विवेक शुक्ला
देश की नई संसद भवन की इमारत में मंगलवार 19 सितंबर से कामकाज शुरू हो गया। अब देश की जनता की किस्मत इसमें ही लिखी जायेगी। इस तरह से गुजरे लगभग 97 साल पहले जिस संसद भवन ( तब काउंसिल हाउस) का 18 जनवरी 1927 को भारत में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड इरविन ने उदघाटन किया था वह इतिहास के पन्नों में चली गई। एडवर्ड लुटियंस और हरबर्ट बेकर के डिजाइन की हुई संसद भवन की इमारत देश की आजादी से पहले और बाद में ना जाने कितने खास लम्हों की गवाह रही। इधर ना जाने कितनी सारगर्भित चर्चांयें हुईं और सधे हुए भाषण दिये गये। बीते सालों- दशकों के दौरान पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर राम मनोहर लोहिया के रूप में ढेरों प्रखर वक्ताओं के भाषण संसद भवन में हुये। ये सब करिश्माई नेता थे और ओजस्वी वक्ता थे। विरोधियों से भी सम्मान पाते थे। ये सभी जनता से संवाद कर लेते थे।
इसी संसद में कई नेताओं को सुनने के लिये दर्शक दीर्घा से लेकर पत्रकार दीर्घा भरी हुई होती थी।याद रखें कि शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल,1929 इधर ही बम फेंका था। इसी में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरपरस्ती में बनी अंतरिम सरकार में उनके वित्त मंत्री लियाकत अली खान ने 2 फरवरी,1946 को अंतरिम बजट पेश किया। वे आगे चलकर पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री भी बने।
-पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14-15 अगस्त, 1947 की रात को इसी संसद भवन में आयोजित हुए एक गरिमामय कार्यक्रम में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इस अवसर पर उन्होंने अपना यादगार भाषण दिया था, जिसे ट्रिस्ट विद डेस्टिनी के नाम से याद किया जाता है। यह भाषा बीसवीं शताब्दी के महानतम भाषणों में से एक है।
नई-पुरानी संसद को बनाने वाले
देश को नई संसद कल मिल जायेगी। नई संसद भवन को खड़ा करने में दर्जनों आर्किटेक्ट,इंजीनियरों और हजारों मजदूरों ने दिन-रात एक किये। सरकार ने टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को ठेका दिया था कि वह नई संसद को खड़ा करे। अगर बात पहली संसद की करें तो उसके ठेकेदार सिंध के लछमन दास ने नाम के सज्जन थे। तब लगभग सभी मजदूर राजस्थान के जयपुर,जोधपुर,भीलवाड़ा वगैरह से आये थे। ये सपत्नीक आए थे। इन्हें शुरूआती दिनों में पहाड़ी धीरज में रहने की जगह मिली थी। खुशवंत सिंह बताते थे कि इन राजस्थानी मजदूरों को बागड़ी कहा जाता था। इन्हें शुरूआती दिनों में पहाड़ी धीरज में रहने की जगह मिली थी। ये सब अपने गांव-देहातों से पैदल ही दिल्ली आए थे। इन सीधे-सरल मजदूरों को रोज एक रुपए और महिला श्रमिकों को अठन्नी मजदूरी के लिए मिलते थे। अगर मजदूर मुख्यरूप से राजस्थान से यहां पर आए थे,तो संगतराश आगरा और मिर्जापुर से थे। कुछ भरतपुर से भी थे। ये सब पत्थरों पर नक्काशी और जालियों को बनाने के काम करने में उस्ताद थे।
बहरहाल,जिन्होंने पहली संसद भवन की इमारत को अपने हाथों से खड़ा किया था उनके बच्चे अब सामाजिक-आर्थिक रूप से बहुत बेहतर स्थिति में हैं। वे मंत्री तक बने। दिल्ली में मदन लाल खुराना की सरकार में सुरेन्द्र रातावाल मंत्री थे। उनके दादा और कई दूसरे संबंधियों ने संसद भवन को बनाया था। बेशक, जिन्होंने नई संसद को खड़ा किया है उनकी आने वाली पीढ़ियां भी अपने हिस्से का आसमान छू लेंगी। ये तय है।
संसद भवन, 8 नवंबर,1962
अब पुराने हो रहे संसद भवन के लिये 8 नवंबर,1962 अहम दिन था। उस दिन संसद में उस प्रस्ताव को रखा गया था जिसमें चीन से देश के उस हिस्से (अक्सईचिन) को वापस लेने के संबंध में जिसपर चीन ने 1962 की जंग के बाद कब्जा लिया था। प्रस्ताव में कहा गया था- “ये सदन पूरे विश्वास के साथ भारतीय जनता के संकल्प को दोहराना चाहता है कि भारत की पवित्र भूमि पर से आक्रमणकारी को खदेड़ दिया जाएगा। इस बाबत भले ही कितना लंबा और कठोर संघर्ष करना पड़े।“ सदन ने इस प्रस्ताव को 14 नवंबर को पारित कर दिया। बहस में 165 सदस्यों ने भाग लिया। सभी ने चीन को अक्सईचिन से खदेड़ने की वकालत की। बहस बेहद भावुक हुई।
संसद में ललकारा पाकिस्तान को
जब देश की पहली संसद भवन का इतिहास लिखा जायेगा तब उसमें 22 फरवरी,1994 का अवश्य उल्लेख होगा। उस दिन संसद ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करके पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर अपना हक जताते हुए कहा था कि वह भारत का अटूट अंग है। पाकिस्तान को उस भाग को छोड़ना होगा जिस पर उसने कब्जा जमाया हुआ है।
संसद के प्रस्ताव का संक्षिप्त अंश कुछ इस तरह से है-
ये सदन भारत की जनता की ओर से
घोषणा करता है-
(1) जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। (2) भारत में इस बात की क्षमता और संकल्प है कि वह उन नापाक इरादों का मुंहतोड़ जवाब दे जो देश की एकता,प्रभुसत्ता और क्षेत्रियअंखडता केखिलाफ हो।
संसद पर हमला
भाररतीय संसदीय इतिहास के लिये 13 दिसंबर, 2001 की तारीख भयानक थी। तब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। उस मनहूस दिन भी संसद में कई अहम मुद्दों पर चर्चा होनी थी। पर उससे पहले ही भारत के दुश्मनों ने संसद भवन में दाखिल होकर ताबड़तोड़ गोलीबारी चालू कर दी। उनकी गोलीबारी में सबसे पहले जो शहीद हुईं थीं वह कमलेश कुमारी यादव थीं। कमलेश कुमारी की ड्यूटी गेट नंबर 1 पर थी। उसने देखा कि एक एंबेसेडर कार डीएल3सीजे1527 वहां से बिना उनकी अनुमति लिए संसद में तेजी से चली गई। कमलेश कुमारी को दाल में काला नजर आया। वो भागकर अपने गेट को बंद करने लगीं और फिर उन्होंने बाकी गेटों पर तैनात अपने साथियों को सतर्क भी कर दिया। इसी दौरान चेहरे पर नकाब ओढ़े आतंकियों ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। उन्हें 11 गोलियां लगीं। यह 11.50 बजे की घटना है। कमलेश कुमारी ने भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए अपने प्राणों का नजराना पेश कर दिया। अगर कमलेश कुमारी ने तुरंत अपने सहयोगियों को अलर्ट ना किया होता तो आतंकियों को संसद भवन में बम विस्फोट करने का मौका मिल जाता।
गोल मार्केट में रहने वाले वो बलिदानी
मातबर सिंह नेगी संसद भवन के गेट पर तैनात थे। वहां से कुछ देर बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत संसद भवन में आने वाले थे। कहने वाले कहते हैं कि आतंकवादियों के निशाने पर उपराष्ट्रपति थे। नेगी गोलियां बरसाई गईं। घायल नेगी को एम्स ले जाया गया था। संसद पर हमले में राज्यसभा सचिवालय के सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव, मातबर सिंह नेगी, केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) की कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी, दिल्ली पुलिस के उप निरीक्षक रामपाल और नानक चंद, दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल ओम प्रकाश, बिजेन्दर सिंह और घनश्याम तथा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के एक माली देशराय शहीद हो गये थे। कृतज्ञ राष्ट्र इन शहीदों को सदैव याद रखेगा। इन्होंने भारत विरोधी ताकतों की कोशिशों को नाकाम कर दिया था।
यह लेखक भी उस दिन संसद भवन में था जब वहां पर हमला हुआ था। संसद भवन परिसर में हो रही गोली बारी की आवाज से सारा इलाका दहल गया था। वहां पर मौजूद सब लोग भगवान का नाम ले रहे थे। बेशक, सुरक्षा कर्मियों की वजह से ही आतंकियों के इरादे नाकाम हुए थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के विशेष सत्र के शुरू होने के मौक पर सही कहा कि आर्टिकल 370 समेत कई ऐसे कानून इस पुरानी संसद भवन की इमारत में पास हुए, जिन्होंने देश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में बड़े बदलाव किये।
पीएम मोदी ने कहा, “सदन हमेशा गर्व से कहेगा कि (धारा 370 को हटाना) उसके कारण संभव हुआ… जीएसटी भी यहीं पारित हुआ… ‘वन रैंक-वन पेंशन’ देखी गई (और) आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को बिना किसी विवाद के पहली बार सफलतापूर्वक अनुमति दी गई।
बहरहाल, अब देश को नई संसद भवन की इमारत मिल गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि इसमें गंभीर और लोक हित के विषयों पर चर्चाएं होती रहेंगी। पहली संसद भवन में बहसों के दौरान खूब हल्ला होने लगा था। अनेक बार स्थिति अराजक हो जाती थी। नई संसद में वाद,विवाद और संवाद के लिये सबको खूब मौका मिलना चाहिये।नई संसद भवन के उदघाटन के बाद भी पहली संसद भवन का महत्व का कम नहीं होगा। अब वहां पर संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव है। सच में स्वतंत्र भारत के अहम क्षणों से करीब से जुड़ी है यह इमारत। इसका महत्व तो बना ही रहेगा।
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