राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि आज हमारे देश की महिलाएं हर क्षेत्र में प्रगति कर रही हैं।
इन दिनों पूरे देश में महिला सम्मेलन हो रहे हैं। अगस्त माह से शुरू हुए ये सम्मेलन जनवरी, 2024 तक होंगे। ऐसे कुल 400 महिला सम्मेलन करने का लक्ष्य है। अब तक 65 सम्मेलन हो चुके हैं। इनमें लगभग 1,25,000 से अधिक महिलाओं की सहभागिता रही है। ‘महिला समन्वय’ के तत्वावधान में होने वाले इन सम्मेलनों के नाम अलग-अलग प्रदेशों में भिन्न-भिन्न हैं। कहीं इनका नाम नारी शक्ति संगम है, कहीं मातृशक्ति संगम तो कहीं संवर्धिनी। ‘महिला समन्वय’ की अखिल भारतीय सह संयोजिका भाग्यश्री साठये के अनुसार, ‘‘भले ही इन सम्मेलनों के नाम अलग-अलग हैं, लेकिन इनका उद्देश्य एक है। इनके माध्यम से समाज और देश के विकास में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाना और महिलाओं के प्रति जो भारतीय दृष्टि है, उसे समाज के निचले स्तर तक पहुंचाना।’’ उन्होंने यह भी बताया, ‘‘महिला सम्मेलनों में मुख्य रूप से तीन विषय होते हैं- पहला, भारतीय चिंतन में महिला। दूसरा, स्थानीय महिला प्रश्न और करणीय कार्य। इस पर विस्तृत चर्चा होती है। तीसरा, भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका।’’
एक ऐसा ही सम्मेलन 3 सितंबर को दिल्ली विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ। इसे संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि आज हमारे देश की महिलाएं हर क्षेत्र में प्रगति कर रही हैं। महिलाएं राष्ट्रपति, मंत्री, मुख्यमंत्री हैं। महिला खिलाड़ी देश के लिए पदक जीत रही हैं। महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं। उन्होंने कहा कि भारत के बारे में यह प्रसारित किया जाता है कि यहां महिलाओं को कोई अधिकार नहीं है। यह ठीक नहीं है। भारत में नारी को सदैव सम्मान दिया गया है। ऋग्वेद में 27 महिला ऋषियों ने ऋचाएं दी हैं। इंद्राणी, अपाला, सूर्या, घोषा, सावित्री, उर्वशी, दक्षिणा, यमी, विश्ववारा जैसी ऋषिकाएं हुई हैं। प्रसिद्ध नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने कहा कि नारी शक्ति की ऊर्जा से ही सृष्टि बनी है। समापन सत्र की मुख्य वक्ता थीं सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की राजदूत हैं महिलाएं। डॉ. बी.आर. आंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. अनू सिंह लाथर ने कहा कि महिलाएं स्वयं ऊर्जावान हैं, बस उन्हें केवल अवसर देने की आवश्यकता है।
इससे पहले 27 अगस्त को वसंत कुंज (नई दिल्ली) में नारी शक्ति संगम आयोजित हुआ। इस अवसर पर भाग्यश्री साठेय ने कहा कि महिलाओं को सर्वप्रथम अपनी सामर्थ्य व क्षमता को पहचानना है तथा सही दिशा में अग्रसर होना है। उन्होंने कहा कि कुरीतियों और आडंबरों में समयानुकूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। मुख्य अतिथि डॉ. पंकज मित्तल ने अपने वक्तव्य में वैदिक काल से आधुनिक काल तक की नारियों की विशेषता बताई। मुख्य वक्ता और केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा की उप कुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि भारत में नारीवाद जैसी परिकल्पना कभी नहीं रही। हम सभी भारतीय जीवन पद्धति व भारतीय जीवन मूल्यों में विश्वास रखते हैं।
भाग्यश्री साठये ने कहा –
पश्चिमी देशों में बहुत समय तक यह बहस चली कि स्त्री में आत्मा है या नहीं। इस भेदभाव के कारण स्त्री आंदोलन हुए, जिनमें बराबरी की मांग की गई। इस्लामिक आक्रमणों के दौरान भारतीय समाज में भी कई विकृतियां आईं। सती प्रथा, बाल विवाह, रात में विवाह, पर्दा प्रथा, कन्या भ्रूणहत्या आदि इसी के परिणाम हैं, लेकिन अब समय बदल चुका है। स्त्रियां हर क्षेत्र में बड़ी भूमिकाएं निभा रही हैं।
जयपुर में महिला महासम्मेलन
गत दिनों जयपुर में ‘संवर्धिनी’ नाम से महिला महासम्मेलन का आयोजन हुआ। इसमें 2,000 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया। भाग्यश्री साठये ने कहा कि पश्चिमी देशों में बहुत समय तक यह बहस चली कि स्त्री में आत्मा है या नहीं। इस भेदभाव के कारण स्त्री आंदोलन हुए, जिनमें बराबरी की मांग की गई। इस्लामिक आक्रमणों के दौरान भारतीय समाज में भी कई विकृतियां आईं। सती प्रथा, बाल विवाह, रात में विवाह, पर्दा प्रथा, कन्या भ्रूणहत्या आदि इसी के परिणाम हैं, लेकिन अब समय बदल चुका है। स्त्रियां हर क्षेत्र में बड़ी भूमिकाएं निभा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी सुमित्रा शर्मा ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की।
इन सम्मेलनों के लिए महिला समन्वय की ओर से 10 श्रेणियां निश्चित की गई हैं। पहली श्रेणी में स्वयंसेवी संस्थाएं चलाने वाली महिलाओं को रखा गया है। दूसरी श्रेणी में सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं में कार्यरत महिलाएं हैं। तीसरी श्रेणी में मीडिया जगत की महिलाएं हैं। चौथी श्रेणी में वे महिलाएं हैं, जो विभिन्न जाति-बिरादरी से जुड़ी संस्थाओं में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। पांचवीं श्रेणी में लॉयंस क्लब, रोटरी क्लब और इनरविल क्लब से जुड़ीं महिलाओं को रखा गया है। छठी श्रेणी में शिक्षा और प्रशासनिक सेवा में कार्यरत महिलाएं शामिल हैं। सातवीं में ग्राम पंचायत में सक्रिय रहने वालीं महिलाओं को स्थान दिया गया है। आठवीं में विभिन्न जाति और जनजाति की प्रमुख महिलाएं हैं। नौवीं में वकील, डॉक्टर, वैज्ञानिक, खेल, व्यवसाय आदि से जुड़ीं महिलाएं हैं। दसवीं श्रेणी में समाज पर विशेष प्रभाव डालने वाली लेखिका, पत्रकार और अन्य प्रभावशाली महिलाओं को रखा गया है।
‘‘भले ही इन सम्मेलनों के नाम अलग-अलग हैं, लेकिन इनका उद्देश्य एक है। इनके माध्यम से समाज और देश के विकास में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाना और महिलाओं के प्रति जो भारतीय दृष्टि है, उसे समाज के निचले स्तर तक पहुंचाना।’’
-भाग्यश्री साठये, अखिल भारतीय सह संयोजिका
बिहार में मातृशक्ति सम्मेलन
समाज निर्माण में महिलाओं की भूमिका का स्मरण दिलाने के लिए बिहार में 16 मातृशक्ति सम्मेलन प्रस्तावित हैं। पहला सम्मेलन 6 अगस्त को पटना में, दूसरा सम्मेलन सहरसा में और तीसरा सम्मेलन 27 अगस्त को सासाराम में हुआ। महिला समन्वय की बिहार प्रमुख डॉ. पूनम सिंह के अनुसार सम्मेलनों में महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। पटना सम्मेलन में महिला समन्वय की अखिल भारतीय संयोजक मीनाक्षी ताई पेशवा ने कहा कि भारतीय नारी प्रारंभ से ही सामाजिक कार्यों में आगे रही है। राष्ट्र सेविका समिति की सह कार्यवाहिका सुनीता हल्देकर ने कहा कि आज आवश्यकता है महिलाओं के प्रति समाज का दृष्टिकोण और रूढ़िवादी विचार बदले।
हर सम्मेलन में एक प्रदर्शनी भी लगती है। इसमें उस राज्य की प्रेरक महिलाओं के बारे में बताया जाता है। हर सम्मेलन में कुटुंब प्रबोधन और महिलाओं से जुड़ीं पुस्तकें होती हैं। सम्मेलन में एक पुस्तिका भी वितरित की जाती है। इसमें महिलाओं से जुड़े कानूनों की जानकारी के अलावा महिलाओं से जुड़ीं सरकारी योजनाएं, कुछ महिला विभिूतियों के विचार, महिलाओं की समस्याएं और 80 ऐसे कार्यों की सूची भी शामिल है, जिसे कोई भी कर सकता है।
इन सम्मेलनों के दौरान होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में महिलाओं की प्रतिभा की झलक मिलती है।
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