यूके से एक बहुत ही चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आ रही है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि वहां की 90% महिला सर्जन के साथ यौन दुराचार हुआ है। बीबीसी ने एक स्टडी का आयोजन किया, जिसमें कई महिला सर्जन का यह कहना है कि उनके साथ यौन शोषण, यौन दुराचार हुआ है और कई महिला सर्जन ने बलात्कार के भी आरोप लगाए हैं। बीबीसी न्यूज़ ने कई ऐसी महिलाओं से बात की जिनके साथ उस समय ऑपरेटिंग थिएटर में तब यौन शोषण हुआ, जब सर्जरी हो रही थी।
जितनी चौंकाने वाली यह रिपोर्ट है उतनी ही चौंकाने वाला उस स्थान का उल्लेख है, जहां पर यह घटनाएं हुई हैं। क्या कोई यह कल्पना भी कर सकता है जब कोई व्यक्ति अपने जीवन एवं मृत्यु के लिए लड़ाई लड़ रहा होगा, उसी समय कोई महिला वहां पर प्रताड़ित हो रही होगी? यह कल्पना से भी परे की सोच है, स्तब्ध करने वाली यह खबर है। रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन ने इस रिपोर्ट को बहुत ही हैरान करने वाली कहा है।
यह वास्तव में स्तब्धकारी है, क्योंकि भारत में डॉक्टर को भगवान का स्थान प्रदान किया गया है क्योंक वह जीवन देने का कार्य करते हैं। परन्तु क्या कोई व्यक्ति जान बचाते समय दूसरी लड़की के साथ हैवान हो सकता है। मगर बीबीसी की यह रिपोर्ट माने तो यह होता है और यह हुआ है यूके में महिला डॉक्टर्स के साथ। यह उत्पीड़न कई तरीके से हुआ है, महिला वक्ष को लगातार घूरना, महिलाओं के सामने हस्तमैथुन करना एवं कई को उनके काम में आगे बढ़ने के लिए सेक्स का सहारा लेने के लिए लुभाया गया।
यह शोध एक्सेटर विश्वविद्यालय, सरे विश्वविद्यालय और सर्जरी में यौन दुराचार पर वर्किंग पार्टी द्वारा किया गया और इसके विश्लेषण को बीबीसी ने साझा किया है। इस पूरे विश्लेषण के अनुसार इस शोध में भाग लेने वाली लगभग दो तिहाई महिला सर्जन का कहना था कि वह यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं और कुछ का कहना था कि पिछले पांच वर्षों में वह सहकर्मियों द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं। और चूंकि उनका करियर न खराब हो जाए, इसलिए उन्होंने इन सब मामलों की रिपोर्ट भी नहीं की।
जहां यह रिपोर्ट बीबीसी में प्रकाशित हुई है, तो वहीं इतने महत्वपूर्ण मामले पर विमर्श खड़ा करने वाले की चुप्पी हैरान करने वाली है। कल यह रिपोर्ट जब से प्रकाशित हुई है, विमर्श में चुप्पी है। महिला सर्जन बता रही हैं कि पसीना आने पर उनके वरिष्ठ पुरुष सर्जन ने उनके वक्षों में सिर धंसा दिया गया और वह अपनी भौहें पोंछ रहा था। जूडिथ के साथ जब यह घटना दोबारा हुई तो उन्होंने अपने वरिष्ठ को तौलिया दिया, तो उनके वरिष्ठ का कहना था कि नहीं इसी में मजा है! और यह सब ऑपरेशन थिएटर के बीच हो रहा था, मगर इस रिपोर्ट के अनुसार यह यौन उत्पीड़न और यौन शोषण अस्पताल की सीमा से परे था।
कई महिलाओं ने अपना नाम नहीं बताया। एक महिला ने एक ऐसे यौन सम्बन्ध के विषय में बताया जिसे हालांकि बलात्कार नहीं कहा जा सकता है, परन्तु हां यह सहमती से सेक्स नहीं था। यह वरिष्ठ द्वारा प्रभावित किए जाने जैसा था। यह एक ट्रेनी और कंसल्टेंट के बीच बना असहज सम्बन्ध था। लड़की का कहना था कि ऐसा नहीं था कि उसे वह सम्बन्ध चाहिए थे, मगर वह कुछ कर नहीं सकी। इस घटना ने उस लड़की पर बहुत गहरा मानसिक असर डाला। इस घटना ने पहले उसे भावनात्मक रूप से सुन्न कर दिया और बहुत वर्षों तक उसके दिमाग में दुस्वप्नों की तरह इस घटना की यादें घूमती रहीं और तब भी जब वह एक मरीज का ऑपरेशन करने की तैयारी कर रही थी।
इस रिपोर्ट में पंजीकृत सर्जन को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। और 1,434 सर्जन ने इसमें भाग लिया था, जिनमें
से आधी महिलाएं थीं। इस रिपोर्ट के अनुसार:
- 63% महिलाएं सहकर्मियों के यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं
- 30% महिलाओं का किसी सहकर्मी द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था
- 11% महिलाओं ने कैरियर के अवसरों से संबंधित जबरन शारीरिक संपर्क की सूचना दी
बलात्कार की कम से कम 11 घटनाएं दर्ज की गईं - 90% महिलाओं और 81% पुरुषों ने किसी न किसी रूप में यौन दुराचार देखा है
जबकि रिपोर्ट से पता चलता है कि पुरुष भी इस तरह के कुछ व्यवहार के अधीन हैं (24% का यौन उत्पीड़न किया गया था), यह निष्कर्ष निकालता है कि पुरुष और महिला सर्जन “अलग-अलग वास्तविकताओं को जी रहे हैं।” भारत सहित तमाम एशियाई देशों में महिला स्वतंत्रता और सुरक्षा को कठघरे में खड़ा करने वाला पश्चिमी मीडिया गोरे लोगों द्वारा महिलाओं पर किए गए यौन शोषण पर चुप्पी साध जाता है। यह बहुत ही हैरान करने वाला तथ्य है कि जब बीबीसी जैसे समूह ने इस रिपोर्ट की फाइंडिंग को प्रकाश्ति किया है फिर भी विमर्श में यह रिपोर्टं नहीं आ पा रही है और ऐसा लग रहा है जैसे यह सामान्य घटना हो।
हालांकि ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन ने इस खोज को भयावह बताया है। बीएमए समानता प्रमुख डॉ। लतीफा पटेल ने कहा, “यह भयावह है कि सर्जरी में महिलाओं को काम पर और अक्सर जब वे मरीजों की देखभाल करने की कोशिश कर रही होती हैं, तब उनके सहकर्मियों द्वारा यौन उत्पीड़न और यौन दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है। इसका असर आने वाले वर्षों में उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं करियर पर पड़ेगा।”
ऑस्ट्रेलिया की महिला सांसद ने संसद के भीतर यौन सहकर्मी द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया
ऐसा नहीं है कि कथित रूप से विकसित एवं कल्चर्ड कहे जाने वाले यूके में ही महिलाओं के साथ हुए यौन उत्पीड़न पर चुप्पी साधी जाती है या भारत जैसे देशों में उन उत्पीड़नों पर बात नहीं होती है, ऑस्ट्रेलिया में तो सांसद ने अपने सहकर्मी पर संसद भवन में ही अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न का भयावह अनुभव बताया है, परन्तु फिर भी एक दम घोंटू चुप्पी है। ऑस्ट्रेलिया की सांसद एंड्रूज ने यह आरोप लगाया कि एक अज्ञात पुरुष सहकर्मी उनकी गर्दन के पास आकर साँस लिया करता था और उसने संसद के निचले सदन में बहुत ही आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया की संसद में इस प्रकार के यौन दुर्व्यवहार को लेकर बहुत शिकायतें आ रही थीं और फरवरी में ही सांसदों एवं कर्मियों के लिए नई आचरण संहिता को लेकर सहमति बनी थी। ऑस्ट्रेलिया में कई महिला सांसद यौन दुर्व्यवहार को लेकर आरोप लगा चुकी हैं। परन्तु अंग्रेजी मीडिया जितना मुखर भारत जैसे देशों को बदनाम करने के लिए होता है, उतना ही शांत वह उन मामलों को लेकर होता है, जिससे उनके कथित सभ्य देशों की महिलाओं को लेकर दूसरी छवि प्रदर्शित होती है। यदि ख़बरें आती भी हैं तो मात्र सूचना तक सीमित हो जाती हैं, परन्तु विमर्श जो उत्पन्न होना चाहिए, वह नहीं होता है। जहां पूरे विश्व में कल्चर के ठेकेदार बने यूके में डॉक्टर के पवित्र पेशे को लेकर यौन उत्पीड़न के मामले दुर्भाग्यपूर्ण हैं तो वहीं ऑस्ट्रेलिया की संसद में सांसदों के द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत करना तो और भी भयावह है क्योंकि यह बताता है कि यदि किसी देश में संसद में बैठी महिलाएं ही सुरक्षित नहीं हैं तो शेष देश में क्या होगा? परन्तु यह विमर्श में नहीं आता या कहें कथित श्रेष्ठता का लबादा ओढ़े अंग्रेजी मीडिया इन असहज मुद्दों पर विमर्श करने से डरती है क्योंकि उसे डर है कि इतने वर्षों से बनाई गयी छवि को क्षति न पहुँच जाए! बहरहाल यह दोनों ही मामले एक व्यापक विमर्श की मांग करते ही हैं!
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