कनाडा के राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो भारत से इसलिए नाराज हैं क्योंकि उनके अनुसार भारत की एजेंसियों ने कनाडाई नागरिक और खालिस्तानी समर्थक निज्जर की हत्या की है। परन्तु जब यह प्रमाणित हो रहा है कि कैसे कनाडा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खालिस्तानी अलगाववादी विचारधारा को प्रश्रय दिया जा रहा है तो वहीं अब प्रश्न उठ रहे हैं कि आखिर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर आंसू बहाने वाले जस्टिन ट्रुडो बलूच कार्यकर्ता करीमा बलूच की रहस्यमयी मौत पर चुप क्यों थे?
पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान पर किए गए अत्याचारों के कारण कनाडा में शरण लेकर रह रही थीं, वह पाकिस्तान की नीतियों का विरोध करती थीं, बलूच नागरिकों के मानवाधिकारों के विषय में बात करती थीं और वह पाकिस्तान में अपनी जान को खतरे में देखकर कनाडा आई थीं। मगर खुद को सबसे सुरक्षित देशों में से एक देश होने का दावा करने वाले कनाडा में करीमा बलूच की रहस्यमयी मृत्यु हो जाती है। चूंकि करीमा ने कनाडा आकर भी पाकिस्तान और आईएसआई के खिलाफ बोलना जारी रखा था। मगर एक दिन वह अचानक गायब हो गयी थीं और उनका शव 21 दिसंबर 2020 को टोरंटो में ओंटारियो नदी के किनारे मिला था।
उनकी इस मृत्यु को आत्महत्या कहा गया था। परन्तु उनके पति का कहना था कि उनकी पत्नी आत्महत्या नहीं कर सकती, क्योंकि वह एक मजबूत महिला थीं और बहुत अच्छे मूड से घर से बाहर निकली थीं। उन्होंने अपनी पत्नी की आईएसआई द्वारा हत्या की आशंका व्यक्त की थी, परन्तु जस्टिन ट्रूडो और उनकी सरकार की ओर से संवदेना की वह नदिया नहीं बही थीं, जो एक खालिस्तानी की हत्या पर बह रही हैं।
यही कारण है कि कनाडा की बलूच मानवाधिकार परिषद ने जस्टिन ट्रूडो पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि कैसे करीमा बलूच की हत्या पर जस्टिन ट्रूडो की सरकार मौन रही।
करीमा बलूच की मृत्यु को लेकर उन्होंने कनाडा की पुलिस पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए लिखा है कि टोरंटो पुलिस ने करीमा बलूच के शव के मिलते ही यह घोषणा कर दी थी कि किसी भी प्रकार का कोई संदेह परिलक्षित नहीं हो रहा है, अर्थात पुलिस के अनुसार यह आत्महत्या थी, जबकि टोरंटो पुलिस यह भली तरह से जानती थी कि करीमा बलूच को लगातार ही आईएसआई से धमकियां मिल रही थीं।
उन्होंने लिखा कि करीमा बलूच की रहस्यमयी मौत पर चुप्पी कनाडा के राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो के उस व्यवहार से एकदम अलग है, जो वह निज्जर की हत्या पर संसद में कर रहे हैं। पत्र में यह भी लिखा है कि बीएचआरसी कनाडा का यह मानना है कि कनाडा सरकार का बलूच नागरिक की रहस्यमयी मौत पर मौन चुनावी कारणों के चलते है क्योंकि बलूच समुदाय संख्या में कम है और किसी भी प्रकार से कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं उत्पन्न कर सकता है।
पत्र में लिखा है कि शायद चुनावी तौर पर प्रभावित न करने के कारण ही उन्हें पिछले तीन वर्षों से कनाडा सरकार से किसी निष्पक्ष जांच की आस में निराशा हाथ आई है!
करीमा बलूच को लेकर बलूच वॉयस एसोसिएशन के अध्यक्ष मुनीर मेंगल ने भी जिनेवा में कहा कि करीमा बलूच एक बलूच विद्यार्थी, मानवाधिकार एवं राजनीतिक कार्यकर्ता थी। वह कनाडा में अपनी जान बचाने के लिए आई थी। मगर कनाडा में उसकी रहस्यमयी मौत हो गयी और उसकी मृत्यु पर हमने पेरिस में कनाडा एम्बेसी के सामने विरोध प्रदर्शन किया था और जांच की मांग की थी। 3 साल के बाद भी अभी तक कनाडा के अधिकारियों से हमें कोई सूचना नहीं मिली है।
कनाडा में अपनी जान बचाने को शरण लेने वाली करीमा बलोच की हत्या पर चुप्पी और खालिस्तानी निज्जर पर संसद में शोर और भारत को दोषी ठहराना कहीं न कहीं कनाडा की राजनीतिक विवशता की ओर ही संकेत कर रहा है, क्योंकि जस्टिन ट्रूडो एक अल्पमत की सरकार चला रहे हैं, जिसे बाहर से खालिस्तानी अलगाववादी नेता जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा समर्थन मिला हुआ है।
यह सभी को पता है कि कैसे खालिस्तानी अलगाववादियों को पाकिस्तान द्वारा कनाडा में समर्थन दिया जाता है। तो क्या जस्टिन ट्रूडो अपनी सरकार बचाने के लिए ही करीमा बलूच की रहस्यमयी मृत्यु पर मौन रहे थे? यह चुप्पी तमाम प्रश्न उठाती है और वही प्रश्न बलूच मानवाधिकार परिषद भी कर रही है कि आखिर वह क्या कारण था कि करीमा बलूच की इस मृत्यु पर बात तक करनी उचित नहीं समझी गयी, वह भी तब जब करीमा को लगातार आईएसआई से धमकियां मिल रही थीं और सरकार और पुलिस को भी इस खतरे की जानकारी थी।
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