श्रीकृष्ण से जुड़ा किशनगंज देखते-देखते हो गया मुस्लिम-बहुल
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होम भारत बिहार

श्रीकृष्ण से जुड़ा किशनगंज देखते-देखते हो गया मुस्लिम-बहुल

by संजीव कुमार
Sep 7, 2023, 12:14 pm IST
in बिहार
ठाकुरगंज स्थित भीमतकिया पहाड़

ठाकुरगंज स्थित भीमतकिया पहाड़

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आज सारा विश्व श्रीकृष्ण भगवान का जन्मोत्सव मना रहा है। ऐसे में एक जिले का चर्चा करना अनिवार्य हो जाता है जो महाभारतकालीन है।  किशनगंज बिहार का एकमात्र जिला है, जो श्रीकृष्ण से संबंधित है। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अज्ञातवास के पूर्व  भेंटकर उन्हें शुभेच्छा दी थी। आज वही किशनगंज जेहादियों की प्रयोगभूमि बन चुका है। बिहार का यह जिला मुस्लिम बहुल है। कभी ओवैसी यहां हिंदू भावनाओं को चुनौती देते हैं तो कभी शरजील इमाम इसके माध्यम से देश को बांटने की धमकी देता है।  

बिहार में कुल 38 जिले हैं। इसमें 2 जिला त्रेता और द्वापरकालीन है। सीतामढ़ी का नामकरण जगज्जननी सीता माता से जुड़ा है। यहीं माता सीता का जन्म हुआ था। दूसरा जिला योगेश्वर श्री कृष्ण के नाम पर किशनगंज है। मुजफ्फरपुर जिला से 11 दिसंबर, 1972 को अलग होकर सीतामढ़ी जिला अस्तित्व में आया।  2 अक्टूबर, 1973 को गोपालगंज जिला और 14 जनवरी, 1990 को किशनगंज स्वतंत्र जिला बना।

इतिहास के कई पन्नों को किशनगंज अपने में समेटे हुए है। इस स्थान का संबंध महाभारत, बौद्ध और पाल राजाओं से जुड़ा है। सूर्यवंशियों का शासन होने के कारण इसे सूर्यापुर भी कहा जाता था। यहां की स्थानीय बोली सुरजापुरी ही है।

जिले के ठाकुरगंज और टेढ़ागाछ प्रखंड में महाभारतकालीन कई अवशेष हैं, जो उचित देखभाल के कारण समाप्ति के कगार पर हैं।  ठाकुरगंज के बारे में कहा जाता है कि उस समय राजा विराट का यह क्षेत्र था। भीम स्त्री वेश में यहां रसोई बनाते थे। इसलिए इस स्थान का नाम ठाकुर (भोजन बनानेवाला, रसोइया) गंज है।  राजा विराट से जुड़ा विराटनगर जिला यहां से कुछ दूरी पर है। यहां साग डाला और भात डाला है। द्रौपदी यहां अपनी रसोई बनाती थी।

ठाकुरगंज स्थित भातढाला पोखर
ठाकुरगंज स्थित भातढाला पोखर

ठाकुरगंज में  महाभारत काल की कई धरोहरें हैं। इनमें से एक जगह भीम तकिया भी है। इस तकियानुमा गोल टीले के बारे में लोग बताते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडव इसी टीले पर सिर रखकर सोते थे। यहीं के भात डाला पोखर में पांडव स्नान करते थे और पास ही द्रौपदी चावल पकाती थीं। इसलिए इसका नाम भात डाला पड़ा। यह स्थान ठाकुरगंज से पश्चिम रेलवे लाईन के समीप है। यहां साग डाला नामक स्थान भी है, जहां द्रौपदी पांडवों के लिए साग बनाती थी।

*पटेसरी पंचायत के दूधमंजर* स्थित खीर समुद्र के बारे में मान्यता है कि यहां अर्जुन ने अपने तीर से खीर की नदी बनाई थी। *बंदर झूला पंचायत* अंतर्गत कन्हैया जी टापू पर भी पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय बिताया था। खुदाई के समय इस यहां के बेजूगढ़ गांव से भगवान विष्णु और सूर्यदेव की मनोरम प्रतिमा प्राप्त हुई थी। ठाकुरगंज के पास नेपाल में कीचक वध स्थल है, जहां भीम ने कीचक का वध किया था। आज भी यहां कीचक वध का मेला लगता है।

*टेढ़ागाछ में वेणुगढ़ का किला* : जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर टेढ़ागाछ प्रखंड स्थित नेपाल की तराई में राजा वेणु से जुड़ा 180 एकड़ का वेणुगढ़ किला है। यह कमला और रतुआ नदी के मध्य अवस्थित है। महाभारत काल में पांडवों ने यहां गुप्तवास किया था। यहां की ईटें व गढ़ के भग्नावशेष लोगों के लिए आस्था का केंद्र हैं। मान्यता है कि अदृश्य आत्माएं आज भी गढ़ की रखवाली करती हैं। गढ़ के पूरब दिशा में विशाल सूखे तालाब की मौजूदगी इसका आभास कराती है। यहां के लोग वेणुराजा को ग्रामीण देवता के रूप में सदियों से मान्यता देते आए हैं। प्रत्येक वर्ष वैशाखी पर राजा वेणु के मंदिर एवं गढ़ में विराट मेले का आयोजन होता है। दुर्भाग्य है कि पुरातत्व विभाग द्वारा इस पर  कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

*कोचाधामन में सूर्य की है पालकालीन प्रतिमा* : कोचाधामन प्रखंड के बड़ीजान गांव स्थित सूर्य की प्रतिमा लोगों की आस्था का केंद्र है।  62 वर्ष पूर्व 1961 में गांव में उत्खनन के क्रम में भगवान सूर्य की आदमकद प्रतिमा और कई भग्नावशेष प्राप्त हुए थे। इतिहासकार इसे पालकालीन बताते हैं। ग्रामीण इस प्रतिमा को पीपल के वृक्ष के नीचे रखकर इसकी पूजा-अर्चना कर रहे हैं। सात घोडों पर सवार भगवान सूर्य की इस आदमकद प्रतिमा में काफी चमक है। माना जाता है कि यह प्रतिमा आठवीं शताब्दी के पाल वंश काल की है। इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग के अधिकारियों द्वारा 2002-03 में की गई थी।

किशनगंज इतिहास के कई पन्नों को समेटे हुए है।  महाभारत काल में इस जिले का नाम ठाकुरगंज था।  इस जिले का प्राचीन नाम नेपालगढ़ भी रहा था।  फिर मुगलों ने इस स्थान पर आक्रमण किया व मुहम्मद रेज़ा ने कब्ज़ा कर लिया था, तत्पश्चात इस स्थान का नाम आलमगंज रख दिया गया था। स्वाधीनता आंदोलन के समय भी किशनगंज मुस्लिम बहुल नहीं था। बिहार की जनसंख्यायिकी पर शोध पूर्ण पुस्तक लिखने वाले हरेंद्र प्रताप पांडेय बताते हैं कि आजादी के बाद इस स्थान की जनसंख्या में अजीब बदलाव आया। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण किशनगंज में अब 70 प्रतिशत से अधिक आबादी मुस्लिमों की हो गई है।

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