हम भावविभोर हैं। आचार्य भगवद् का फिर से इस धरती पर अवतरण हुआ है। इसलिए जरूरी है कि दुनिया में जितने भी द्वंद्व हैं, जितने भी वाद और विवाद हैं, उनका समाधान कहीं है तो वह अद्वैत वेदांत में ही है।
आज जो कुछ हो रहा है, उसमें सचमुच लौकिक कुछ नहीं है, सब कुछ अलौकिक है। यहां जो हो रहा है, यह कोई व्यक्ति नहीं कर रहा है, कोई शासन नहीं कर रहा है। यह स्वयं आदि शंकराचार्य महाराज जी की कृपा से हो रहा है। आज आनंद की वर्षा हो रही है। हम भावविभोर हैं। आचार्य भगवद् का फिर से इस धरती पर अवतरण हुआ है। इसलिए जरूरी है कि दुनिया में जितने भी द्वंद्व हैं, जितने भी वाद और विवाद हैं, उनका समाधान कहीं है तो वह अद्वैत वेदांत में ही है।
आदि शंकराचार्य केवल 8 वर्ष की उम्र में केरल से 1675 किलोमीटर पैदल बीहड़ वनों से होते हुए मध्य प्रदेश की धरती पर आए थे, जहां पर उनको गुरु मिले थे। हमने ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ निकाली थी, जिसमें अनेकों संतों ने भाग लिया था। जब यह यात्रा ओंकारेश्वर पहुंची, तब मन में विचार आया कि आज भारत बचा हुआ है, क्योंकि आदिगुरु शंकराचार्य जी थे। अगर वह नहीं होते तो भारत सांस्कृतिक रूप से एक नहीं होता। भगवान राम ने भारत को उत्तर और दक्षिण से जोड़ा। भगवान कृष्ण ने भारत को पूरब और पश्चिम से जोड़ा। आदि शंकराचार्य जी ने तो चारों दिशाओं से भारत को जोड़ दिया। भारत का जो सनातन विचार है, मूल विचार है कि एक ही चेतना सब में है। हजारों साल पहले हमारे ऋषियों ने वसुधैव कुटुम्बकम् का उद्घोष किया। यह तेरा है, यह मेरा है, इस तरह की सोच छोटे दिल वालों की होती है। जो विशाल हृदय वाले होते हैं, वह तो यही कहते हैं कि सारी दुनिया एक ही परिवार है। इसलिए भारत ने कहा कि सबको आत्मवत मानो।
अद्वैत यात्रा भेद से अभेद की अद्भुत यात्रा है। इसको अलग-अलग शब्दों में अनेकों ऋषियों ने कहा है। भारत कहता है कि केवल हमारा ही नहीं, विश्व का कल्याण हो। विश्व की मंगलकामना करने वाला अपना भारत। यह भारत भूमि है, जिसने केवल अपनी सुख की कामना नहीं की।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे भवन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।।
ऐसा दर्शन कहां मिलेगा? तुलसीदास जी ने कहा- सियाराम मय सब जग जानी। सारे जगत को सियाराम मय मय मानो। कबीर दास ने कहा-साहब तेरी साहबी, हर घट रही समाय, जो मेंहदी के पात में, लाली लखी न जाय। हम सब में एक ही चेतना है। एक-दूसरे से भेद कैसे कर सकते है? केवल मनुष्य में नहीं, बल्कि पशुओं में भी वही चेतना है। हमारे यहां दस अवतार हुए, उनमें से तीन अवतार पशु के रूप में ही हुए। वराह, मत्स्य और कूर्म अवतार। चौथा अवतार नरसिंह आधा मनुष्य और आधा पशु के रूप में हुआ। हमारे जितने देवता हैं, जैसे-भगवान भोले शंकर जो नंदी पर विराजते हैं। भगवान् विष्णु, जिनका वाहन गरुड़ है।
अद्वैत वेदांत जागरण सेवा शिविर में युवा जाएंगे और वहां योग्य से गुरु दीक्षित होंगे। ऐसी ही एक योजना है परिव्राजक। संतों से प्रार्थना है कि इसमें आप एक-एक ब्लॉक लेकर प्रयास करें कि अद्वैत सिद्धांत लोगों के मन में कैसे प्रवेश करे? आप लोग प्रयत्न करेंगे तो अद्वैत घर-घर पहुंच जाएगा। इसी से विश्व का कल्याण होगा। एकात्म धाम कोई कर्मकांड नहीं है। यह पूरी दुनिया को शांति का संदेश और भारत का संस्कार देगा.
नर्मदा मैया मगरमच्छ की सवारी करती हैं। मां लक्ष्मी उल्लू पर विराजती हैं। गणेश जी का वाहन मूषक है। इसका भाव यही है कि पशुओं को भी आत्मभाव से देखो। पेड़ पौधे, पशु, पक्षी, ग्रह, नक्षत्र, तारों में केवल उसी की सत्ता है। जड़ और चेतन में ब्रह्म है। अगर यह भाव सबके मन में आ जाए, तो फिर कहां युद्ध बचेंगे। युद्ध नहीं शांति, संघर्ष नहीं समन्वय। घृणा नहीं, प्रेम का यह संदेश केवल अद्वैत ही दे सकता है। उस समय सभी में झगड़े थे, आदि शंकराचार्य ने पंचायत पूजा से उन्हें एक करने का काम किया। भौतिकता की अग्नि में दग्ध विश्व मानवता को शाश्वत, शांति के पथ का दिग्दर्शन अद्वैत दर्शन ही कराएगा। दुनिया में कोई दूसरा मार्ग नहीं है। इसलिए मन में विचार आया कि आचार्य भगवन्, जिनके कारण आज भारत है, जिनके कारण आज सनातन है।
ओंकारेश्वर भगवान की पहले छोटी प्रतिमा थी, आज आचार्य भगवन की विशाल एकात्मता की मूर्ति स्थापित की गई है। यह अद्भुत केंद्र बनेगा। इसके बाद अद्वैत लोक का हमने भूमि पूजन कर दिया है। मेरे मन में भाव था कि आने वाली पीढ़ियां अद्वैत क्या है, इसके बारे में जानें। इसलिए हम कोई ऐसी रचना करें ताकि हमारे बच्चे जवान हों तो उनके मन-मस्तिष्क में अद्वैत दर्शन बैठ जाए। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लगातार इस तरह का विचार बढ़ता जाएगा। इसके साथ-साथ एक महत्वपूर्ण घटक है, आचार्य आदिशंकर अंतरराष्ट्रीय वेदांत संस्थान। अद्वैत का सिद्धांत दुनिया भर में जाना चाहिए। दुनिया के अनेक दर्शनशास्त्री मानते हैं कि आदिशंकर आत्मा के साम्राज्य केंद्र के निर्माता थे। लोगों का यह भी मानना है कि आजादी के बाद उनके उपदेश सरकार का पथ प्रदर्शन करेंगे। यहां अनेक गुरुकुल होंगे, जहां अद्वैत की शिक्षा लेने के लिए देश-दुनिया के विद्यार्थी आएंगे और शिक्षा लेकर दुनियाभर में शांति स्थापित करने का काम करेंगे। इसी की रचना यहां पर होनी है।
इसी तरह, अद्वैत वेदांत जागरण सेवा शिविर में युवा जाएंगे और वहां योग्य से गुरु दीक्षित होंगे। ऐसी ही एक योजना है परिव्राजक। संतों से प्रार्थना है कि इसमें आप एक-एक ब्लॉक लेकर प्रयास करें कि अद्वैत सिद्धांत लोगों के मन में कैसे प्रवेश करे? आप लोग प्रयत्न करेंगे तो अद्वैत घर-घर पहुंच जाएगा। इसी से विश्व का कल्याण होगा। एकात्म धाम कोई कर्मकांड नहीं है। यह पूरी दुनिया को शांति का संदेश और भारत का संस्कार देगा, जिससे लोग अपने जीवन को धन्य बना पाएंगे। यह सब कार्य शंकर की कृपा से संभव हो पाया है, हम तो निमित्त मात्र हैं। लेकिन निमित्त बनने का भी अपना आनंद है।
(लेखक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)
टिप्पणियाँ