जी में 7 अक्टूबर को पिंडदान किया। पितृपक्ष में वह इस कार्य के लिए यूक्रेन से विशेष तौर पर गया आई थीं। उसने पूरी श्रद्धा भक्ति से अपने परिजनों और रूस – यूक्रेन युद्ध में मारे गए लोगों की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए श्राद्ध तर्पण किया। तर्पण के बाद प्रसन्नचित्त यूलिया ने कहा कि यहां का तर्पण अद्भुत है। यह आत्मा को स्पर्श करता है।
पिंडदान के बाद यूलिया ने बताया कि भारतीय परंपरा और गया जी में पिंडदान करने का विशेष महत्व है। यहां पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। वह 5 अक्टूबर की रात गया पहुंच गई थी। 6 अक्टूबर की सुबह देवघाट के समीप पिंडदान और तर्पण किया।
युद्ध में यूलिया के माता-पिता मारे गए थे
यूलिया की माता-पिता युद्ध में मारे गए थे। परिवार के कुछ सदस्य भी इस युद्ध में मारे गए। यूलिया के परिवार में सिर्फ वही बची है। वह अक्सर परेशान रहती थी। यूक्रेन में यूलिया हिंदू जागरण समिति के संपर्क में आई। नागालिया सरनमा हिंदू जागरण समिति की अध्यक्षा हैं। इनके विदेशों में 5 लाख शिष्य हैं। यूलिया भी नागालिया सरनमा की शिष्या बनी। इसके बाद नागालिया सरनमा के सुझाव पर ही यूलिया गया पहुंची है।
यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार रूस और यूक्रेन की जंग ने 27 हजार से ज्यादा की जान ले ली हैं। 1.86 करोड़ से ज्यादा लोग को बेघर होकर मुल्क छोड़ने को विवश हुए है। युद्ध से यूक्रेन के 50 लाख से अधिक बच्चों की पढ़ाई रुक गई।
सनातन धर्म के प्रचारक ने दी जानकारी
जब यूलिया विदेश में हिंदू जागरण समिति की नागालिया सरनमा के संपर्क में आईं तो उन्हें गया जी के बारे में जानकारी हुई। सरनमा ने यूक्रेन की यूलिया को गया में पिंडदान की स्वीकृति दी। इसके बाद यूक्रेन और रूस युद्ध में मारे गए सैनिक, आम नागरिकों, अपने माता-पिता, भाई-बहन समेत विश्व शांति के लिए यूक्रेन से आई यूलिया गया जी पहुंचकर पिंडदान और तर्पण किया। यूलिया ने बताया कि मैं सनातन धर्म का प्रचार करने वाले नागालिया सरनमा की शिष्य हूं।
यूलिया ने पूरी श्रद्धा और नियम से पिंडदान किया
पिंडदान और कर्मकांड के दौरान यूलिया ने साड़ी पहन रखी थी। अपने हाथों से यूलिया ने पिंड बनाया और पुरोहित के निर्देश पर सभी कर्मकांड विधि विधान से पूरा किया। फल्गु के बाद पिंड सहित अपने पुरोहित के साथ विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में भगवान के चरणों में पिंड अर्पित कर श्रद्धा के साथ माथा टेका। उसने बताया कि यह सारा काम उसके आत्मा को स्पर्श करता है।
यूलिया बताती है कि भारतीय परंपरा, भारत के इतिहास और खासकर गयाजी में पितरों को पिंडदान करने से उन्हें मुक्ति मिल जाती है, ऐसा पढ़कर वह यहां आई हैं। विश्वास, आस्था और श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों के लिए कृतज्ञता ज्ञापन का यह अनुष्ठान सुनकर मन में भारत आकर गयाजी में पिंडदान करने की इच्छा हुई थी। अब पिंडदान किया है।
पिंडदान के लिए लगातार आ रहे हैं विदेशी
विदेशी पिंडदान की महिमा समझकर गया जी आ रहे हैं। वर्ष 2018 में इस ‘मोक्षस्थली’ में रूस, स्पेन, जर्मनी, चीन और कजाकिस्तान से आए विदेशी पर्यटकों ने विष्णुपद मंदिर के देव घाट पर अपने-अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण किया। 27 पुरुष और महिलाओं का यह जत्था खासकर इसी कर्मकांड को संपूर्ण करने के लिए गया जी आया था। इसमें 10 पुरुष और 17 महिलाएं थी।
रूस से आई मारर्गेटा ने तर्पण के बाद कहा था, “भारत धर्म और अध्यात्म की धरती है। गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है। मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूं।”
अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए 2019 के पितृपक्ष में इटली, जर्मनी व रूस के आधा दर्जन श्रद्धालु भी पूर्वर्जों का पिंडदान व तर्पण करने गया पहुंचे थे।
पहले दिन इन महिला श्रद्धालुओं ने गया के देवघाट, विष्णुपद मंदिर परिसर एवं सूर्यकुंड में कर्मकांड किया। दूसरे दिन प्रेतशिला, रामशिला एवं कागबली पिंडवेदी पर कर्मकांड किया। तीसरे दिन अक्षयवट में सुफल का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने-अपने देश लौट गईं। विदेशी श्रद्धालु यूलियाना, एलोनयारा व एलेना के अनुसार, “उन्हें उनके धर्मगुरु ने गया में पिंडदान का महत्व बताया था। इसके बाद वे यहां आईं। पूरब में ऐसा बहुत कुछ है, जो पश्चिम में नहीं। उन्हें यहां आकर असीम शांति मिली।”
इसी प्रकार वर्ष 2017 में पूर्वजों के पिंडदान और तर्पण के लिए रूस, स्पेन और जर्मनी से 18 विदेशियों का एक जत्था गया जी आया था।अगले तीन दिनों तक यहां रुक कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष के लिए तर्पण एवं पिंडदान किया था।
पुरखों की मुक्ति के लिए नाम और गोत्र बदल अपना रहे सनातन धर्म
गैर हिंदू विदेशियों में गयाजी आकर श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का क्रेज बढ़ा है। इसके लिए वे तीन वर्षों तक सनातन धर्म का पालन कर रहे हैं और नाम व गोत्र भी बदल रहे हैं। गया में श्राद्ध के लिए ऐसा करना जरूरी है। गया में पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए विदेशी विगत दो वर्षों में इस्कॉन संस्था का सहारा भी ले रहे हैं। इस्कॉन के माध्यम से करीब 3 सौ विदेशियों ने पिंडदान किया है। अमेरिका और यूरोपीय देशों से भी लगातार पिंडदानी गया जी पहुंच रहे हैं।
श्राद्ध के पूर्व ऐेसे विदेशियों को चार नियमों का पालन करना पड़ता है। पहला शाकाहारी होना पड़ता है ताकि इनके अंदर दयाभाव हो। शराब सहित अन्य मादक पदार्थों से खुद को दूर रखना होता है ताकि तपस्या बल नष्ट न हो। जुआ वर्जित है ताकि जीवन में सत्यता हो और जीवन में शुद्धता लाने के लिए परस्त्री सहवास न करने की शपथ लेनी होती है।
गया में पिंडदान से पहले तीन साल तक सनातनी नियमों के पालन के साथ-साथ जर्मनी के एनटॉन ने अपना नाम परिवर्तित कर श्याम विलास रख लिया है। रूप की तामारा अब विष्णुप्तिया देवी और मार्गेरिटा मंजू लाली देवी के नाम से जानी जाती हैं।
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