देहरादून। एक तरफ जहां मुख्यमंत्री के निर्देश पर वन विभाग के अधिकारी अतिक्रमण हटाओ अभियान को तेज किए हुए हैं, वहीं निचले स्तर के अधिकारीअतिक्रमण को संरक्षण देते दिख रहे हैं। वन विभाग के जंगलों में सैकड़ों की संख्या में अवैध मजारें कैसे बन गईं? जब उच्च अधिकारियों के निर्देश पर यहां से अवैध मजारें हटाई जा चुकी हैं तो फिर यहां मजारे क्यों और कैसे बन गईं? इस लापरवाही के बारे में वन विभाग में जांच पड़ताल होनी बाकी है।
ऐसी पुख्ता खबरें सामने आ रही हैं कि जो अवैध मजारें हटाई गईं उनमें से कुछ फिर से बनाने के प्रयास हो रहे हैं और वन कर्मी इस ओर आंखे मूंदे बैठे हैं। आसन बैराज, ढकरानी में ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि यहां पुनः अवैध मजारें बनाने के प्रयास हो रहे हैं। हाल ही में प्रेम नगर चाय बगान वन क्षेत्र में एक अवैध मजार को ध्वस्त किया गया था, जिसमें कोई मानव अवशेष नहीं मिला था। बताया गया है कि इसे पुनः बना दिया गया है और इस बार अवैध मजार की टाइल पर साईं बाबा के चित्र लगा दिए गए हैं।
इस बारे में जानकारी मिलते ही हिंदू संगठनों के लोग मौके पर पहुंचे। उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों को खबर की, लेकिन वो मौके पर नहीं पहुंचे। आखिर में हिंदू संगठनों ने खुद ही इसे हटा दिया। नई मजार के भीतर से मोटे-मोटे पत्थर निकले। ऐसा जानकारी में आया है कि कट्टरपंथी खादिम लोग, हिंदुओं को धार्मिक रूप से बरगलाने के लिए ये मजारें बनाकर अपना धंधा चलाते हैं और धीरे-धीरे यहां अवैध कब्जे कर अन्य समाज विरोधी कार्यों को अंजाम देते हैं। हिंदूवादी राधा धोनी सेमवाल का आरोप है कि वन विभाग के कर्मचारी ही अवैध मजारों के बनाने वालों को संरक्षण देकर उनसे हिस्सा बांट करते हैं। वन विभाग की लापरवाही से ही कालसी वन परिसर, आरक्षित वन क्षेत्रों में मजारें बन गईं।
वन विभाग के अतिक्रमण हटाओ अभियान के नोडल अधिकारी डॉ. पराग धकाते ने कहा है कि यदि किसी वन कर्मी के क्षेत्र में अवैध रूप से धार्मिक संरचनाओं के निर्माण हुए तो उन पर विभागीय जांच बैठाई जाएगी या इनपर सख्त कार्रवाई की जाएगी। उल्लेखनीय है कि वन क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों से अभी तक 470 अवैध मजारें उत्तराखंड शासन हटवा चुका है और करीब तीन हजार एकड़ वन भूमि अतिक्रमण मुक्त करवा चुका है।
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