देश के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सड़क क्षेत्र में सफलताओं एवं उपलब्धियों के लिए सामूहिकता, समन्वय और परस्पर विश्वास को श्रेय देते हैं। पाञ्चजन्य के कार्यक्रम ‘आधार’ में उन्होंने बुनियादी ढांचा, जैव ईंधन, स्वदेशी की परिकल्पना के क्रियान्वयन, आटोमोबाइल विनिर्माण, कचरे को संपत्ति में बदलने जैसे तमाम विषयों पर खुल कर बात की। प्रस्तुत हैं श्री नितिन गडकरी से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की बातचीत के संपादित अंश
भारतीय राजनीति में आपकी छवि ऐसी है कि आप रिकॉर्ड बनाते हैं और बहुत सारे रिकॉर्ड तोड़ते भी हैं। आपने सात विश्व कीर्तिमान बनाये हैं। वे विश्व कीर्तिमान कैसे हैं और किस मायने में अनूठे हैं?
मैंने ये रिकॉर्ड तय करके नहीं बनाए, न ही अकेले दम पर बनाये हैं। अभी हमने चौबीस घंटे में बीजापुर-सोलापुर की सिंगल लेन सड़क बनायी। इसमें कॉन्ट्रेक्टर, इंजीनियर, सबने मिलकर काम किया। मुंबई-वडोदरा रोड में हमने सीमेंट-कन्क्रीट का जो काम किया, उसमें भी रिकॉर्ड टूटा। ये जो लगातार रिकॉर्ड बन रहे हैं, इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कई बड़े लोगों से हमें जीवन में सीखने को बहुत कुछ मिला और जिनको मैं अपना आदर्श मानता हूं। मैं बालासाहब देवरस जी, भाउराव जी, यशवंत राव केलकर जी, दत्तोपंत जी, मदनदास जी और दत्ता जी डेढोकर, विद्यार्थी परिषद के सदाशिव देवधर के संपर्क-सान्निध्य में रहा। हमें सिखाया गया था कि ए नाम के व्यक्ति ने ए2 काम किया और बी नाम के व्यक्ति ने बी2 काम किया। तो कुल कार्य ए2+बी2 के बराबर है। परंतु जब ए और बी, साथ आते हैं, साथ सोचते हैं और साथ काम करते हैं तो इसका परिणाम आता है ए2+बी2+2एबी। यह 2एबी सामूहिक टीम भावना का परिणाम है। ये जो सामूहिकता है, समन्वय है, परस्पर विश्वास है, कार्यविभाजन एवं शक्ति विभाजन की अवधारणा है, वहीं रिकॉर्ड्स का कारण है।
मैंने स्टारबक्स की किताब पढ़ी। उन सब बातों में संघ और विद्यार्थी परिषद को देखता हूं। स्टारबक्स ने एक बात कही कि जब आपकी सफलता की खुशी सबसे ज्यादा आपको स्वयं को होती है तो यह सफलता अर्थहीन है। पर जब सफलता मिलने पर आपसे ज्यादा खुशी आपके सहयोगियों, कार्यकर्ताओं, मित्रों को होती है, तो सफलता का यही सच्चा अर्थ है। मैं कोई प्रबंधन विशेषज्ञ नहीं हूं। परंतु जब मैं सोचता हूं कि इस तरह की सफलता का कारण क्या है? तब मुझे यशवंत राव केलकर की बतायी बात याद आती है—टीम भावना, मिलकर काम करना, सामूहिकता, समन्वय, सौहार्द, सहिष्णुता, परस्पर हित, परस्पर विश्वास। ये जो छोटी-छोटी बातें मुझे संगठन में सीखने को मिलीं, वे मेरे कॉपोर्रेट या मेरे इस तरह के काम की आधार शक्ति बनीं। मैं हमेशा एक बात याद रखता हूं कि मानवीय संबंध राजनीति, समाज कार्य एवं व्यवसाय की सबसे बड़ी क्षमता है। एक छोटा सा कार्यकर्ता, सामान्य व्यक्ति आपसे प्रेम करता है, यही राजनीति, समाजसेवा, और व्यापार की सबसे बड़ी ताकत है। आपको बड़े अवार्ड, पुरस्कार मिलने से ज्यादा बड़ी उपलब्धि यही है। एक बार मुझे अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था कि नितिन, एक बात याद रखो कि घर पर लोग मिलने के लिए आये हों, लेकिन आप कितनी भी जल्दी में हो, तो भी उनसे बिना मिले कभी मत निकलना। इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए। यही तो प्रबंधन की आधुनिक अवधारणा है।
मजबूत है आधार
आपने अभी संघ के जिन तपस्वी प्रचारकों का नाम लिया, इसमें एक नाम और जोड़ता हूं और एक पुरानी घटना जोड़ता हूं। अभी जी-20 हुआ है तो मुझे जैव ईंधन की याद आयी, मुझे नितिन जी की याद आयी, सुदर्शन जी की याद आयी। तब 23 वर्ष पहले आईआईटी में जो स्वदेशी मेला हुआ था, उसकी याद आयी, आप उसकी कहानी बतायें।
सुदर्शन जी कहा करते थे कि इस देश का किसान ऊर्जा तैयार कर सकता है, पेट्रोल-डीजल का पर्याय दे सकता है। वे खुद इंजीनियर थे। मैंने सुदर्शन जी की इस बात को स्वीकार किया। परंतु जब कोई समय से बहुत पहले कोई विचार दे देता है तो अपने लोग भी जल्दी नहीं मानते। मैं पहले इथेनॉल वगैरह, ऊर्जा एवं बिजली की ओर कृषि के विविधीकरण के बारे में बोलता था तो लोग कहते थे कि तुम क्यों ये सब बातें बोलते हो? यह संभव होगा क्या? मैं बोलता था कि यह संभव होगा। अब विश्वास हुआ कि किसान ग्रीन हाइड्रोजन बना सकता है, बायो इथेनॉल बना सकता है। मुझे उस दिन सुदर्शन जी की बहुत याद आयी जब सौ प्रतिशत किसानों द्वारा बनाये गये बायो इथेनॉल पर टोयोटा की इनोवा गाड़ी लॉन्च हुई। यह 60 प्रतिशत बिजली और 40 प्रतिशत इथेनॉल पर जा रही है और औसत के हिसाब से इसमें पेट्रोल की दर 25 रुपये लीटर आती है। यानी उपभोक्ता का लाभ, पर्यावरण का लाभ, आयात खत्म होगा, गांव के किसान-मजदूर का भला होगा। अभी ब्राजील एयरफोर्स फाइटर जेट में 22 प्रतिशत इथेनॉल डाल रहा है। पानीपत में हमने इंडियन आयल से बात की। वहां जो पराली जलायी जाती थी, उसमें मूल्यवर्धन हुआ। पराली से एक लाख लीटर इथेनॉल बनाते हैं। 150 टन बायो बिटुमिन बनाते हैं। जैव विमान ईंधन बना रहे हैं। आने वाले समय में हमने नीति बनायी है कि हमारे देश में हम विमान ईंधन में 8 प्रतिशत जैव विमान ईंधन डालेंगे। अब देश और आगे बढ़ गया है। वह दिन दूर नहीं जब अगले 2-3 साल के बाद कमर्शियल हवाई जहाज, फाइटर जेट, हेलीकॉप्टर किसानों द्वारा तैयार ईंधन पर चलेंगे।
यह स्वदेशी, स्वावलंबन के लिए सबसे बड़ी बात है कि ईंधन का 16 लाख करोड़ रुपय का आयात बिल है। अगले पांच साल में यह 25 लाख करोड़ रुपये होगा क्योंकि आटोमोबाइल का विकास बहुत हो रहा है। जब मैं मंत्री बना, तब यह उद्योग साढ़े चार लाख करोड़ रुपये का था। आज यह साढ़े 12 लाख करोड़ रुपये का हो गया है। पहले हम आटोमोबाइल में दुनिया में सातवें नंबर पर थे। अब हम जापान को पछाड़ कर अमेरिका एवं चीन के बाद तीसरे नंबर पर हैं। यही आत्मनिर्भर भारत है। अब हमें भारत को दुनिया का नंबर वन आॅटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना है। 4.5 लाख करोड़ युवाओं को रोजगार दिया है। केंद्रीय एवं राज्य जीएसटी में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं। हमारा निर्यात 4.5 लाख करोड़ रु. का है। आने वाले समय में हम नंबर वन बनेंगे। दुनिया के सभी कार, स्कूटर, ट्रक, ट्रैक्टर भारत में बनेंगे और यहां से सभी देशों में निर्यात होंगे। अब हम 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिकल बस पर जाएंगे। अगले पांच साल में दिल्ली में इसके अलावा कुछ नहीं दिखेगा। मैं दिल्ली से जयपुर इलेक्ट्रिक केबल डालकर इलेक्ट्रिक हाइवे बना रहा हूं और इनसे आप डीजल बसों से 30 प्रतिशत कम के खर्चे में बिजनेस क्लास में बैठकर सवा दो घंटों में जयपुर पहुंच जाएंगे।
आपने पिछली बार इलेक्ट्रिकल वाहनों की बात की थी। सड़कों पर हरी नंबर प्लेट दिखने लगी है परंतु जब हरी नंबर प्लेट के साथ नेटवर्क नहीं मिलता है तो चेहरा पीला भी पड़ जाता है। इस पर आप क्या कहेंगे?
एएचआई चेयरमैन ने कहा कि सड़क पर जाता हूं तो मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता। मैंने कहा कि साझा उद्यम में एक कंपनी बनाएं और संचार कंपनी से बोलें कि हमारी सड़क पर अपना टावर खड़ा करें और यहां से जितनी कमाई होगी, उसमें आधा आपका और आधा हमारा। इसी तरह अब मैं इलेक्ट्रिक हाईवे भी बीओटी में बना रहा हूं। जब मैं जलसंसाधन मंत्री था, तब मैंने मथुरा में हाइब्रिड प्रोजेक्ट शुरू किया और उसमें टॉयलेट के गंदे पानी को शुद्ध करके इंडियन आॅयल को बेचने का तय किया। इसके लिए त्रिवेणी कंपनी ने टेंडर जीता जिसमें 40 प्रतिशत सरकार ने दिया और 60 प्रतिशत कंपनी ने जुटाया। पानी शुद्ध हो रहा है, इंडियन आॅयल उसका उपयोग कर रही है। पहले इंडियन आॅयल सिंचाई के पानी के लिए उत्तर प्रदेश को 25 करोड़ रुपये देती थी। अब 20 करोड़ रुपये दे रही है, 5 करोड़ का फायदा हो गया। मथुरा में टॉयलेट का 18 एमएलडी गंदा पानी शुद्ध हो गया और त्रिवेणी इंजीनियरिंग मुनाफा कमा रही है।
डीजल का क्या भविष्य है, जैव ईंधन का क्या भविष्य है और हाइड्रोजन की क्या जगह है, इलेक्ट्रिक वाहनों की क्या स्थिति होगी? पहले डीजल गाड़ियों पर बात करें।
अभी एक सर्वे रिपोर्ट आयी है कि दिल्ली में इसी तरह प्रदूषण रहा तो लोगों की जिंदगी 10 से 12 साल कम हो जाएगी। ये कितना संवेदनशील एवं खतरनाक है, इसको समझना पड़ेगा। डीजल के कारण बहुत समस्या है। जब मैं 2014 में मंत्री बना, तो कुल चारपहिया वाहनों में 48 प्रतिशत डीजल वाहन थे और 52 प्रतिशत पेट्रोल वाहन। आज स्थिति ऐसी है कि 18 प्रतिशत डीजल वाहन हैं और शेष पेट्रोल और सीएनजी वाहन हैं। इस देश में अगर लोगों की जान बचानी है तो डीजल का उपयोग कम करना होगा। डीजल का प्रदूषण कम करना होगा। मेरा लोगों से अनुरोध है कि इथेनॉल, मिथेनॉल, जैव डीजल, जैव एलएनजी, जैव सीएनजी, इलेक्ट्रिक और ग्रीन हाइड्रोजन पर जल्दी से जल्दी आ जाइए। हम स्वदेशी, स्वावलंबन, स्वातंत्र्य की बात करते हैं, राष्ट्रवाद की बात करते हैं। आज हम इस देश में 16 लाख करोड़ रुपये का जीवाश्म ईंधन आयात कर रहे हैं। अनुमान है कि इसी तरह देश में वैकल्पिक ईंधन, जैव ईंधन का निर्माण होने के बाद भी 2025 में 25 लाख करोड़ रुपये का आयात होगा। इस देश की अर्थव्यवस्था से 25 लाख करोड़ बाहर जाना अच्छा है क्या? मैं मानता हूं कि राष्ट्रवाद और स्वदेशी का सही विचार यह है कि आयात कम करना और निर्यात को बढ़ाना। इथिक्स, इकोनॉमी, इकोलॉजी एंड एन्वायरनमेंट – यही तीन समाज के प्रमुख स्तंभ हैं। एक तरफ अर्थव्यवस्था को विकसित करना है, दूसरी तरफ मूल्य आधारित शिक्षा, परिवार पद्धति, संस्कार के आधार पर भारत के भविष्य के नागरिक को व्यक्ति निर्माण में संस्कारित करना है। और तीसरा, इकोलॉजी और एन्वायरनमेंट को संरक्षित करना है। इसके लिए दो प्रमुख दर्शन हैं। प्रथम, ज्ञान का संपत्ति में बदलाव ही भविष्य है। और दूसरी बात है कि कोई भी सामग्री बेकार नहीं है और न ही कोई व्यक्ति बेकार है। यह उपयुक्त प्रौद्योगिकी और नेतृत्व के उपयुक्त दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि आप कैसे कचरे को संपत्ति में बदलते हैं। अभी दिल्ली में गाजीपुर में कचरे का पहाड़ है। उसमें अब पहाड़ सात मीटर घट गया है क्योंकि हमने रिंग रोड-यूआर-2 बनाते समय 30 लाख टन कचरा सड़क बनाने में इस्तेमाल कर लिया।
दिल्ली में कचरे की राजनीति है या राजनीति का कचरा है। आप इसका इस्तेमाल सड़कों में कैसे कर रहे हैं?
मैं महात्मा गांधी जी का अनुयायी हूं, स्वच्छता अभियान चलाना चाहता हूं और कचरे को हटाना चाहता हूं। आप इसका राजनीतिक अर्थ भी निकाल सकते हैं। गांधी जी की जयंती पर मैं एक नीति घोषित करने जा रहा हूं कि नगर परिषद में, नगर निगम में, जहां-जहां कचरा होगा, उस पूरे कचरे की छंटाई करेंगे, उसको हम सड़क निर्माण में इस्तेमाल करेंगे और देश का कचरा समूल नष्ट करेंगे।
ल्ल आपने जिनका कचरा कर दिया, या जिन्हें मोरपंख लगा दिये, आपका किसी से खराब संबंध नहीं है। यह प्रबंधन का कौन सा मंत्र है?
ये कोई प्रबंधन नहीं है, मुझे भी आश्चर्य होता है। मैं संघ का स्वयंसेवक हूं। विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता हूं। मैं प्रतिबद्धता की राजनीति वाला हूं। एक बार संसद में सीपीआई से लेकर ओवैसी की पार्टी तक, 75 सदस्य, वे सब के सब बोले। उस दिन मैं वहां नहीं था तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी का फोन आया कि पहली बार हर पार्टी का सदस्य आपकी तारीफ कर रहा है। आपको यहां रहना चाहिए। मैं उनके कहने पर दोपहर के बाद आया। मैंने कहा कि कि मेरी पहचान स्पष्ट होने के बाद भी मेरे वैचारिक विरोधी मुझे अच्छा कह रहे हैं, इसके लिए धन्यवाद। महाराष्ट्र के एक प्रचारक वसंतराव भागवत ने एक बार मुझे कहा था कि जो काम सही और कानूनी हो, वह काम होना चाहिए, चाहे किसी का भी हो और जो गलत और गैरकानूनी है, उसको नहीं करना चाहिए। मेरा भी यही संस्कार है। इसीलिए जब विपक्ष का कोई काम हो जाता है, तो उन्हें खुशी होती है कि भाजपा वाला है लेकिन काम कर दिया। मैं भी विपक्ष को कोई काम बोलूं तो कोई टालता नहीं है।
कुछ लोग इंडिया और भारत की बात पर देश में आग लगाना चाहते हैं। इस पूरे विमर्श को आप कैसे देखते हैं?
राजनीति बाध्यता, विरोधाभास एवं सीमाओं का खेल है। विपक्ष की अपनी भूमिका होती है, सत्ता पक्ष की अपनी। उनको अपनी बात कहने का अधिकार है और हमें अपनी बात कहने का। आज हम सत्ता पक्ष में हैं तो हम सुशासन, ई-शासन और गरीब, मजदूर, किसान के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं। इस सबका विश्लेषण जनता करेगी और विपक्ष का विश्लेषण भी जनता करेगी।
भारत माला-1 ने कीर्तिमान बनाया था। अब आप भारत माला-2 पर काम कर रहे हैं। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
भारत माला-1 और भारत माला-2 एक कार्यक्रम है। हमारे पास एक लंबी सूची है कि हम लोग देश में कितने हाईवे बना रहे हैं। जैसे 1 लाख करोड़ रुपये का दिल्ली-मुंबई हाइवे एक्सप्रेस, लगभग 5 हजार करोड़ का अमदाबाद-धोलेरा एक्सप्रेस हाईवे, बंगलुरु-चेन्नै 2 घंटे में, दिल्ली-अमृतसर-कटरा दिल्ली से श्रीनगर तक 8 घंटे में, दिल्ली से देहरादून 2 घंटे में और हरिद्वार डेढ़ घंटे में। दिल्ली से जयपुर 2 घंटे में, दिल्ली से चंडीगढ़ ढाई घंटे में, चंडीगढ़ से मनाली साड़े तीन घंटे में। दिल्ली में 65 हजार करोड़ रुपये का काम कर रहा हूं और दिसंबर तक हमारे 90 प्रतिशत काम हो जाएंगे। अब यूआर-2 से आप 15 मिनट में आएंगे शिवमूर्ति तक। शिवमूर्ति में टनल बन रही है जिसमें 8 लेन ऊपर और 8 लेन नीचे और इस तरह से 24 लेन बन गयी है। वहां से सीधा हवाईअड्डे के टी-3 टर्मिनल पर जाएंगे। इस तरह से आप 20 मिनट में एयरपोर्ट पहुंच जाएंगे जबकि पहले 2 घंटे लगते थे। उसी रोड से द्वारिका एक्सप्रेस हाइवे से सीधे दिल्ली-मुम्बई हाइवे से जुड़ेंगे। इसी तरह से अरुणाचल, मेघालय, त्रिपुरा। हम जम्मू और श्रीनगर के बीच में 18 टनल बना रहे हैं। इसमें 14 बनकर तैयार हो गई हैं।
पहले मनाली से रोहतांग दर्रे तक जाने में साढ़े तीन घंटे लगते थे। अभी हम अटल टनल से सिर्फ 9 मिनट में पहुंच जाते हैं। हम अटल टनल से निकलने पर इसी तरह के पांच टनल बना रहे हैं जिससे हम लेह और लद्दाख आएंगे। लेह से हम जोजिला आएंगे। यह 12 किलोमीटर की सड़क है जो एशिया की सबसे बड़ी टनल है। इस पर 70 प्रतिशत काम हो गया है। इसमें हमने अनुमानित लागत से 5 हजार करोड़ रुपये बचाये। इससे बाहर निकलने पर जेट मोड़ टनल आएगी। इससे बाहर निकलेंगे तो श्रीनगर आएंगे। फिर श्रीनगर से जम्मू के रोड पर 18 टनल हैं। उसके बाद हम दिल्ली-कटरा रोड पर आ जाएंगे। कटरा से हम सीधा अमृतसर से दिल्ली आएंगे। फिर दिल्ली-मुम्बई हाईवे से सूरत जाएंगे। सूरत से निकलकर हम नयी सड़क बना रहे हैं जिसका काम शुरू हो गया जो सूरत से नासिक, नासिक से अहमद नगर, अहमद नगर से सोलापुर, सोलापुर से कुरनूल, कुरनूल से त्रिवेन्द्रम, कोचीन, कन्याकुमारी, चेन्नै, मंगलुरु, बंगलुरु से हैदराबाद से लेकर पूरे दक्षिण को जोड़ेंगे। दिल्ली से चेन्नै की दूरी 312 किलोमीटर कम हो जाएगी। ‘कश्मीर से कन्याकुमारी’ तक एक्सप्रेस वे होगा जिस पर 120 किलोमीटर प्रति घंटा के रफ्तार से आवागमन होगा। पहले हम कश्मीर से कन्याकुमारी भाषणों में बोला करते थे और आज हमने कश्मीर से कन्याकुमारी तक रोड बना दिया।
आपने एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने में कम घंटे और गति की बात कही, मगर उस चित्र के साथ कुछ आंकड़े भी मन में कौंधते हैं। जैसे 5 लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होना, उसमें डेढ़ लाख से ज्यादा मौतें हो जाना। यह कुल मौतों में 11 प्रतिशत हिस्सा है। ये गति तो आएगी, बुनियादी ढांचा बढ़ेगा मगर सड़क सुरक्षा के लिए क्या कोई तैयारी है?
पहली बात तो यह है कि हमारे 10 साल के अच्छे कार्यों में ये डार्क एरिया है। पहली बात यह समझिए कि इसमें समस्या क्या है। आटोमोबाइल इंजीनियरिंग एंड रोड इंजीनियरिंग यही दो कारण है। आटोमोबाइल इंजीनियरिंग में हमने जो स्टार रेटिंग किया है जिसके कारण इंटरनेशनल सिक्योरिटी में सभी गाड़ियां आ गयीं। आटोमोबाइल कंपनियों में जितने सुधार करने थे, हमने किये हैं। रोड इंजीनियरिंग में भी हम 40 हजार करोड़ रुपये खर्च करके गलतियों को सुधार रहे हैं। फिर तीसरी बात, सड़क सुरक्षा के बारे में बच्चों को सिखा रहे हैं। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, एनजीओ, सामाजिक संगठन वगैरह के साथ काम कर रहे हैं। फिर कानून लागू करना, हम नया मोटर सेफ्टी कानून लाये। जुर्माना बढ़ा दिया। कैमरे, लाइट सिस्टम लगाया। आपातकाल में हमलोग 670 हेलिपैड बना रहे हैं ताकि कोई दुर्घटना होने पर तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाए। ये सब करने के बाद भी 5 लाख दुर्घटनाएं हो रही हैं जिसमें डेढ़ लाख की मौतें हो रही हैं। इसमें मरने वालों की आयु 18 से 34 वर्ष की है। जब तक मानव व्यवहार की मनोदशा नहीं बदलेंगे, तब तक यह संभव नहीं है। समस्या यह है कि कानून के प्रति डर भी नहीं और सम्मान भी नहीं है और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इसको बदलने के लिए मीडिया, एनजीओ, शिक्षा संस्थान के साथ सभी का सहयोग लगेगा, तभी इसका समाधान होगा। मैं स्वीकार करता हूं कि यही एक विषय है जिसमें हमें सफलता नहीं मिली है। पर मीडिया एवं अन्य संस्थाओं के सहयोग से इसके लिए कोशिश जारी है और निश्चित रूप से एक न एक दिन इसमें भी सफलता मिलेगी।
अभी जी-20 के दौरान दुनिया भारत के आंगन में एकत्र हुई थी। इसमें जो जैव ईंधन गठबंधन बना है, वह विश्व राजनीति में क्या स्थान रखेगा, इसके आयाम क्या होंगे? दूसरा, सऊदी अरब को शामिल करते हुए भारत से यूरोप तक भारत ने जिस सड़क का खाका खींचा है, ये हमारे लिए कितना फलदायी होगा?
हमारे देश में लॉजिस्टिक लागत 14 से 16 प्रतिशत है। चीन में 8 से 10 प्रतिशत और अमेरिका एवं यूरोपियन देशों में 12 प्रतिशत है। हमारा प्रयास है कि आने वाले 2-3 साल में लॉजिस्टिक लागत को हम 9 प्रतिशत तक लाएं। अगर ऐसा हुआ तो हमारा निर्यात डेढ़ गुना बढ़ेगा। इसमें गेहूं, चावल, इथेनॉल, हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट इत्यादि सभी चीजें निर्यात होंगी। तो इस गलियारे से किसानों को फायदा होगा, रोजगार निर्मित होंगे, आर्थिक विकास होगा, जीडीपी बढ़ेगा और एक प्रकार से कृषि क्षेत्र में भी विकास दर में वृद्धि होगी। इस गलियारे के लिए सभी देशों ने मान्यता दी। मैंने इस पर विदेश मंत्री जयशंकर जी से पत्र मांगा है। ये भारत के लिए बहुत उपयोगी है। दूसरी बात, जैव ईंधन गठबंधन की है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें ब्राजील इथेनॉल का जन्मदाता है। ब्राजील में पेट्रोल में 26 प्रतिशत इथेनॉल डालते हैं, डीजल में 15 प्रतिशत डालते हैं। ब्राजील 22 प्रतिशत इथेनॉल फाइटर जेट में डालता है। वहां पर उड्डयन में भी जैव ईंधन का इस्तेमाल हो रहा है। अभी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में पराली से जैव ईंधन तैयार करने के लिए 185 प्रोजेक्ट काम करने की तैयारी में हैं। 36 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं जो पराली से जैव सीएनजी और जैव एलएनजी बना रहे हैं। पहले मक्के का भाव 1200 रुपये क्विंटल था। जब से इथेनॉल बनना शुरू हुआ, तब से मक्के की कीमत दोगुना बढ़ गयी जिससे किसानों को फायदा हुआ। अब किसान देश का अन्नादाता नहीं, बल्कि ऊर्जा दाता भी बन गया है। किसान अब बिटुमिन बनाएगा, हवाई ईंधन दाता भी बनेगा। यही हमारा लक्ष्य है और यह निश्चित रूप से पूरा होगा।
सड़कों के मामले में विश्व के नंबर वन कब होंगे?
अभी हमने आइएएम बंगलौर से अध्ययन किया है कि भारत माला-1 में जो हमने सड़क बनायी, उससे वहां की जनता, किसानों और सबकी उत्पादन वृद्धि 8 प्रतिशत बढ़ी है। सड़क बनाने से विकास बढ़ता है। दूसरी बात, नयी सड़क बनाने से कहीं भी जाने में बहुत कम समय लगता है जिससे करोड़ों टन प्रदूषण कम होता है। देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि 2029 तक हमें कार्बन न्यूट्रल देश बनना है। मैं इतना जरूर कहूंगा कि जब 2024 समाप्त होगा तो भारत का सड़क बुनियादी ढांचा अमेरिका के बराबर होगा।
वर्ष 2024 के बाद आपके पास जो मंत्रालय होगा, तो कौन सा काम को लेकर जनता के बीच जाएंगे?
दीनदयाल जी कहा करते थे कि जब तक आदमी द्वारा रिक्शे पर आदमी को खींचना बंद नहीं होगा, तब तक मानवता के आधार पर हम कह नहीं पाएंगे कि हमने कुछ किया है। डॉक्टर राममनोहर लोहिया जी कहते थे कि जिंदगी भर रिक्शे पर नहीं बैठूंगा। हमारे देश में आदमी को बैठा कर हाथों से खींचने वाले लगभग डेढ़ करोड़ साइकिल रिक्शा थे। लगभग 50 लाख, एक क्विंटल, दो क्विंटल का बोरा लेकर खींचने वाले साइकिल रिक्शा थे। इसके लिए सबसे बड़ा काम 2014 के बाद हुआ जिसमें ई-रिक्शा आया। इसके लिए मैंने सर्वोच्च न्यायालय तक लड़ाई लड़ी और आज देश में साइकिल रिक्शा लगभग न के बराबर हैं। ये जो दो करोड़ लोगों को नया जीवन जीने की स्वतंत्रता मिली है, वही मेरे जीवन का सबसे बड़ा काम है। अभी पूर्वोत्तर में भी ई-रिक्शा की स्कीम बनायी है और आज ई रिक्शा वाला 800 से 1000 रुपए प्रतिदिन कमा रहा है। इसमें 75 प्रतिशत लोग अल्पसंख्यक एवं अति पिछड़े लोग हैं। ये सरकार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।
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