UP News: आईटीआर दाखिल करने के मामले में उत्तर प्रदेश, देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बनकर उभरा है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार जून 2014 में 1.65 लाख रिटर्न दाखिल किए गए थे। इस वर्ष में 11.92 लाख रिटर्न दाखिल किए गए हैं। इसके साथ ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का अगस्त 2023 के बुलेटिन में दिए गए आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश, बैंकों व वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं की कुल लागत हिस्सेदारी में एक बार फिर सभी राज्यों से आगे रहा है। इसके अनुसार बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं की कुल लागत हिस्सेदारी में उत्तर प्रदेश वर्ष 2022-23 में 16.2 प्रतिशत शेयर के साथ लगातार दूसरे वर्ष नंबर वन पर रहा है।
वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद सीएम योगी ने प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर, इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी के साथ ही उद्योगों की स्थापना के लिए जो इकनोमिक रिफॉर्म्स का दौर शुरू किया है वो आरबीआई की ताजा रिपोर्ट में साफ दिखाई दे रहा है। 2013-14 से 2020-21 की अवधि में हिस्सेदारी का औसत प्रतिशत 4.4 रहा था। इसके बाद विगत दो वित्तीय वर्ष में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं की कुल लागत हिस्सेदारी में अभूतपूर्व सुधार हुआ है। 2021-22 में बैंकों व वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं की कुल लागत में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 12.8 प्रतिशत रही थी। जो अन्य राज्यों की तुलना में सबसे बेहतर थी और तब भी उत्तर प्रदेश इस मामले में नंबर वन पर था। उसके बाद 2021-22 से 2022-23 के बीच महज एक वर्ष में इस हिस्सेदारी में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है. 2013-14 से 2020-21 के बाद इन 2 वर्षों में बैंकों द्वारा परियोजनाओं की लागत में प्रदेश की हिस्सेदारी में 11.8 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है।
बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं से एकत्र किए गए परियोजनाओं के वित्त पोषण संबंधी आंकड़ों व एक्सपर्ट्स के कैलकुलेशन पर आधारित इस रिपोर्ट का विश्लेषण करने पर एक और बात स्पष्ट होती है और वो ये कि उत्तर प्रदेश में बैंकों व वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं की कुल लागत हिस्सेदारी में नियमित वृद्धि का ट्रेंड रहा है. 2013-14 से 2020-21 के मध्य औसत 4.4 प्रतिशत के बाद 2021-22 में 12.8 प्रतिशत से होती हुई 2022-23 में यह वृद्धि 16.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है। उत्तर प्रदेश में लगातार निवेशकों एवं परियोजनाओं को बैंकिंग सेक्टर का सहयोग प्राप्त होता रहा है। वहीं अन्य राज्यों में यह वृद्धि अनियमित है। किसी राज्य में अचानक एक वर्ष में वृद्धि हुई तो कहीं 2013-14 से 2020-21 के मध्य और 2021-22 व 2022-23 में इसके आंकड़ों में काफी उतार-चढ़ाव आया. कुछ राज्यों में तो वृद्धि की बजाय गिरावट दर्ज की गई है। मसलन, गुजरात में जो हिस्सेदारी 2013-14 से 2020-21 के बीच औसत 14.3 प्रतिशत थी वो 2022-23 में 14 पर है। यानी 0.3 प्रतिशत कम है। ओडिशा में 2013-14 से 2020-21 के बीच जो हिस्सेदारी औसतन 4.5 प्रतिशत थी वो 2021-22 में लुढ़ककर 2.2 प्रतिशत पर पहुंच गई. 2022-23 में इसमें अचानक वृद्धि हुई और यह 11.8 प्रतिशत पर आ गई। इसी तरह महाराष्ट्र में यह 2013-14 से 2020-21 के बीच औसतन 13 प्रतिशत से 2021-22 में 9.7 और 2022-23 में 7.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है तो कर्नाटक में 2013-14 से 2020-21 के बीच औसतन 8.5 प्रतिशत से 2021-22 में 6.9 और 2022-23 में 7.3 प्रतिशत हिस्सेदारी रही है। इसी तरह अन्य राज्यों में हिस्सेदारी का प्रतिशत 2013-14 से 2020-21 के बीच औसतन 9.4 से लुढ़ककर 2021-22 में 4 और 2022-23 में 5.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
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