व्यापारियों के रूप में अंग्रेज भारत आए थे और भारतीयों के भोलेपन का लाभ उठाकर व्यापारी के रूप में लूटने के बाद भारत के शासक बन बैठे थे। उन्होंने जी भर के भारत को लूटा, भारत की बौद्धिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक सम्पदा को नष्ट किया तथा वह हानि की, जिसकी भरपाई इतने वर्षों के बाद भी नहीं हो पाई है।
जब अंग्रेज भारत आए थे, उस समय का भारत अपने हस्तशिल्प के चलते समस्त विश्व में विख्यात था। भारत में शिक्षा की स्थिति को धर्मपाल जी ने अपनी पुस्तक द ब्यूटीफुल ट्री में बताया ही है, इसके साथ ही भारत की औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों द्वारा लूट की असंख्य कहानियां तो कोहिनूर हीरे में ही निहित हैं, जो इस समय भी अंग्रेजी दरबार की शान है। भारत से लूटी गयी संपत्ति का ब्यौरा न देने वाले अंग्रेज आज इस बात पर कुपित हैं कि आखिर भारत ने विक्रम को कैसे सफलतापूर्वक चाँद पर उतार दिया?
वह इंग्लैण्ड जहां पर हाल ही तक बाल विवाह को लेकर आयु की स्पष्टता और क़ानून नहीं था, और जो अभी तक चाँद पर कदम नहीं रख सका है, वहां के कुछ लोग और इसके साथ ही भारत में भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त लोग इस बात को लेकर बेचैन हैं कि आखिर चंद्रयान 3 सफल कैसे हो गया? उन्हें भारत की सफलता नहीं पच रही है? यह औपनिवेशिक डाह आखिर किसलिए?
भारत का इतिहास सदा से ही उन्नति का इतिहास रहा है। चाहे कितने भी आक्रमण हुए हों, भारत की चेतना स्वतंत्र रही है। भारत ने स्व पर ही सदा विश्वास किया है तथा भारत ने अपने स्व को जीवित रखा है। फिर चाहे वह मुगलों के आक्रमण रहे हों या फिर औपनिवेशिक अंग्रेजों का शासन। भारत ने अपनी जड़ों से जुड़कर तथा आधुनिकता के साथ चलकर स्वयं को बारम्बार स्थापित किया है। भारत की परम्परा में ज्ञान, विज्ञान, साहित्य, कला एवं चिंतन का संगम है। तथा यही चेतना में समाहित है।
आक्रमण बाहरी होते रहे एवं भीतरी चेतना उन आक्रमणों को झेलकर भी स्व-बोध के साथ निरंतर बढ़ती रही। यही कारण है कि जैसे ही भारत से अंग्रेज अपना बोरिया बिस्तर बांधकर गए, भारत ने अपनी नीति कि किसी पर आक्रमण नहीं करना, बल्कि स्व-विकास करना, सर्व कल्याण करना, के साथ कदम बढ़ाने आरम्भ कर दिए। और आज भारत चाँद पर कदम रखने वाला चौथा देश हो गया है तथा अभी तक भारत को अपना उपनिवेश मानने वाले कुछ बड़बोले अंग्रेज एक लोकतांत्रिक एवं स्वतंत्र देश भारत की उपलब्धि से असहज हैं।
वह इतने असहज हैं कि जैसे ही चंद्रयान 3 ने चाँद पर कदम रखा वैसे ही कुछ अंग्रेज पत्रकार यह कहने लगे कि अब ब्रिटेन को भारत को सहायता भेजनी बंद कर देनी चाहिए क्योंकि ऐसे देश को सहायता क्या भेजनी है, जो आधुनिक स्पेस प्रोग्राम चला रहा है और चाँद के दूसरी ओर अपना चंद्रयान लैंड कराने में सफल हुआ है।
जैसे ही यह ट्वीट किया गया, वैसे ही भारत से भी लोगों ने उत्तर देना आरम्भ कर दिया
इतना ही नहीं पैट्रिक क्रिष्टि ने नामक पत्रकार ने अपने कार्यक्रम में कहा कि जब भारत अब सक्षम हो गया है तो उसे अब 2.3 बिलियन पाउंड की सहायता वापस कर देनी चाहिए, जो उसे 2016 से 2021 के बीच भेजी गयी थी।
यह केवल पैट्रिक का ही कहना नहीं था, बल्कि कई लोग थे, जिन्होनें यह दावा किया कि अब ब्रिटेन को भारत को सहायता नहीं देनी चाहिए और वह रकम भी वापस कर देनी चाहिए। परन्तु क्या यही सत्य है? आखिर इस 2.3 बिलियन पाउंड का उद्देश्य क्या रहा होगा क्योंकि वर्ष 2012 में ही भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ब्रिटिश सहायता के लिए मना कर दिया था क्योंकि वह “जीरे” के समान थी।
जैसे आज औपनिवेशिक मानसिकता वाले अंग्रेज आज तिलमिलाएं हैं, वैसे ही उस समय भी तिलमिलाए थे। यह माना जा रहा है कि वर्ष 2015 के बाद भारत को दी जाने वाले ब्रिटिश सहायता बंद हो गयी है, परन्तु फिर यह 2016 से 2021 के बीच का 2.3 बिलियन पाउंड का आंकड़ा क्या है?
दरअसल मार्च 2023 में इंडिपेंडेंट कमीशन फॉर एड इम्पैक्ट ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि अभी भी ब्रिटेन भारत को सहायता दे रहा है, परन्तु उस सहायता का प्रारूप बदल गया है।
इस रिपोर्ट के विषय में ग्लोबल ब्रिटेन यूके के संस्थापक सदस्य अमन भोगल ने उसी बहस में इस कथित सहायता की पोल खोलते हुए कहा था कि एक बात स्पष्ट कर ली जाए कि यूके भारत को कोई मदद नहीं भेज रहा है। वह भारत में यूके सरकार की ब्रिटिश इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट कंपनी के माध्यम से निवेश कर रहा है जिससे कि यूके के ही करदाताओं को लाभ हो!
दरअसल यह उस डाह की आवाज है, जो इस समय पश्चिम के उस वर्ग के माध्यम से सामने आ रही है और भारत के उस वर्ग के माध्यम से सामने आ रही है जिसकी दृष्टि में भारत साधुओं और सपेरों का देश है। परन्तु यहाँ पर ज्ञानी साधु-संतों का भी वही स्थान है, जो ज्ञानी वैज्ञानिकों का। भारत के एक संत स्वामी विवेकानंद ही थे, जिन्होनें विश्व में भारत का डंका बजाया था। यह भारत ही है जहां पर प्रकृति के हर जीव की उपयोगिता को माना गया है। परन्तु जो औपनिवेशिक दृष्टि से देखते हैं, उन्हें मात्र वही चीजें ज्ञान की प्रतीत होती हैं, जिन पर औपनिवेशिक मान्यता का ठप्पा हो।
औपनिवेशिक मानसिकता वाली सोच एक स्वतंत्र भारत को नहीं देख पा रही है, उसकी बर्दाश्त से बाहर है। भारत के भी कई पत्रकारों ने ब्रिटेन के ऐसे पत्रकारों को तथ्यों के साथ आईना दिखाया है कि ब्रिटेन भारत को सहायता नहीं दे रहा है बल्कि रणनीतिक रूप से अपने फायदे के लिए धन निवेश कर रहा है। वहीं सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने कहा कि भारत को नहीं बल्कि भारत विरोधी गैर सरकारी संगठनों को ब्रिटेन से सहायता दी जाती है, जिसे तत्काल बंद कर दिया जाना चाहिए!
भारत की उन्नति से जलने वाली औपनिवेशिक शक्तियाँ चाहे कितना भी शोर मचा लें, अब भारत अपनी स्व की यात्रा पर आगे बढ़ रहा है, जिसका लक्ष्य सर्व कल्याण है जैसा माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है।
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