ऐसा लगता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने सहयोगी दल कांग्रेस को झारखंड में समाप्त कर देना चाहती है। इसके अनेक उदाहरण हैं।
जब से झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो—कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी है तभी से दोनों दलों के अंदर कई विषयों को लेकर तनातनी दिखती रही है। झामुमो की ओर से कई बार ऐसी हरकत की गई है जिससे ऐसा लगता है कि झामुमो कांग्रेस को निगल जाना चाहती है। ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है, क्योंकि अभी हाल ही में डुमरी उपचुनाव में पूर्व शिक्षा मंत्री जगन्नाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को जीत मिली। गठबंधन की तरफ से यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा की थी। इसके लिए झामुमो और हेमंत सोरेन की ओर से दिन-रात मेहनत की गई। इसके साथ ही चुनाव से पहले ही बेबी देवी को मंत्री पद का दर्जा दे दिया गया, ताकि चुनाव के दौरान लोगों के वोट को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके।
वर्ष 2021 में भी मधुपुर उपचुनाव के दौरान भी यही देखने को मिला था। झामुमो विधायक हाजी हुसैन की मौत के बाद मधुपुर में उपचुनाव होना था, वहां भी हाजी हुसैन के बेटे हफीजुल हसन को झामुमो ने मंत्री पद देकर वहां की जनता से उन्हें चुनाव में जिताने की अपील की थी। मधुपुर के इस उप चुनाव में भी झामुमो को जीत हासिल हुई थी।
जबकि इसी वर्ष 2023 की शुरुआत में कांग्रेस विधायक ममता देवी की सदस्यता जाने के बाद रामगढ़ उपचुनाव की घोषणा की गई थी। इस दौरान कांग्रेस की तरफ से चुनावी मैदान में ममता देवी के पति बजरंग महतो थे। कांग्रेस की ओर से उन्हें मंत्री पद देने की मांग की जा रही थी, ताकि बजरंग महतो भी चुनाव जीत सकें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से चुनावी सभाओं में बेतुके बयानबाजी की गई। इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हुआ। अपने भाषण में खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंडी बनाम गैर झारखंडी की बात कह दी, जिससे रामगढ़ शहर के मतदाताओं ने कांग्रेस को सिरे से नकार दिया जो कांग्रेस की हार का मुख्य कारण बना।
इससे यही साबित होता है कि झामुमो ने अपने नेताओं के लिए हर वह दाव चला जिससे उन्हें जीत मिल सके। वहीं कांग्रेस की जीत से झामुमो को कोई विशेष लाभ नहीं दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस नेताओं ने कई बार लगाया हेमंत सोरेन सरकार पर अनदेखी का आरोप
अब अगर बात करें झारखंड मुक्ति मोर्चा की कार्यशैली की तो कई बार देखा गया है कि कांग्रेस के विधायकों ने भी झारखंड सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाया है। बड़कागांव की विधायक अंबा प्रसाद ने खुद हेमंत सोरेन सरकार की कार्यशैली और बढ़ते अपराध पर कई बार सवाल खड़े किए हैं।
कांग्रेस के विशेष मतदाताओं पर झामुमो की टेढ़ी नजर
इसके साथ ही झामुमो के मुस्लिम तुष्टिकरण पर भी कांग्रेस दबी जुबान से झामुमो की आलोचना कर चुकी है। झारखंड सहित पूरे देशभर में मुस्लिम समाज का सबसे अधिक झुकाव कांग्रेस की ओर दिखाई देता है। हाल के चुनाव में यह भी देखने को मिला कि रामगढ़ उपचुनाव में मुस्लिम समाज कांग्रेस को वोट देने के लिए उस संख्या में नहीं उतरा, जिस संख्या में पहले उतरता था। वहीं दूसरी ओर डुमरी चुनाव में पिछली बार एआइएमआइएम को 24000 वोट मिले थे, लेकिन इस बार के उपचुनाव में उसे मात्र 3500 वोट मिले। यानी मुस्लिम समाज ने खुलकर झामुमो का साथ दिया। आपको बता दें कि मुस्लिम समाज का वोट लेने के लिए झामुमो की ओर से कई लोक लुभावन योजनाएं लाई जा रही हैं। उदाहरण के तौर पर विधानसभा में नमाज पढ़ने का स्थल देने की कोशिश करना, कोरोना के दौरान मदरसों के सभी मौलानाओं को वेतन देना। इसके साथ ही रांची में हुए दंगे के मामले में भी झामुमो की ओर से दंगाइयों के लिए नरम रुख अपनाया गया और उन दंगाइयों पर कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों पर ही गाज गिराई गई।
कांग्रेस को मुसीबत की घड़ी में भी छोड़ा
कुछ समय पहले कांग्रेस के तीन विधायकों को कोलकाता में भारी मात्रा में नगद के साथ गिरफ्तार किया गया था। उस दौरान भी झामुमो की ओर से उन्हें उन्हीं की हाल में छोड़ दिया गया। इसके साथ ही झारखंड सरकार के कई कार्यक्रमों में हेमंत सोरेन के साथ-साथ झामुमो के कई विधायक और नेता दिखाई तो देते हैं लेकिन कांग्रेस के नेताओं को इन कार्यक्रमों से दूर रखा जाता है। कांग्रेस नेताओं के पास जितने भी मंत्रालय हैं उनकी स्थिति बाद से बदतर हो रही है। उदाहरण के तौर पर प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है।यहां ना तो उचित इलाज की व्यवस्था है और ना ही आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही पूरे राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त होती जा रही है। आये दिन देखने को मिलता है कि मरीज को ना एम्बुलेंस की व्यवस्था हो पाती है ना ही उनका इलाज हो पाता है। ताजा मामला रामगढ़ के सदर अस्पताल का है जहां एक महिला को डॉक्टर ना मिलने की वजह से जमीन पर ही प्रसव करना पड़ गया।
राष्ट्रपति चुनाव और राज्यसभा के दौरान भी कांग्रेस को नहीं मिला झामुमो का साथ
राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस की ओर से यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया था। यशवंत सिन्हा कांग्रेस और कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल सभी सरकारों के पास राष्ट्रपति बनने के लिए समर्थन मांग रहे थे। उस वक्त भी झामुमो ने कांग्रेस का साथ न देते हुए द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया। इसके साथ ही राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस चाहती थी कि उनकी ओर से उनका एक प्रतिनिधि राज्यसभा जाए लेकिन यहां भी झामुमो ने अपना प्रतिनिधि उतारकर कांग्रेस को उनकी जगह दिखाने का काम किया। ऐसी खबर है कि इस मामले पर खुद सोनिया गांधी से भी हेमंत सोरेन मिले थे उसके बाद भी बात नहीं बन पाई।
हाल ही में बने ‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस के साथ कई दल शामिल हैं। इसमें एक झामुमो भी है। जिस तरह से झामुमो कांग्रेस को हर समय नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की बात तो दूर है, प्रदेश में ही इनका गठबंधन बरकरार रह जाए यही बहुत बड़ी बात होगी।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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