सनातन हिंदू धर्म संस्कृति में श्री राधा-कृष्ण को निष्काम प्रेम का सर्वोच्च प्रतीक यूं ही नहीं माना जाता। सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण संसार को मोहित करते हैं, लेकिन श्रीराधा उनका भी मन मोह लेती हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा रानी 84 कोस के समूचे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं।
श्रीमद्भागवत महापुराण में योगेश्वर श्रीकृष्ण के कुलगुरु महर्षि शाण्डिल्य जी श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ को श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति का रहस्य समझाते हुए कहते हैं कि ब्रह्म की तीन मुख्य शक्ति हैं – द्रव्य शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति। द्रव्य शक्ति यानि महालक्ष्मी, क्रिया शक्ति यानि महाकाली और ज्ञान शक्ति यानि महासरस्वती। लेकिन यह तीनों ब्रह्म की वाह्य शक्तियां हैं, पर उनकी एक प्रधान और इन तीनों से दिव्य शक्ति है जिसे ब्रह्म भी बहुत गोप्य रखते हैं और वह है उनकी आह्लादिनी शक्ति श्री राधा। आह्लाद यानी आनन्द का महासिंधु। द्रव्य किसके लिए? आनन्द के लिए ही न! क्रिया किसके लिए? आनन्द के लिए ही न! ज्ञान किसके लिए? आनन्द के लिए ही न! इसलिये आह्लादिनी शक्ति ही सभी शक्तियों का मूल हैं। सम्पूर्ण सृष्टि उन आल्हादिनी और ब्रह्म का विलास ही है। राधा नाम रूपी अपनी इन आह्लादिनी शक्ति की महिमा का गुणगान करते हुए स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं -“जिस समय मैं किसी के मुख से ’रा’ नाम सुन लेता हूँ, उसी समय उसे अपना उत्तम भक्ति-प्रेम प्रदान कर देता हूँ और ’धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं प्रियतमा श्री राधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे दौड़ पड़ता हूँ।
ब्रज के रसिक संत श्री किशोरी जी के अनुसार श्री राधा रानी के नाम की महिमा अनंत है। श्री राधा नाम को कोई मन्त्र नहीं अपितु स्वयं में ही महामन्त्र है। राधा बिना तो कृष्ण हैं ही नहीं। राधा का उल्टा होता है धारा, धारा का अर्थ है जीवन शक्ति। भागवत की जीवन शक्ति राधा हैं। कृष्ण देह हैं, तो श्रीराधा आत्मा। कृष्ण शब्द हैं, तो राधा अर्थ। कृष्ण गीत हैं, तो राधा संगीत। कृष्ण वंशी है, तो राधा स्वर। भगवान् ने अपनी समस्त संचारी शक्ति राधा में समाहित की है। ब्रज के रसिक संत श्री किशोरी जी ने इस भाव को इस रूप में प्रकट किया है-
आधौ नाम तारिहै राधा।
‘र’ के कहत रोग सब मिटिहैं, ‘ध’ के कहत मिटै सब बाधा॥
राधा राधा नाम की महिमा, गावत वेद पुराण अगाधा।
अलि किशोरी रटौ निरंतर, वेगहि लग जाय भाव समाधा॥
इसी तरह पद्म पुराण में श्रीराधारानी की दयालुता और अहेतुकी कृपा का एक बड़ा भावुक प्रसंग है कि एक बार श्रीराधा-कृष्ण निधिवन से आ रहे थे कि अचानक कान्हा की नजर श्रीराधा जी के चरणों पर पड़ गयी, जिन पर आज कुछ अधिक ही ब्रजरस लग गयी थी। श्यामसुंदर श्री जी से बोले- आपके चरणों में रज कुछ ज्यादा ही लग गयी है। अतः आप जमुनाजी में अपने चरण पखार लेना। किशोरीजी ने इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वह उसी प्रकार आनंदमग्न होकर चलती रही। श्रीयमुना जी के तट पहुंचने पर यशोदानंदन फिर बोले, हे राधे आप यमुनाजी में अपने चरणों को धो लीजिए। बृषभानलली ने फिर इनकार कर दिया। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो श्रीजी ने बहुत ही सुंदर उत्तर दिया कि एक बार जो मेरे चरणों से लग जाता है, फिर मैं उसे कभी अलग नहीं करती, कभी दूर नहीं करती, कभी नहीं छोड़ती, कभी नहीं बिसराती। इस कारण जो भी मनुष्य श्रद्धा प्रेमभाव से श्रीराधा नाम श्रवण व चिन्तन मनन करता है, उसके हृदय में प्रेम का प्राकट्य होकर श्रीराधा रानी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
राधाष्टमी पर ब्रजमंडल में आस्था का अद्भुत संगम
श्रीजी, लाडली जी, बृषभानु दुलारी आदि नामों से पूजित वन्दित श्रीकृष्णप्रिया राधा रानी का प्राकट्य उत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को उसी श्रद्धाभक्ति व आनंदोल्लास से मनाया जाता है जितना कि श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण का अवतरण हुआ था और शुक्ल पक्ष की अष्टमी को उनकी प्राणवल्लभा श्री राधारानी का। राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित बरसाने के रावल ग्राम में हुआ था। राधाष्टमी पर पूरे ब्रज में आस्था का अद्भुत संगम दिखायी देता है। मथुरा से बरसाने तक पूरा ब्रजमंडल ब्रज की महारानी के प्राकट्योत्सव पर बधाई गायन गूंज उठता है। राधे-राधे के जयघोष के साथ बरसाना में बृषभानु दुलारी का जन्मोत्सव पंचामृत अभिषेक, आरती, डोला, फूल बंगला और छप्पन भोग लगाकर मनाया जाता है। राधाकुंड में प्राचीन रघुनाथ दास गद्दी की ओर से गोपी नाथ मंदिर, निताई धाम, राधा काला चांद मंदिर, राधा गोविंद मंदिर आदि में भी राधारानी का जन्म अभिषेक किया जाता है। तीर्थनगरी वृंदावन के विभिन्न मंदिरों एवं आश्रमों में भी राधारानी के जन्मोत्सव की भारी धूम दिखायी देती है। राधावल्लभ संप्रदाय, गौड़ीय संप्रदाय समेत सभी संप्रदायों में राधारानी के जन्मोत्सव पर भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है। इस वर्ष राधाष्टमी का यह उत्सव पर्व आज (23 सितंबर) है।
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