बता दें कि कुछ लोग अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की आड़ में केवल कागजों पर मदरसे, कॉलेज या अन्य तरह के शिक्षण संस्थान चलाते हैं और फर्जी छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति भी लेते हैं।
गत सप्ताह पता चला कि देश में चल रहे अधिकतर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान फर्जी हैं। इनमें से तो कइयों का अस्तित्व ही नहीं है। अब अल्पसंख्यक मंत्रालय ने ऐसे फर्जी संस्थानों की जांच सीबीआई को सौंप दी है। बता दें कि कुछ लोग अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की आड़ में केवल कागजों पर मदरसे, कॉलेज या अन्य तरह के शिक्षण संस्थान चलाते हैं और फर्जी छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति भी लेते हैं।
इसकी भनक लगते ही 2022 में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने पहले तो ऐसे संस्थानों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों की छात्रवृत्ति को बंद किया। इसके बाद उसने 100 जिलों के 1,572 अल्पसंख्यक संस्थानों की प्रारंभिक जांच की जिम्मेदारी ‘नेशनल काउंसिल आफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च’ को सौंपी। इस जांच से पता चला कि 1,572 शिक्षण संस्थानों में से 830 संस्थान फर्जी हैं। फर्जी पाए गए इन शिक्षण संस्थानों में ज्यादातर मदरसे हैं।
इन लोगों ने जम्मू-कश्मीर और केरल में तो फर्जीवाड़े की सारी हदें पार कर दीं। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग और केरल के मल्लपुरम जिले में प्रतिवर्ष जितने छात्रों के लिए छात्रवृत्ति ली गई, उतने छात्र तो इन जिलों के संस्थानों में पढ़ ही नहीं सकते। इन संस्थानों की इतनी क्षमता ही नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि 22 छात्रों के बैंक खातों का मोबाइल नंबर एक ही था। ऐसे भी कई संस्थान मिले, जो वर्षों से बंद पड़े हैं। इसके बावजूद वहां पढ़ने वाले छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति ली जा रही थी।
100 जिलों के 1,572 अल्पसंख्यक संस्थानों की प्रारंभिक जांच की जिम्मेदारी ‘नेशनल काउंसिल आफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च’ को सौंपी। इस जांच से पता चला कि 1,572 शिक्षण संस्थानों में से 830 संस्थान फर्जी हैं। फर्जी पाए गए इन शिक्षण संस्थानों में ज्यादातर मदरसे हैं।
असम, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और पंजाब राज्यों में सबसे अधिक फर्जी मदरसे या इसी तरह के शिक्षण संस्थान मिले हैं। छत्तीसगढ़ के 62 संस्थानों की जांच की गई और ये सभी फर्जी निकले। राजस्थान में 128 संस्थानों की जांच कराई गई। इनमें 99 नकली पाए गए। असम में तो 68 प्रतिशत अल्पसंख्यक संस्थान फर्जी निकले। ऐसे ही कर्नाटक के 64 प्रतिशत, उत्तराखंड के 60 प्रतिशत, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 40-40 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 39 प्रतिशत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान फर्जी निकले हैं। इस भ्रष्टाचार की जानकारी मिलने के बाद अल्पसंख्यक मंत्रालय ने इन संस्थानों के खातों पर रोक लगा दी है।
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग और केरल के मल्लपुरम जिले में प्रतिवर्ष जितने छात्रों के लिए छात्रवृत्ति ली गई, उतने छात्र तो इन जिलों के संस्थानों में पढ़ ही नहीं सकते। इन संस्थानों की इतनी क्षमता ही नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि 22 छात्रों के बैंक खातों का मोबाइल नंबर एक ही था। ऐसे भी कई संस्थान मिले, जो वर्षों से बंद पड़े हैं। इसके बावजूद वहां पढ़ने वाले छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति ली जा रही थी।
बता दें कि इन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय छात्रवृत्ति देता है। इसके लिए पात्र अल्पसंख्यक संस्थान को ‘नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल’ पर अपना पूरा विवरण देना होता है। इसके साथ ही ये संस्थान बैंक विवरण और छात्रों की अन्य जानकारी को जिला स्तर पर तैनात नोडल अधिकारी से सत्यापित कराकर मंत्रालय को भेजते हैं। फिर मंत्रालय सीधे छात्रों के बैंक खातों में छात्रवृत्ति भेजता है। गत पांच वर्ष में इन संस्थानों को छात्रवृत्ति के नाम पर 144 करोड़ रु. से अधिक की राशि दी गई है।
एक रपट के अनुसार वर्तमान में 1,80,000 शिक्षण संस्थान अल्पसंख्यक मंत्रालय से संबद्ध हैं। इनमें हर श्रेणी के संस्थान हैं। किसी में पहली कक्षा से 12वीं तक की पढ़ाई होती है, तो किसी में उच्च शिक्षा दी जाती है। यानी ये संस्थान ऐसे हैं, जहां पहली कक्षा से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई होती है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय छात्रवृत्ति देता है। इसके लिए पात्र अल्पसंख्यक संस्थान को ‘नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल’ पर अपना पूरा विवरण देना होता है। इसके साथ ही ये संस्थान बैंक विवरण और छात्रों की अन्य जानकारी को जिला स्तर पर तैनात नोडल अधिकारी से सत्यापित कराकर मंत्रालय को भेजते हैं। फिर मंत्रालय सीधे छात्रों के बैंक खातों में छात्रवृत्ति भेजता है।
मनमोहन सरकार ने 2007-08 में अल्पसंख्यक संस्थानों के छात्रों को छात्रवृत्ति देने का निर्णय लिया था। ऐसे छात्रों को प्रतिवर्ष 4,000 रु. से लेकर 25,000 रु. तक की छात्रवृत्ति मिलती है। अनुमान है कि अब तक इस मद में 22 हजार करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।
जिस तरह के फर्जी शिक्षण संस्थान उजागर हो रहे हैं, उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि छात्रवृत्ति के नाम पर कितने बड़ी राशि का घोटाला किया गया है।
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