देहरादून। गणपति उत्सव के दिन हैं, लेकिन देश में गजराज संकट में हैं। पिछले 13 सालों में भारत के जंगलों में 1357 हाथियों के मौत की खबर चिंता पैदा करने वाली है। ये जानकारी एक आरटीआई में केंद्रीय वन मंत्रालय ने दी है।
हल्द्वानी निवासी हेमंत गोनिया को प्रोजेक्ट एलिफेंट के अधिकारी डॉ मुथामिज सेल्विन ने हाथियों की मौत के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि देश में सबसे ज्यादा हाथियों की मौत बिजली के करंट से हुई है। 898 हाथी पिछले 13 सालों में बिजली के तारों में उलझ कर मौत की नींद सो गए। हाथियों की मौत का दूसरा बड़ा कारण ट्रेन से कटकर होना बताया गया है, जिनकी संख्या 228 बताई गई है, इनमें 27 की संख्या उत्तराखंड की है।
आरटीआई में ये भी जानकारी दी गई है कि 191 हाथियों की हत्या शिकारियों द्वारा की गई, जिसमें उनका मकसद हाथी दांत की चोरी करना रहता है, इनमें सभी नर हाथी है। इसके अलावा 40 हाथी जहर द्वारा मारे गए हैं। पूरे देश में वर्तमान में हाथियों की संख्या 29964 है। जिनमें दक्षिण भारत के राज्यों में 14612, नॉर्थ ईस्ट में 10139 हाथी है, जबकि यूपी, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड में 2085 हाथियों की संख्या है।
हाथियों की ये मौत संख्या अस्वाभाविक है, जबकि प्राकृतिक रूप से जो मौत की संख्या है वो अलग है। एक हाथी की उम्र औसतन करीब 75 साल की होती है। वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ शाह बिलाल बताते हैं कि हाथी की सबसे ज्यादा संवेदनशील सूंड होती है और वो अक्सर बिजली की तारों में उलझ जाती है। सूंड के कटते ही हाथी की मौत हो जाती है। हाथी मार्ग के रास्ते में बढ़ रही आबादी की गतिविधियां विकास कार्यों बिजली की नई लाइन डालने से हाथियों का जीवन खतरे में है।
उत्तराखंड में फॉरेस्ट के चीफ कंजरवेटर डॉ पराग मधुकर धकाते बताते हैं कि जंगलों से गुजर रही रेल लाइन का विद्युतीकरण और ट्रेन की जंगल में स्पीड तेज रहने से भी हाथियों की टक्कर से मौतें हो रही हैं, जिसके लिए हर हाल में कोई न कोई उपाय करने होंगे।
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