डीएमके के मंत्री और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया है। उन्होंने सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया से की और कहा कि सनातन को खत्म करेंगे। उनके इस बयान की हर तरफ कड़ी निंदा हो रही है। उदयनिधि के खिलाफ दिल्ली में मुकदमा भी दर्ज हो गया है। अब कई राज्यों के हाईकोर्ट के पूर्व जजों, पूर्व आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों समेत 250 से अधिक लोगों ने उदय पर कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि उदयनिधि ने हेट स्पीच दी है और सुप्रीम कोर्ट को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। कुल 262 लोगों ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें हाई कोर्ट के 14 पूर्व जज, 130 ब्यूरोक्रेट्स, 118 पूर्व सैन्य अधिकारी शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ को लिखे पत्र में कहा गया है कि उदयनिधि ने घृणास्पद भाषण दिया है और सुप्रीम कोर्ट इस पर स्वत: संज्ञान ले। उनका कहना है कि उदयनिधि की हेट स्पीच सांप्रदायिक रंग ले सकती है। उदय के बयान से आम नागरिकों और विशेषकर सनातन को मानने वालों को बहुत पीड़ा हुई है। उन्होंने चेन्नई में एक भाषण में कहा था कि कुछ चीज़ों का विरोध नहीं किया जा सकता, उन्हें ख़त्म कर देना चाहिए। हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते, उन्हें मिटाओ। इसी प्रकार हमें सनातन धर्म का विरोध करने के बजाय सनातन को मिटाना है। सनातन धर्म महिलाओं को गुलाम बनाता है। पत्र में शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ और अन्य के मामले [याचिका (सिविल) संख्या 940/2022)] का उदाहरण दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों पर चिंता जताई है। सरकारों और पुलिस अधिकारियों को इस पर स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई करने का निर्देश दिया। ऐसे मामलों में औपचारिक शिकायत दर्ज होने की प्रतीक्षा नहीं करनी है।
पत्र में कहा गया है कि हिंदुओं को अक्सर “सनातन” के रूप में परिभाषित किया गया है। हिंदू धर्म के लोग अपनी पसंद के सर्वशक्तिमान की पूजा करने के लिए स्वतंत्र हैं। उदयनिधि ने न केवल नफरत भरा भाषण दिया, बल्कि उन्होंने माफी मांगने से भी इंकार कर दिया। उन्होंने दोहराया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं। उदयनिधि स्टालिन की ये टिप्पणियां निर्विवाद रूप से घृणास्पद भाषण के समान हैं। भारत की एक बड़ी आबादी के खिलाफ हैं। चूंकि राज्य सरकार ने कार्रवाई करने से इंकार कर दिया है, इसलिए उसने न्यायालय के आदेशों की अवमानना की। कानून का मजाक बनाया गया है। सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह है कि वह इस मामले में स्वत: संज्ञान ले।
इन्होंने किए हस्ताक्षर
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज एसएन ढींगरा, तेलंगाना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के श्रीधर राव, गुजरात हाई कोर्ट के पूर्व जज एस एम सोनी, झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व जज आरके मेराथिया, राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व जज आर एस राठौड़, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज एमसी गर्ग, इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज डीके अरोड़ा, जस्टिस प्रत्यूष कुमार, जस्टिस एस एन श्रीवास्तव, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के पूर्व जज करम चंद पुरी, जस्टिस एस एन अग्रवाल, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व जज डीके पालीवाल, उत्तराखंड हाई कोर्ट के पूर्व जज लोकपाल सिंह, सिक्किम हाईकोर्ट के पूर्व जज नरेंद्र कुमार जैन। पूर्व रक्षा सचिव योगेंद्र नारायण, पूर्व विदेश सचिव शशांक, पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल, पूर्व रॉ प्रमुख संजीव त्रिपाठी, महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी प्रवीण दीक्षित, दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी, यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, केरल के पूर्व डीजीपी टीपी सेनकुमार, एमजीए रमन, एमएन कृष्णमूर्ति, बिहार के पूर्व डीजीपी रमेशचंद्र सिन्हा, जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी एसपी वैद, लेफ्टिनेंट जनरल जीएल बख्शी, लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह जमवाल, वाइस एडमिरल रमन पुरी समेत 262 विशिष्ट लोगों के हस्ताक्षर हैं।
टिप्पणियाँ